मनुष्य के जीवन मे साहित्य की जो भूमिका है, वही बाल साहित्य की बालक के संदर्भ में हैं। बाल साहित्य सृजन का इतिहास सौ वर्ष से भी पुराना होने के बावजूद अधिकांश हिंदी बाल रचनाकारों के समक्ष बाल साहित्य विमर्श या समालोचना की अवधारणा स्पष्ट नहीं हैं। इस कारण विषय का गहन अध्ययन कठिन हो जाता है। अन्य भाषाओं की तरह ही हिंदी में भी बाल साहित्य का पर्याप्त सृजन हुआ है और अनेक बाल साहित्यकारों ने हिंदी के बाल साहित्य को ही सम्पन्न और समृद्ध करने में जीवन भर अपना विशिष्ट योगदान दिया है। परंतु आज भी इस क्षेत्र में उचित मूल्यांकन का अभाव है। बाल साहित्य के अधिकांश शोधग्रन्थ केवल और केवल विश्वविद्यालयी डिग्री प्राप्त करने के लिए लिखे गए हैं या किसी ने इस क्षेत्र में काम किया है तो या तो समीक्षक तक कृतियाँ पहुंची नहीं या पूर्वग्रहों के कारण किसी रचनाकार का अच्छा कार्य होते हुए भी उसे तवज्जो नहीं दी गई। ऐसे में बाल साहित्य समीक्षा या विमर्श आधा-अधूरा ही पाठकों तक पहुंचता है। स्वतंत्र रूप से बाल विमर्श/ समीक्षा पर आज भी बाल साहित्यकारों पर आलोचना पुस्तकों की कमी है। इस कड़ी में निरंकार देव सेवक, प. सोहनलाल द्विवेदी, द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी, शकुंतला शिरोठिया, कन्हैयालाल नन्दन, जय प्रकाश भारती, सुकेश साहनी, रामेश्वर दयाल दुबे, शम्भू दयाल सक्सेना, डॉ. हरिकृष्ण देवसरे, डॉ.राष्ट्र बन्धु, डॉ. श्री प्रसाद, डॉ. बालशौरी रेड्डी आदि के बाल साहित्य पर विमर्श ग्रन्थ गिनने लायक ही हैं। आजादी के पूर्व तक बाल विमर्श की दिशा में कोई ठोस कार्य नहीं हुआ था। परन्तु इसके बाद बाल साहित्य को एक स्वतंत्र विधा मानते हुए समीक्षा/विमर्श पर कार्य प्रारंभ हुआ। बाल साहित्य विमर्श/ समीक्षा के क्षेत्र में विशद कार्य करने वाले रचनाकारों में भी कुछ ही नाम प्रमुखता से लिये जा सकते हैं जिनमें डॉ. राष्ट्रबन्धु, डॉ. श्री प्रसाद, डॉ. मस्तराम कपूर, डॉ. हरिकृष्ण देवसरे, डॉ. प्रकाश मनु, डॉ. सुरेंद्र विक्रम, डॉ. ओम निश्चल, डॉ. उषा यादव, डॉ.शकुंतला कालरा, बन्धु कुशावर्ती, डॉ. कामना सिंह, डॉ.नागेश पांडेय संजय आदि प्रमुख हैं।
डॉ. कामना सिंह हिंदी की एक ख्यातनाम बाल साहित्यकार हैं जिनके लगभग २४ से ज्यादा बाल व किशोर उपन्यास प्रकाशित, चर्चित हो चुके हैं। डॉ. कामना सिंह ख्यातनाम वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.उषा यादव की पुत्री है। यह प्रसन्नता का विषय है कि उन्होंने डॉ.उषा यादव के बाल साहित्य पर २८४ पृष्ठ का एक ग्रन्थ ‘बाल-विमर्श, परिप्रेक्ष्य: उषा यादव का बाल साहित्य’ सृजित किया है जिसमें विषय का सम्पूर्ण, सारगर्भित और प्रामाणिक विवेचन प्रस्तुत किया गया है। डॉ. उषा यादव ने बहुआयामी बाल साहित्य का विपुल मात्रा सृजन किया है। बाल साहित्य की विभिन्न विधाओं में ५० से अधिक कृतियां प्रकाशित, चर्चित, सम्मानित हो चुकी हैं। कानपुर, उत्तर प्रदेश में जन्मी डॉ. उषा यादव, पीएचडी ,डिलीट बहु प्रतिभाशाली साहित्य सर्जक है। कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, समीक्षा आदि की सौ से ज्यादा पुस्तकों का सृजन आपने किया है। सम्प्रति प्राध्यापक पद से सेवा निवृत्त हो आगरा में स्थायी रूप से निवास कर साहित्य सृजन कर रही हैं।
प्रचार-प्रसार के प्रपंचों से एकदम दूर खामोशी से अपने पारवारिक दायित्वों को निभाते हुए साहित्य साधना में लीन डॉ. उषा यादव जी का व्यक्तित्व जितना प्रभावशाली है उतनी ही वे विनम्र और सहज हैं, कोई भी उनकी विनम्रता और सादगी से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। उनकी कृतियों को हिन्दी के सबसे बड़े प्रकाशकों ने सम्मान पूर्वक प्रकाशित किया है। यह मेरा परम सौभाग्य है कि हमारी संस्था द्वारा बाल साहित्य में उत्कृष्ट सृजन हेतु दो बार आपको समादृत किया जा चुका है। महामहिम राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने ९ नवम्बर २०२१ को अपने कर कमलों द्वारा डॉ. उषा यादव को साहित्य के क्षैत्र में महनीय कार्य के लिए पद्मश्री सम्मान से विभूषित किया है।
डॉ. कामना सिंह ने डॉ. उषा यादव जी के रचनात्मक बाल साहित्य का बड़ी गहराई से अध्ययन परिशीलन करते हुए इसे पर सात भागों में विभक्त कर समीक्षात्मक विश्लेषण किया है जो हिंदी में बाल विमर्श पर एक प्रमाणिक कार्य है; जिसमें कहीं भी कल्पना या बनावटीपन का उपयोग नज़र नहीं आता। डॉ. कामना सिंह का यह कार्य समय व श्रम साध्य है। इस ग्रन्थ के अध्याय है- बाल विमर्श: सैद्धांतिक विवेचन, उषा यादव का बाल साहित्य, उषा यादव की बाल कविता में बाल विमर्श, उषा यादव की बाल कहानी में बाल विमर्श, उषा यादव के बाल उपन्यास में बाल विमर्श, उषा यादव के बाल साहित्य की अन्य विधाओं में बाल विमर्श एवं उपसंहार। इन अध्यायों में उषा यादव के बाल साहित्य की विभिन्न विधाओं में लिखे गए कहानी, कविता, उपन्यास, नाटक, समालोचना, जीवनी आदि पर विशद, सारगर्भित, सटीक विवेचन करते हुए बाल मनोविज्ञान, संवेदना, यथार्थ, आधुनिक प्रवृतियां, सामाजिक सरोकार, परिवेश और परवरिश, प्रभाव और मानवीय दृष्टिकोण के तहत सम्पूर्ण समीक्षात्मक विमर्श प्रस्तुत किया गया है। डॉ. उषा यादव के बाल साहित्य का उचित मूल्यांकन करने तथा इसकी समीक्षा की दिशा में डॉ. कामना सिंह का ग्रन्थ ‘बाल-विमर्श, परिप्रेक्ष्य: उषा यादव का बाल साहित्य’ महत्वपूर्ण उपलब्धि कहा जायेगा। जिसमें डॉ. कामना सिंह की सूक्ष्म विश्लेषणात्मक दृष्टि का आभास भी होता है। इससे बाल साहित्य समीक्षा/विमर्श को एक ठोस जमीन मिलेगी और इस क्षेत्र में कार्य को गति मिलेगी। डॉ. उषा यादव के समग्र बाल साहित्य का मूल्यांकन कर डॉ. कामना सिंह ने एक महान कार्य किया है।
यह शोध परक ग्रन्थ ‘बाल-विमर्श, परिप्रेक्ष्य: उषा यादव का बाल साहित्य’ जहां बाल साहित्य के अध्येताओं, शोधार्थियो के लिए अनुपम संदर्भ ग्रन्थ है वहीं बाल साहित्य में रुचि रखने वाले पाठकों के लिए भी उपयोगी साबित होगा। इस बहुउपयोगी, शानदार ग्रन्थ के लिए डॉ.कामना सिंह, नमन प्रकाशन, नई दिल्ली एवं पद्मश्री डॉ. उषा यादव को हार्दिक बधाई एवम मंगलकामनाएं।
राजकुमार जैन राजन
चित्तौड़गढ़, राजस्थान