यदि टेक्निकली बात की जाए तो ड्रोन एक प्रकार का मानव द्वारा निर्मित किया गया एक एयरक्राफ्ट है जिसकी अनमैंड एयरक्राफ्ट सिस्टम के नाम से भी जाना जाता है यह एक प्रकार का फ्लाइंग रोबोट होता है जिसे रिमोट के द्वारा कंट्रोल किया जाता है इसके अंतर्गत सॉफ्टवेयर कंट्रोल प्लान इंस्टॉल किया जाता है तथा सेंसर और जीपीएस की सहायता से इसमें उड़ान भरी जाती है मुख्यता इसका इस्तेमाल पुलिस विभाग, आर्मी, मिलिट्री आदि में ज्यादातर किया जाता है, परन्तु हाल के दिनो मे ड्रोन का इस्तेमाल कृषि क्षेत्र में भी किया जा रहा है।
ड्रोन (Drone) शब्द विविध अर्थों में प्रयोग किया जाता है। आजकल यह मुख्यतः विविध आकार-प्रकार वाले और विविध कार्यों के लिए प्रयोग किए जाने वाले चालकरहित विमान को ड्रोन कहा जाता है। इसे सुदूर स्थान से नियंत्रित किया जाता है।
पिछले वर्ष अगस्त में भारत सरकार द्वारा ड्रोन नीति को उदार बनाने के एक वर्ष से भी कम समय में कृषि क्षेत्र इन बहुउद्देश्यीय फ्लाइंग रोबोट के सबसे बड़े उपयोगकर्ता के रूप मे उभरा है। कई उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उनका बहुआयामी उपयोग किया जा रहा है। मसलन, रकबे का अनुमान और संभावित उत्पादन की तस्वीर पता करना, कीटों एवं बीमारियों द्वारा फसल को हुए नुकसान का आकलन करने और भूमि रिकॉर्ड को डिजिटल बनाने में उनका बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जा रहा है। साथ ही कीटनाशकों एवं पौधों के लिए उपयोगी पोषक तत्त्वों के छिड़काव का काम तो सामान्य रूप से उनसे लिया ही जा रहा है। इस संदर्भ में आवश्यक सुरक्षा एवं अन्य पहलुओं के आलोक में कृषि मंत्रालय कृषि, वानिकी और ग्रामीण क्षेत्र में अन्य उद्देश्यों के लिए ड्रोन के उपयोग संबंधी मानक परिचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) को अधिसूचित भी कर चुका है।
माना जा रहा है कि अगले पांच से छह वर्षों के दौरान देश के कृषि ड्रोन बाजार में सालाना 25 प्रतिशत की जोरदार वृद्धि का अनुमान है। कृषि केंद्रित प्रमुख क्षेत्रों में खेतिहर मजदूरों की कमी भी ड्रोन की मांग को बढ़ावा दे रही है। नागर विमानन मंत्रालय के अनुमान के अनुसार रिमोट कंट्रोल के माध्यम से इन ड्रोन को चलाने के लिए करीब एक लाख कुशल पायलटों की आवश्यकता होगी। ऐसे में ड्रोन संचालन के लिए बड़ी संख्या में युवाओं को प्रशिक्षित करने की जरूरत है। इस कवायद में अधिक से अधिक ग्रामीण युवाओं को शामिल करने के लिए इसके लिए शैक्षणिक अर्हता को घटाकर 12वीं कक्षा कर दिया गया है।
दिलचस्प बात है कि भारत इन लघु विमानों के विनिर्माण और उनके उपयोग के मोर्चे पर वैश्विक लीडर बनने की संभावनाएं रखता है। इस क्षेत्र में निजी निवेश की रफ्तार और सरकार की ओर से अपेक्षित समर्थन के माध्यम से इससे जुड़ी उम्मीदों को बल मिलता प्रतीत हो रहा है। तमाम उद्यम, जिनमें स्टार्टअप से लेकर स्थापित दिग्गज कंपनियां न केवल इनके निर्माण को लेकर पहले से ही सक्रिय हो गई हैं, बल्कि किसानों को उनकी आवश्यकता के अनुरूप सेवाएं प्रदान करने के लिए इकाइयां स्थापित कर चुकी हैं। केंद्र सरकार की ओर से भी इस क्षेत्र को पर्याप्त समर्थन मिल रहा है। इस साल बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री ने घोषणा की थी कि समावेशी ड्रोन विकास सरकार की चार प्राथमिकताओं में से एक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दिशा में और आगे बढ़ने के संकेत देते हुए हाल में नई दिल्ली में संपन्न ‘भारत ड्रोन महोत्सव 2022’ में कहा कि भारत 2030 तक विश्व का ड्रोन हब बन जाएगा।
कृषि में ड्रोन के उपयोग के लिए उनके स्वदेशी उत्पादन को बढ़ाने के लिए सरकार कई अन्य प्रकार से भी प्रोत्साहन दे रही है। उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना को ड्रोन-विनिर्माण क्षेत्र तक विस्तार दिया गया है। इसके अतिरिक्त किसानों के लिए इनके उपयोग को किफायती बनाने के लिए भी कई उदार अनुदान एवं सब्सिडी दी जा रही हैं। इसके अंतर्गत कृषि शोध संस्थानों के लिए ड्रोन की लागत पर 100 प्रतिशत, सहकारी एवं किसान उत्पादन संगठनों (एफपीओ) के लिए 75 प्रतिशत और किसानों के लिए उनकी सेवाएं उपलब्ध कराने पर 40 प्रतिशत की सब्सिडी दी जा रही है।
इसके अतिरिक्त ड्रोन के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के लिए सरकार ने उनके आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है। हालांकि उनके उत्पादन में लगने वाले कलपुर्जों के आयात पर प्रतिबंध से कुछ समय के लिए राहत दी हुई है। ड्रोन की निरंतर बढ़ती हुई मांग, निर्यात की आकर्षक संभावनाओं और अनुकूल नीतिगत ढांचे को देखते हुए तमाम विनिर्माताओं ने उत्पादन के लिए महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए हैं। ऐसी बातें सामने आ रही हैं कि कुछ ड्रोन निर्माताओं को जापान एवं अन्य एशियाई देशों और खाड़ी के देशों से ड्रोन निर्यात के ऑर्डर मिलने लगे हैं। ऐसे स्पष्ट संकेत हैं कि वैश्विक ड्रोन बाजार में चीनी वर्चस्व को भी भारत जल्द ही चुनौती पेश करने में सक्षम हो सकेगा। चीन के मुकाबले किफायती कीमत और बेहतर गुणवत्ता के दम पर भारतीय ड्रोन निर्यात की संभावनाओं को लेकर उद्योग बहुत आशान्वित हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि कृषि क्षेत्र में ड्रोन का उपयोग मुख्य रूप से छिड़काव, सर्वे, मैपिंग और निगरानी जैसे व्यापक कार्यों तक ही सीमित नहीं रहने वाला। उपयोग के दृष्टिकोण से इन लचीले उपकरणों को उत्पादन बढ़ाने एवं लागत घटाने के लिए सटीक एवं लक्ष्य केंद्रित खेती की क्षमताओं को बढ़ाने में किया जाएगा। विशेष सेंसरों और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की सुविधाओं से लैस ड्रोन स्वस्थ एवं किसी बीमारी या कीट की जद में आए पौधों की पहचान कर उनके लिए बेहतर रूप से लक्षित कीटनाशकों या पादप-संरक्षण से जुड़े रसायनों की योजना बनाने में सक्षम होंगे। वहीं बड़े आकार के ड्रोन का उपयोग उन कृषि उत्पादों की ढुलाई में भी किया जा सकता है, जो जल्दी खराब हो जाते हैं। उनके जरिये फलों-सब्जियों, मांस और मछली जैसे उत्पादों को शीघ्रता से बाजार तक पहुंचाने में मदद मिलेगी और उनमें नुकसान की आशंका घटेगी। इससे किसानों को उनके उत्पाद में ताजगी और बेहतर गुणवत्ता से अच्छी कीमत मिलने में भी मदद मिलेगी।
ड्रोन का उपयोग बढ़ने के साथ ही उनकी सेवाएं लेना भी सस्ता होता जाएगा। उद्योग सूत्रों का मानना है कि पादप-संरक्षण रसायनों या फसल पोषक तत्त्वों के छिड़काव में यह कीमत प्रति एकड़ 350-450 रुपये (तकरीबन 1,000 रुपये प्रति हेक्टेयर) के स्तर पर स्थिर हो सकती हैं। इन कार्यों के लिए यह मानव श्रम या पारंपरिक मशीनों की तुलना में काफी कम ही है। ऐसे में कोई संदेह नहीं कि यदि ड्रोन का कुशलतापूर्वक और उनकी पूरी क्षमताओं के साथ उपयोग किया जाए तो वे कृषि क्षेत्र का काया पलट करने वाले सिद्ध हो सकता है।
साहब कु. यादव
बिहार (मोतिहारी)