Mannu Bhandari
लैंगिक असमानता,वर्गीय असमानता और आर्थिक असमानता को अपनी रचनाओं के माध्यम से दूर करने की कोशिश करने वाली,नारी के परिवेश की विभिन्न समस्याओं के विविध पहलुओं को गहराई के साथ देखने वाली और साहस तथा तटस्थता के साथ उसे यथार्थ के धरातल पर प्रस्तुत करने वाली लेखिका मन्नू भंडारी अब हमारे बीच नहीं हैं। १५ नवम्बर २०२१ को वह हमें छोड़कर किसी दूसरी दुनिया में चली गई। उनके चले जाने से हिन्दी जगत में एक ऐसा खालीपन पैदा हो गया है जो शायद हमेशा बना रहेगा। प्रख्यात कथाकार, उपन्यासकार मन्नू रभंडारी (जन्म-३ अप्रैल १९३१) नई कहानी आन्दोलन के दौर की महत्वपूर्ण लेखिका हैं। नई कहानी आन्दोलन के प्रवर्तकों में प्रमुख नाम हैं-कमलेश्वर, मोहन राकेश, राजेन्द्र यादव, निर्मल वर्मा, उषा प्रियंवदा और मन्नू भंडारी।
नई कहानी आन्दोलन के केन्द्र में स्वयं की उपस्थिति को वे अस्वीकार करती रही,लेकिन यह सच है कि रचनात्मक स्तर पर वे इस आन्दोलन और उसकी उपलब्धियों से बहुत ही सीधे तौर पर जुड़ी रही। इस संदर्भ में बात मजाक की है,किन्तु गंभीर रूप से अर्थवान भी-
जैनेन्द्र कुमार ने कमलेश्वर से पूछा कि `नई कहानी’ का नेता कौन है?
कमलेश्वर ने तत्काल जवाब दिया-
`यह तो बिच्छुओं की कतार है। जिस पर उंगली रख दीजिए, वही बता देगा।’ लेकिन यह कहना असंगत नहीं होगा कि धीरे-धीरे ऐसा भी समय आया जब `नई कहानी’ फार्मूलाबद्ध होकर जड़ हो गई-अपने ही आभामंडल में कैद। लेकिन मन्नू भंडारी इस बात को उसी दौर में समझ गई थी। इस संदर्भ में उनका स्पष्ट मानना था कि व्यक्तिगत अनुभव को जब तक तर्क और विवेक की कसौटी पर कस नहीं लिया जाता तब तक वह कोरा अनुभव मात्र रह जाता है। केवल अनुभव के आधार पर लिखी गई कहानियाँ पाठक को चमत्कृत तो कर सकती हैं, लेकिन कोई दिशा नहीं दे सकती हैं। जब हम मन्नू भंडारी की कहानियाँ पढ़ते हैं और उनपर चिंतन करते हैं तो स्पष्ट पता चलता है कि नई कहानी की इस प्रकृति के प्रति वे सदैव सावधान रही।
वे आत्मानुभवों को प्रायः सामाजिक संश्लिष्टता में प्रस्तुत करती रही। वे सामाजिक विकृतियों,विशेषकर नारी जीवन संबंधी विडम्बनाओं को चित्रित करते समय काफी संयम रखते हुए विवेक का इस्तेमाल करती हैं। यही कारण है कि उनके विरोध का स्वर एक सकारात्मक और सर्जनात्मक भूमिका निभाता है। मन्नू भंडारी के साथ लम्बे समय से साथ रही लेखिका सुधा अरोड़ा कहती हैं `मन्नू के जीवन की प्रतिकूल स्थितियों से लड़ने की उनकी ताकत और एक निर्णय लेकर उसपर अडिग रहने की उनकी जिद, उनके जीवन को एक समाज वैज्ञानिक नजरिए से विश्लेषित करने की माँग करता है,जो आने वाली सदियों तक बीस के दशक में जन्मी औरतों के समाज,परिवेश और मूल्यों के पड़ताल के लिए एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता रहेगा। ‘
मन्नू भंडारी मूलतः कहानी की समाज-सापेक्ष यथार्थवादी धारा की लेखिका हैं। एक प्रख्यात समालोचक का कहना है-`उनकी कहानी में दो चीजें दर्शनीय हैं-एक तो उन्होंने पारिवारिक जीवन की विविध समस्याओं और नर-नारी संबंधो के विविध आयामों को लिया है और कहीं-कहीं तो सामाजिक जीवन के भी गहरे प्रश्नों को प्रमाणिकता के साथ रूपान्वित किया है और दूसरे प्रायः इनकी कहानियों का स्तर एक-सा ऊँचा है।’
उनकी कहानियों पर कभी `महिला लेखन’ का ठप्पा नहीं लगाया गया। सचमुच वे बृहत्तर सामाजिक संदर्भो की लेखिका हैं।
प्रसिद्ध साहित्यकार रोहिणी अग्रवाल लिखती हैं-`मन्नू भंडारी इस मायने में हिन्दी की प्रारंभिक कहानीकार मानी जाएगी कि वह पुरुष के उत्पीड़न की शिकार स्त्री की बेवशी को चित्रित करने की जगह,ऐसी स्त्री को परिदृश्य पर लाकर आई जो तमाम नेकनीयती और सदाशयता के बावजूद अपने ही अंतर्विरोधों और कपटपूर्ण आचरण से मकड़जाल बुनने लगी है।’
एक अन्य आलोचक का कहना है कि `मशहूर लेखिका मन्नू जी का लिखा आज भी नशें चटका देती हैं।’
उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं-`मैं हार गई’ (१९५७),`एक प्लेट सैलाब’ (१९६२), `यही सच है ‘(१९६६),`तीन निगाहों की एक तस्वीर’,`त्रिशंकु’,`आँखों देखा झूठ’,`अकेली’।’ `एक इंच मुस्कान’ (१९६२) प्रख्यात साहित्यकार और पति राजेन्द्र यादव के साथ मिलकर लिखा गया उपन्यास है जो पढ़े-लिखे आधुनिक लोगों की एक दुखांत प्रेम कथा है, जिसका एक-एक अंक लेखक-द्वय ने क्रमानुसार लिखा है।
इनका प्रसिद्ध उपन्यास `महाभोज’ (१९७९) नौकरशाही और राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार के बीच आम आदमी की पीड़ा तथा दलित समुदाय के शोषण को उद्घाटित करता है।
इसी प्रकार उनके उपन्यास `यही सच है’ पर बनी फिल्म `रजनीगंधा’ भी अत्यंत लोकप्रिय हुई थी।
`आपका बंटी ‘(१९७१) इनका प्रसिद्ध उपन्यास है। इस उपन्यास को अपने पति राजेन्द्र यादव से तलाक के बाद गहरी संवेदना के साथ लिखी। यह उपन्यास विवाह विच्छेद की त्रासदी में पिस रहे एक बच्चे को केंद्र में रखकर लिखा गया।
`एक कहानी ये भी’ उनकी आत्मकथा विशेष तरह से लिखी गयी है। अपने लेखन में व्यंग्य का प्रयोग अत्यंत ही संयत और कलात्मक तरीके से करती हैं। उनके संदर्भ में यह बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि अपनी समकालीन और परवर्ती अनेक महिला कथाकारों की ही नहीं,बहुत से पुरुष कथाकारों की तुलना में भी उनकी कहानियां भावुकता और रोमानी आत्मग्रस्तता से मुक्त है।
उन्हें अपने साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार तथा सम्मान मिले हैं। इनमें विशेष रूप से हिन्दी अकादमी, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, दिल्ली शिखर सम्मान तथा व्यास सम्मान उल्लेखनीय हैं। यशः शरीर में हमारे बीच वे सदैव रहेगी। उन्हें कोटि-कोटि नमन!
– अरूण कुमार यादव