हिन्दी साहित्य के प्रमुख व्यंग्यकार:-शरद जोशी
Sharad Joshi was a legendary Hindi satirist whose sharp and witty writings highlighted the social, political, and cultural flaws of his time. His legacy continues to inspire and resonate in modern India. बचपन से ही उनमें अध्ययन की विशेष रूचि थी। उनके पिता का नाम श्रीनिवास जोशी एवं माता का नाम शांति जोशी था तथा पत्नी का नाम इरफाना सिद्दीकी था। उज्जैन से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत उन्होंने इंदौर के शासकीय होल्कर विज्ञान महाविद्यालय से स्नातक की उपाधि ग्रहण की। अध्ययन के दौरान ही उन्होेंने साहित्य लेखन करना प्रारंभ कर दिया था। अपने कैरियर का प्रारंभ उन्होंने समाचार पत्रों एवं रेडियो में बतौर लेखक के रूप में की थी। इसके पश्चात कुछ समय तक वे मध्य प्रदेश सरकार के सूचना एवं प्रसारण प्रशासन विभाग में कार्यरत रहे, किंतु इन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया एवं लेखन को ही आजीविका के रूप में स्वीकार किया

हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ व्यंग्यकारों में शरद जोशी का महत्वपूर्ण स्थान है शरद जोशी जी ने अपना संपूर्ण व्यंग्य साहित्य के विकास के लिए समर्पित किया है। इनकी व्यंग्य रचनाएं विविधता से परिपूर्ण हैं। उन्होंने समाज में व्याप्त सभी समस्याओं को उजागर किया एवं उन्हें सुधारने का प्रयास किया। शरद जोशी के व्यंग्य साहित्य के विषयों एवं शैली में अनेक विविधताएं देखने को मिलती हैं। शरद जोशी का जन्म २१ मई १९३१ ई को उज्जैन में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। बचपन से ही उनमें अध्ययन की विशेष रूचि थी। उनके पिता का नाम श्रीनिवास जोशी एवं माता का नाम शांति जोशी था तथा पत्नी का नाम इरफाना सिद्दीकी था। उज्जैन से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत उन्होंने इंदौर के शासकीय होल्कर विज्ञान महाविद्यालय से स्नातक की उपाधि ग्रहण की। अध्ययन के दौरान ही उन्होेंने साहित्य लेखन करना प्रारंभ कर दिया था। अपने कैरियर का प्रारंभ उन्होंने समाचार पत्रों एवं रेडियो में बतौर लेखक के रूप में की थी। इसके पश्चात कुछ समय तक वे मध्य प्रदेश सरकार के सूचना एवं प्रसारण प्रशासन विभाग में कार्यरत रहे, किंतु इन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया एवं लेखन को ही आजीविका के रूप में स्वीकार किया अपनी हास्य विनोद वाली व्यंग शैली से उन्होंने देश में घटित सामाजिक राजनीतिक, सांस्कृतिक कुरीतियों और तात्कालिक विसंगतियों का उन्होंने सजीव चित्रण किया। शरद जोशी का व्यंग्य साहित्य समाज की विडंबनाओं और विसंगतियों को देख पाने और तीसरी दृष्टि से व्यंग के माध्यम से रख पाने में परिचायक है। इन्होंने जीवन के पृथक दृष्टिकोणों को व्यंगात्मक नजर से देखा, इसका प्रमुख कारण यह है कि शरद जोशी ने भिन्न-भिन्न स्थानों में अपने जीवन का कुछ समय व्यतीत किया इसलिए इनकी व्यंग्य साहित्य की भाषा एवं शैली विस्तृत एवं विषद बन गई है। शरद जोशी के व्यंग में हास्य, कड़वाहट, मनोविनोद और चुटीलापन दिखाई देता है जो उन्हें जनप्रिय एवं लोकप्रिय रचनाकार बनाता है। साहित्य की अनेक विधाओं में लेखन के साथ ही उन्होंने फिल्मों एवं धारावाहिकों के लिए पटकथाएं एवं संवाद भी लिखें। इनमें यह जो है जिंदगी, विक्रम और बेताल, सिंहासन बत्तीसी, वाह जनाब, दाने अनार के, यह दुनिया गजब की, आदि धारावाहिकों की पटकथाएं शामिल हैॅ। इसके अतिरिक्त उन्होंने मालगुडी डेज धारावाहिक के हिंदी संवाद भी लिखा है। शरद जोशी ने सिनेमा जगत के लिए क्षितिज, गोधूलि उत्सव, चोरनी, सांच को आंच, उड़ान और दिल है कि मानता नहीं जैसी फिल्मों के संवाद भी लिखे। शरद जोशी जी ने नई दुनिया, ज्ञानोदय, साप्ताहिक हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स आदि समाचार पत्रों में नियमित लेखन कार्य भी किया। शरद जोशी की प्रमुख रचनाएं- मुद्रिका रहस्य, हम भ्रष्टन के भ्रष्ट, हमारे जादू की सरकार, पिछले दिनों, राग भोपाली, किसी बहाने, दूसरी सतह, यात्र-तत्र- सर्वत्र, नदी में खड़ा कवि, घाव करें गंभीर आदि, मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएं हैं। उन्होंने अंधों का हाथी एवं एक था गधा उर्फ अलाउद्दीन खान व्यंग नाटक तथा उपन्यास में `मैं और केवल मैं भी लिखा। शरद जोशी को आधुनिक हिंदी साहित्य में विशेष योगदान देने के लिए सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा पद्मश्री,चकल्लस पुरस्कार, काका हाथरसी सम्मान आदि से पुरस्कृत भी किया गया है।
शरद जोशी ने भारतीय राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार अवसरवाद मूल्यहीनता छल-प्रपंच पर व्यंग्य करते हुए लिखते हैं-
`तख्ती पर बैठे मुर्दे वोट मांग रहे हैं। चमचों के कंधो पर बैठ सम्पूर्ण देश की यात्रा पर चले हैं, ये कुर्सी के प्रेत।। राम नाम सत्य है। जनता नाम सत्य है। समूची वोटर लिस्ट सत्य है। दूध पीने निकले हैं राष्ट्र के चंदन से लिपटे सांप। पगडंडिया तलाश रही हैं कस्बों में घुसने की, वादों और इरादे के गलियारे खोजते झूठ के पुराने मसीहा। लोकसभा से मुंह चुराने वाले कुर्सी पर बैठने के बाद लगे कलंको को ढकते।। ये नंगे फिर आये हैं, लोकतंत्र, लोकतंत्र से तौलिया मांगने। यदि वोट मिल जाए तो वे आपके थूक से स्नान कर लेंगे। ये वही नपुंसक, जिन्हें गीत गाकर हम सुहागकक्ष तक छोड़कर आये थे। अब फिर आये हैं सेहरा बंधवाने। राजनीति के इन मगरमच्छों को कीचड़ में छप-छप करना खूब आता है।' शरद जोशी वस्तुतः आधुनिक हिंदी साहित्य के योग धर्मी व्यंग्यकार हैं उन्होंने अपने व्यंग्य लेखन से हिंदी साहित्य में व्यंग्य साहित्य को एक स्वतंत्र विधा के रूप में प्रतिष्ठा दिलाई। शरद जोशी के व्यंग्य लेखन का लक्ष्य कबीर दास जी की भांति संपूर्ण मानव जाति का कल्याण ही रहा है। उन्होंने जीवन के अंतिम दिनों तक लक्ष्य से मुंह नहीं मोड़ा। उनका जीवन व्यंग्य साहित्य के लिए पूर्णतः समर्पित रहा है। शरद जोशी जी ने हिंदी साहित्य जगत में अनेक दशकों तक अनुपम व्यंग्य कृतियों का सृजन किया। ५ दिसम्बर १९९१ ई.में ६० वर्ष की अवस्था में मुम्बई में उनका निधन हो गया। शरद जोशी जी का व्यंग्य साहित्य अमर है वह वर्षों बीत जाने के पश्चात भी वर्तमान एवं भविष्य में भी प्रासंगिक रहेगा।।
डाॅ. जितेन्द्र प्रताप सिंह,
रायबरेली,उ.प्र.
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