राजकुमार जैन राजन
Laghu Katha : बालसाहित्य बच्चों की कल्पना को पंख लगाने का काम करता है। वह बालमन के चिंतन के क्षितिज को विस्तार देता है। बालसाहित्य की उपयोगिता तथा प्रासंगिकता को सभी शिक्षाशास्त्रियों व समाजशास्त्रियों ने रेखांकित किया है। बालसाहित्य का सृजन हर कालखंड में होता रहा है। आज बढ़ते इंटरनेट के प्रयोग ने बच्चों के जीवन में बालसाहित्य के लिए गुंजाइश और स्थान को कम कर दिया है, बावजूद इसके विपुल बालसाहित्य प्रकाशित हो रहा है।बच्चों में शुरू से ही उनके आसपास के परिवेश तथा उनमें घटित होने वाली घटनाओं के बारे में जानने-समझने की जिज्ञासा होती है। वर्तमान के बालक ऐसा साहित्य पसन्द करते हैं जो उनकी जिज्ञासा को बढ़ाये, उनका समाधान बताए। अब बने बनाए खाँचों से बाहर निकल कर बच्चों के लिए नई तरह की रचनाओं का सृजन करना समय का तकाजा है। कोरोना काल में मिले विश्राम में रचनाकारों ने प्रचुर बालसाहित्य का सृजन किया है जो वर्ष 2022 में प्रकाशित होकर पाठकों के बीच पहुंचा है। टेक्नोलॉजी के प्रसार ने भी पुस्तक प्रकाशन सुगम बना दिया है। प्रसन्नता का विषय है कि निजी प्रकाशन संस्थाओं के साथ ही भारत सरकार के प्रकाशन विभाग, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, साहित्य अकादमियों तथा अन्य संस्थाओं ने भी बालसाहित्य की खूब पुस्तकें प्रकाशित की है।
वर्ष 2020 एवं 2021 के हिंदी बालसाहित्य के आकलन पर लिखे गए मेरे आलेख को बहुत ज्यादा समर्थन मिला और चर्चा हुई। बालसाहित्य की पुस्तकों पर परिचयात्मक लेखन के बारे में मेरा दृष्टिकोण यही रहा है कि जनमानस अच्छे बालसाहित्य के बारे में जानें, उसे अपने बच्चों के लिए मंगवाए, बच्चों में पठन-पाठन के प्रति रुचि पैदा कर उन्हें पुस्तकों से जोड़ें, इस पर व्यापक चर्चा हो, उसे प्रतिष्ठा मिले। श्रेष्ठ बालसाहित्य सृजन करने वाले रचनाकारों को सम्मान व प्रोत्साहन मिले, शोधार्थियों को नई पुस्तकों के बारे में जानकारी प्राप्त हो सके। वर्ष 2022 बाल साहित्य के क्षेत्र में उत्साहित करने वाली उपलब्धियों से पूर्ण रहा और प्रकाशित पुस्तकों की सँख्या के पिछले सारे रिकॉर्ड टूट गए। कहानी, कविता, लोरी, प्रभाती, गीत, पहेलियाँ, उपन्यास, एकांकी, नाटक, पत्र, यात्रा वृतांत, जीवनी, आलोचना व विमर्श के साथ संपादित कृतियों की प्रमुखता रही है। कुछ अपवाद को छोड़ दें तो सभी पुस्तकें सुंदर चित्रों से सजी उच्चस्तरीय साज- सज्जा के साथ प्रकाशित हुई है जिन्हें बच्चे तो पसन्द करेंगे ही बड़े भी चाव से पढ़ेंगे।
यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि संगीत से भी ज्यादा रस बच्चे कहानी पढ़ने व सुनने में लेते हैं। दरअसल कथा-कहानी में एक अद्भुत आकर्षण होता है; इसलिए कहानी को बाल साहित्य की सर्वाधिक लोकप्रिय विधा माना गया है। वर्ष 2022 में बहुतायत से बाल कहानी विधा में पुस्तकें प्रकाशित हुई, चर्चित हुई। राजस्थान साहित्य अकादमी, केंद्रीय साहित्य अकादमी, प्रकाशन विभाग से श्रेष्ठ बाल साहित्य सृजन के लिए समादृत हो चुके लब्ध प्रतिष्टित साहित्यकार गोविन्द शर्मा विभिन्न विधाओं में लेखन करते हुये भी बाल साहित्य के प्रति समर्पित रचनाकार हैं। बाल साहित्य में विज्ञान के तथ्य पिरोता आपका रोचक कहानी संग्रह ‘दादाजी की अंतरिक्ष यात्रा’ अंतरिक्ष की यात्रा ही नहीं करवाता वरन सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के ग्रहों-नक्षत्रों, सूर्य ग्रहण-चन्द्र ग्रहण, वायुमंडल, सौरमण्डल आदि के बारे में बालकों को रोचक, सरल व सरस तरीके से जानकारी देता है। आपका दूसरा रोचक, मनोरंजक बाल कहानी संग्रह ‘सबकी धरती-सबका देश’ भी उल्लेखनीय हैं। गोविन्द शर्मा की पुस्तक ‘यह काली बंगा है’ भी इसी वर्ष प्रकाशित हुई जो पाँच हजार वर्ष पुरानी हड़प्पा कालीन संस्कृति ‘कालीबंगा’ से परिचित करवाते हुए बच्चों में पुरातत्व के प्रति उत्सुकता पैदा करने में सहायक है। सभी बड़े सम्मानों से समादृत संजीव जायसवाल ‘संजय’ लंबे समय से बच्चों के लिए लिखने वाले सर्वाधिक चर्चित, पढ़े जाने वाले रचनाकार है।आपकी बाल साहित्य पुस्तकों का देश-विदेश की शताधिक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। ‘बांसुरी वाला’ इस वर्ष प्रकाशित आपका श्रेष्ठ कहानी संग्रह है जिसमें निराश्रित बच्चों की शिक्षा, साम्प्रदायिक विद्वेष, वर्तमान में व्याप्त समस्याओं एवं विसंगतियों के निराकरण सहित पर्यावरण, प्रदूषण व जल संरक्षण पर प्रेरक बातें कही गई हैं। ख्यातनाम वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश पंकज का कहानी संग्रह ‘तितली की सीख’ में बच्चों को सीख देने वाली बीस कहानियाँ हैं। हर कहानी बच्चों में हौसला भरने वाली, जीवन को दिशा देने वाली, नैतिकता का संदेश देती, संस्कारों का बीजारोपण करती वर्तमान परिवेश की श्रेष्ठ कहानियाँ हैं जिनकी विषय वस्तु दिवाली से शुरू होकर ईद पर खत्म होती हैं।
समीर गांगुली लीक से हटकर लेखन करने वाले प्रयोगधर्मी रचनाकार हैं। वे विज्ञान और उसकी उपलब्धियों को सहज, सरल भाषा में बालकों के लिए प्रस्तुत करते हैं। आपके संग्रह ‘भोला की भोलागिरी’ में स्वस्थ मनोरंजन की बाल कथाएं है। अखिलेश श्रीवास्तव ‘चमन’ विभिन्न विधाओं के साथ ही बाल साहित्य लेखन व विमर्श में सिद्धहस्त हैं। आपके ‘रूठे बादल’ एवं ‘हीरा और बीरा’ संग्रह इस वर्ष प्रकाशित हुए हैं वहीं ‘सोनपरी से दोस्ती’ का दूसरा संस्करण आया है। छोटे-छोटे डर, आशंकाएं, सपने, उम्मीदें, साहस और सहज, सरल, सात्विक इच्छाएं इन बाल कहानियों की ताकत है जो नवीन शिल्प व चिंतन के साथ लिखी गई है। ‘सीक्रेट कोड और अन्य कहानियाँ’ एवं ‘गार्डन ऑफ बुक्स व अन्य कहानियाँ’ ख्यातनाम वरिष्ठ रचनाकार सुमन बाजपेयी के संग्रह है। इनकी कहानियों में विषयों की विविधता है जो वर्तमान परिवेश के बालकों की सोच, क्षमताओं और भावनाओं को स्पष्ट रूप से रेखांकित करती हैं। उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान से सम्मानित कुशल बाल कथाशिल्पी डॉ. दिनेश पाठक ‘शशि’ के ‘आत्म विश्वास’ में वर्तमान परिवेश के अनुरूप कथावस्तु से सज्जित सरल, सुरुचिपूर्ण और सन्देशप्रद कहानियां हैं। बालसाहित्य के स्थापित हस्ताक्षर डॉ. घमंडी लाल अग्रवाल ने बालमन की जिज्ञासाओं का जिक्र करते हुए सहज, सरल भाषा में छोटी-छोटी कहानियाँ लिखी हैं जो ‘सुनहरे पंख’ नाम से प्रकाशित हुई है। इनके दूसरे संग्रह ‘सात बाल कहानियाँ’ में प्रेरक कहानियाँ दी गई हैं। डॉ. घमण्डी लाल अग्रवाल का ही 25 बेहतरीन बाल कहानियों का तीसरा संग्रह है – ‘दादी की बेंत’। इस संग्रह की कथावस्तु के केंद्र में संस्कृति प्रेम, संस्कार, राष्ट्र-प्रेम, सकारात्मक सोच, आदर्श जीवन-दर्शन, पर्यावरण संरक्षण, ज्ञान-विज्ञान, शिक्षा-दीक्षा, ग्राम्य जीवन हैं जिन्हें रोचक, मनोरंजक, सहज, सरल तरीके से कहानियों में गुम्फित किया गया है। रूप सिंह चंदेल साहित्य जगत की ख्यातनाम हस्ती हैं। ‘श्रेष्ठ बाल कहानियाँ’ शीर्षक से आपके दो बाल कहानी संग्रह आना बालसाहित्य की प्रतिष्ठा में चार चांद लगा रहा है।ख्यातनाम वरिष्ठ बाल साहित्य रचनाकार डॉ. शशि गोयल का संग्रह ‘हरी आंखें’ बच्चों में श्रेष्ठ जीवन निर्माण के गुणों का बीजारोपण करने वाली बीस कहानियों का सुंदर संग्रह हैं। रीता कौशल ख्यातनाम रचनानकार हैं जो वर्तमान में आस्ट्रेलिया में बस गई हैं। ‘रंग बिरंगी बाल कहानियाँ’ उनका कहानी संग्रह है जिसकी कहानियों में विषयों की विविधता, नवीनता और श्रेष्ठ प्रस्तुतिकरण के कारण यह उत्कृष्टतम संग्रह के रूप में बालसाहित्य जगत में चर्चित है।सुपरिचित युवा रचनाकार डॉ. मोहम्मद अरशद खान के दो संग्रह ‘निक्की को न मत बोलना’ एवं ‘अनोखी यात्रा’ बच्चों को प्रिय लगते दो बेहतरीन संग्रह हैं।
वर्षों से बालसाहित्य सृजन, उन्नयन में लगे सुपरिचित रचनाकार राजकुमार जैन राजन के बाल कहानी संग्रह ‘शिक्षा का उजाला’ में बाल मनोविज्ञान के अनुरूप रोचक, मनोरंजक, ज्ञानवर्धक एवं प्रेरणादायी बाल कहानियाँ है, जिनसे बच्चे लाभान्वित होंगे। हेमंत यादव वर्षों से बच्चों के लिए कहानियाँ लिख रहे हैं। आपके ‘नन्हा चित्रकार’ एवं ‘सबसे बड़ी है मानवता’ घटना प्रधान बाल कहानियों के ऐसे बेहतरीन संग्रह है जिनमें जीवनमूल्यों पर आधारित, आत्मविश्वास, साहस, संकल्प, सूझ-बूझ व आदर्श को रोचक व नवीनता के साथ प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया गया है। डॉ. लता अग्रवाल का बालसाहित्य की विविध विधाओं में पूरा दखल है और वे अपने लेखन में नवीन प्रयोग के लिए पहचानी जाती है। वर्तमान सन्दर्भ एवं परिस्थितियों को दृष्टि में रखकर लिखा गया ‘आत्मविश्वास का तावीज़’ एक उत्तम बाल कहानी संग्रह है जिसके लिए चित्रांकन भी स्वयं लता जी ने ही किया है। नीलम राकेश सशक्त रचनाकार हैं। आपके संग्रह ‘चुलबुली कहानियाँ’, ‘लहरिया पतंग’ एवं ‘दीपा का संघर्ष’ बालसाहित्य की अनुपम कृतियाँ हैं जो छोटी-छोटी कहानियों में बड़ी बात कह देती हैं।बाल कहानी लेखन में वर्षों से सक्रिय ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ के इस वर्ष ‘अनोखा चोर’, ‘तोते का भूत’, ‘जादुई कंपास’, ‘गुब्बारे की सैर’, ‘साहसिक कहानियां’ एवं ‘डर चला गया’ शीर्षक से छः बाल कहानी संग्रह प्रकाशित हुए हैं।इनमें सूझबूझ, रोचकता, सरलता, साहस और युक्तियुक्त बातों को समाहित करती कहानियाँ संग्रहित की गई है। कुछ संग्रहों में कहानियों के साथ बच्चे चित्रों में रंग भी भर सकते हैं। रेनू मण्डल ऐसी साहित्यकार है जो वर्तमान समय में बालसाहित्य का बखूबी सृजन कर रही हैं। इनके ‘बादल की सवारी’ संग्रह में कल्पना शक्ति का पूरा उपयोग करते हुए उद्देश्यपरक, सहज, सरल और रचनात्मकता से भरपूर बाल कहानियाँ दी गई हैं। रामेश्वरी ‘नादान’ बालोपयोगी विषयों पर खूब लिखती हैं। इनके संग्रह ‘दादी माँ की पोटली’ में वर्तमान परिवेश की सुंदर, सार्थक कहानियाँ सँजोई गई हैं। यह संग्रह काफी चर्चा में है। बालसाहित्य के लिए समर्पित, प्रयोगशील संपादक/ रचनाकार निश्चल का ‘चंटू- बंटू’ रोचक, मनोरंजक कहानियों का खूसूरत संग्रह है जिसके पात्र चंटू- बंटू को एक दिन घर से निकाल दिया जाता है.. घटनाप्रधान इन कहानियों को पढ़ने में बच्चों को आनन्द आएगा।
बाल साहित्य जगत में तेजी से उभरता युवा नाम है – ललित शौर्य। आपके तीन बाल कहानी संग्रह- ‘स्वच्छता ही सेवा’, ‘जादुई दस्ताने’ एवं ‘जल की पुकार’ प्रकाशित हुए हैं जिसमें बच्चों को स्वच्छता के फायदों, विज्ञान की महत्वपूर्ण घटनाओं सहित जल एवं जल संरक्षण के महत्व के बारे में रोचक कहानियों के माध्यम से बताया गया है। ‘कुछ तुम बोलो- कुछ हम बोलें’ डॉ. बानो सरताज का कहानी संग्रह है जिसमें उन्होंने एक नया प्रयोग करते हुए देश-विदेश की लोककथाओं का उपयोग रोचकता के साथ किया है। ख्यातनाम वरिष्ठ रचनाकार गिरीश पंकज का ‘तितली की सीख’ बालमनोविज्ञान को ध्यान में रखकर लिखा गया कहानी संग्रह है। इसकी कहानियों में घर, परिवार, मित्र, शिक्षक है, प्रकृति व जीवों का सानिध्य है और रिश्तों के मध्य बढ़ती दूरियों को पाटने की पुरजोर कोशिश है। बालसाहित्य जगत में तेजी से उभरता नाम है- मीनू त्रिपाठी का।इनके दो कहानी संग्रह ‘पानी का बदला’ एवं ‘नल तो ठीक है’ आए हैं। विषयों के वैविध्य के साथ बालकों को अपने परिवेश व अपने मन की सी लगने वाली यथार्थ और सहज कहानियों में पर्यावरण व जल संरक्षण, रिश्तों का सम्मान, जीव- जंतुओं के प्रति अनुराग जगाने के साथ ही नैतिकता की सीख रोचक व मनोरंजक तरीके से देती है जो बच्चों को कहीं से भी बोझिल नहीं लगती। ख्यातनाम रचनाकार राजकुमार निजात के दो संग्रह ‘विदिशा का वृक्षारोपण’ एवं ‘दिव्या बन गई परी’ नाम से आये हैं। इन्हें पढ़कर बच्चों के मन में पर्यावरण के महत्व और उसके संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा होगी वहीं खेलों के प्रति रुझान, व्यक्तित्व विकास, सकारात्मक सोच, निर्णय क्षमता, शिक्षा के महत्व को भी बच्चे अंगिकार कर सकेंगे। बच्चों की प्रिय रचनानकार सुधा भार्गव का कहानी संग्रह है – ‘बूंदों की बरसात’। इसमें डिजिटल दुनिया के निरालेपन और रहस्यों की जानकारी देती, बचपन की चंचलता, चुलबुलापन एवं शैतानियों से भरपूर कहानियाँ है। डॉ. अलका जैन ‘आराधना’ की नटखट बच्चों की घटना प्रधान कहानियों के संग्रह ‘बचपन’ में बच्चों से जुड़े कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर मजेदार कहानियाँ हैं। कुसुम अग्रवाल का संग्रह ‘खट्टा मीठा बचपन’ उद्देश्यपूर्ण कहानियाँ होने के कारण प्रभावित करता है। ‘चिट्ठी वाले दिन’ ख्यातनाम रचनाकार डॉ. राकेश चक्र का ऐसा मनोरम संग्रह है जिसमें डाक विभाग के इतिहास, कार्य, महत्ता, स्वच्छता आदि पर बहुत ही रोचक शैली में जानकारी दी गई है। डॉ. शील कौशिक अनवरत सृजनरत रहते हुए बालसाहित्य के भंडार की श्रीवृद्धि कर रही है। ‘बंदर का मोबाइल प्रेम’ एवं ‘किटकिट गिलहरी ने पहना चश्मा’ आपके बालमनोविज्ञान की बारीकियों को केंद्र में रखकर लिखी गई कहानियों के अनुपम संग्रह हैं। मंजरी शुक्ला भी बालसाहित्य जगत में जाना-पहचाना नाम है। ‘बिंदकी का स्कूल’ संग्रह में बच्चों को पर्यावरण से जोड़ती, परिवार का महत्व समझाती, पशु- पक्षियों के प्रति अनुराग जगाती, रिश्तों का सम्मान सिखाती, पढ़ाई का महत्व बताती 16 रोचक कहानियाँ है। वहीं इनके दूसरे संग्रह ‘सुल्तान सुलेमान और तिलस्मी गुफाएँ’ में फंतासी कहानियाँ दी गई हैं जो बच्चों को रहस्यमय संसार की यात्रा करवाती रोमांच से भर देती हैं। अलका प्रमोद के ‘चलती का नाम गाड़ी’ संग्रह की कहानियाँ बच्चों को शिक्षा भी देंगी और मनोरंजन भी करेंगी ।
आधुनिक तकनीक, संचार क्रांति तथा सांस्कृतिक परिदृश्य ने बच्चों की अभिरुचियों व प्राथमिकताओं में भी परिवर्तन किया है। बाल विज्ञान को केंद्र में रखकर अभी तक कम ही बालसाहित्य प्रकाशित हो रहा है। इस वर्ष इस कमी को पूरा किया है ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ के कहानी संकलन ‘रोचक विज्ञान कथाएँ’ ने।वैज्ञानिक विषयों से जुड़ी कहानियों में जिज्ञासु बच्चों का स्वप्न में अंतरिक्ष यान में उड़ान भरना, वैज्ञानिक सोच से जुड़े सवालों के जवाब खोजना तथा उपदेश की बजाय कार्य व्यवहार से सीखने वाले बच्चों के सामर्थ्य को कम न आंकना, और निःस्वार्थ भाव से दूसरों की सहायता करने का संदेश है। यह पुस्तक बाल पाठकों को पसन्द आएगी, ऐसा विश्वास है।इसी तरह डॉ.अरविंद दूबे के बाल विज्ञान कहानी संग्रह ‘लौट आओ नीनो’ भी वैज्ञानिकता से भरपूर रोचक संग्रह हैं। पवन चौहान बाल साहित्य सृजन में काफ़ी सक्रिय हैं। इनकी प्रेरक कहानियों का संग्रह ‘बिंदली और लड्डू’ आया है जिसके रेखाचित्र इनकी बेटी आस्था ने बनाये हैं। जीवन निर्माण में प्रेरक, रोचक, ज्ञानवर्धक ‘कहानियों का पिटारा’ डॉ. अलका अग्रवाल का संग्रह है। ‘चाँद मेरा दोस्त’ युवा लेखिका नीरू सिंह का सम्भावनाओं से भरपूर पहला ही संग्रह है जिसमें बालमन से जुड़ी नई सोच-समझ को विकसित करने वाली कहानियां दी गईं हैं। उषा सोमानी ने अपने ‘मस्ती की पाठशाला’ संकलन में ऐसी मनोरंजक कहानियों को संजोया है जो बच्चों की कल्पनाओं को ऊंची उड़ान देते हुए खूब मनोरंजन करती हैं। कुसुम अग्रवाल का कहानी संग्रह ‘किस्से जंगल के’ बच्चों को प्रकृति से जोड़ने का कार्य करता है जो एक प्रेरक प्रयास है। नीना सिंह सोलंकी का ‘टीनू का पुस्तकालय’ और रोचिका अरुण शर्मा का ‘सिद्धू बन गया जादूगर’ नवीन कथ्य, शिल्प और सहज, बोधगम्य भाषा में रचे गए बेहतरीन बाल कहानी संग्रह है। डॉ गोपाल निर्दोष के संग्रह ‘गुल्लक’ की बाल कहानियाँ अनूठे शिल्प व रोचक तथ्य के कारण बच्चों को खूब पसंद आ रही है। कुसुमलता सिंह का ‘हवा की घण्टी’, कविता मुकेश का ‘हिना के कबूतर’, अल्पना वर्मा का ‘पंखों वाली राजकुमारी’, विमला रस्तोगी का ‘दो दूनी चार’, नरेश मेहन का ‘नन्हीं बदली’, डॉ. कृष्णलता सिंह का ‘सेल्फ़ी और इंद्र धनुष’, पूर्वेश डड़सेना का ‘इंद्रधनुषी बाल कहानियाँ’, शशि जैन का ‘हंगामा और ताबीज़’, मंशा जोशी का ‘जंगल मे चटर-पटर’, टिकेश्वर सिन्हा ‘गबदीवाला’ का ‘सुम्मी चिड़िया की सीख’, कल्पना भट्ट का ‘माँ की रोटी’ आदि भी वर्ष 2022 में प्रकाशित उल्लेखनीय बाल कहानी संग्रह हैं।
डायमंड पॉकेट बुक्स ने ‘भारत कथामाला’ के तहत राज्यवार ’21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियाँ’ शीर्षक से पुस्तक श्रृंखला का प्रकाशन किया है जो स्तुत्य है, इनमें राजस्थान, मध्यप्रदेश, झारखण्ड, पंजाब, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, हिमाचल आदि कई राज्यों के साथ आस्ट्रेलिया प्रवासी बालसाहित्य रचनाकारों को भी अवसर मिला है।यह बालसाहित्य को जन-मन तक पहुंचाने और इसे प्रतिष्ठा दिलाने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास है।इसी तरह डॉ. नवज्योत भनोत के संपादन में प्रकाशित संग्रह में 15 कहानीकारों की कहानियाँ बच्चों को हौसले और साहस के साथ सूझ-बूझ और सकारात्मक ढंग से जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। एक सफल प्रयास ओम प्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ने भी किया है।आपने अपने संपादन में ‘इंद्रधनुष’ शीर्षक से बाल कहानी श्रृंखला के 5-6 भाग प्रकाशित किये हैं। इधर वरिष्ठ बालसाहित्य सेवी डॉ. घमंडीलाल अग्रवाल के संपादन में एक साथ 15 बाल कहानी संकलन बड़ी ही सज-धज के साथ प्रकाशित हुए है- ‘बाल जासूसी कहानियाँ’, ‘बाल हास्य कहानियाँ’, ‘पर्यावरण की कहानियाँ’, ‘साहस/वीरता की कहानियाँ’, ‘पर्व/त्योहारों की कहानियाँ’, ‘प्रेरणाप्रद बाल कहानियाँ’, ‘अंतरिक्ष की कहानियाँ, ‘अच्छी आदतों की कहानियाँ’, ‘आत्मविश्वास बढ़ाने वाली कहानियाँ’, ‘बच्चों, अधूरी कहानी पूरी करो’, ‘सकारात्मक सोच की कहानियाँ’, ‘जीव-जंतुओं की कहानियाँ’, ‘विज्ञान संबंधी कहानियाँ’, ‘मिलकर काम करने की कहानियाँ’ एवं ‘शिशुओं के लिए कहानियाँ’।प्रत्येक संकलन में निम्नांकित 13 बाल कथाकारों की चुनी हुई कहानियां हैं : डॉ. दिविक रमेश, पद्मश्री प्रो. उषा यादव, डॉ. घमंडीलाल अग्रवाल, डॉ. नागेश पांडेय ‘संजय’, देशबंधु शाहजहाँपुरी, मोहम्मद साजिद खान, मोहम्मद अरशद खान, सुकीर्ति भटनागर, पवित्रा अग्रवाल, डॉ. सुधा गुप्ता अमृता, नीलम राकेश, रेनू सैनी और डॉ. कामना सिंह।इन सम्पादित संग्रहों के बहाने समकालीन बाल कहानीकारों की श्रेष्ठ बाल कहानियाँ पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए बालसाहित्य की प्रतिष्ठा में अनुपम कार्य किया है।
बाल कहानियों की तरह ही बच्चों को गीत-कविताएँ बहुत पसंद होते हैं। गीत-कविताओं के माध्यम से बच्चों को बहुत कुछ सिखाया जा सकता है। यहाँ हम वर्ष 2022 में प्रकाशित हिंदी बाल काव्य संग्रहों पर जानकारी देने का प्रयास कर रहे हैं। लोकप्रिय, स्थापित वरिष्ठ साहित्यकार बालस्वरूप राही जी का मुहावरों और कहावतों पर आधारित लय, गति, प्रवाह युक्त रोचक बाल कविता संग्रह ‘काला अक्षर भैंस बराबर’ एवं काव्य चित्रकथा कृति है- ‘जुगनू भाई’ चर्चा में हैं। इन कविताओं में सहजता है जो बालकों द्वारा खूब पसंद की जा रही है। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी, शिक्षाविद, चिंतक, समीक्षक, शिरोमणि सम्मानों से समादृत डॉ. सुरेंद्र विक्रम ने विपुल मात्रा में बालसाहित्य की रचना की है। बालमन को समझने की उनकी दृष्टि गहरी हैं। ‘पार्क हाथ से निकल गया’ 51 खूबसूरत बाल कविताओं का संग्रह है जिसमें बालमनोविज्ञान को बहुत सहजता से प्रस्तुत किया गया है वहीं ‘कविताओं में सुनो कहानी’ संग्रह में खूबसूरत, मनोरंजक कहानियों को पद्य रूप में प्रस्तुत किया गया है जो बच्चों को आनन्द प्रदान करेगा। साहित्य भूषण व लोहिया साहित्य सम्मान जैसे प्रतिष्टित सम्मानों से समादृत डॉ. गिरिजा शरण अग्रवाल हिंदी के जाने माने साहित्यकार और विद्वान है। आपके बाल गीतों और कविताओं के संग्रह ‘खेल खेलना बहुत जरूरी’ एवं ‘भालू दादा चले कार में’ पहली बार प्रकाशित हुए हैं। वरिष्ठ रचनाकारों का बालसाहित्य लेखन की तरफ़ प्रवत्त होना शुभ संकेत है। विशिष्ट सम्मानों से समादृत डॉ. नागेश पांडेय ‘संजय’ समर्पित भाव से सृजन व समीक्षा में लगे हुए हैं। इनके संग्रह ‘रोचक बाल कविताएँ’ में बच्चों के मन भाती सरस, सुंदर, मनभावन कविताएँ प्रस्तुत की गई हैं जो बच्चों को अच्छे-बुरे की समझ देगी और उनके व्यक्तिव के समग्र विकास में सहायक होगी।शताधिक पुस्तकों के सर्जक, कई सम्मानों से सम्मानित ऊर्जावान युवा रचनाकार डॉ. अंजीव अंजुम का राष्ट्रीय कविताओं से पगा बाल कविता संग्रह ‘भारत का जयगान’ इस वर्ष की सुंदरतम कृति है। श्यामपलट पांडेय समर्पित भाव से बालसाहित्य के उद्देश्य का निर्वहन करते हुए, अपनी कविताओं के माध्यम से बच्चों को मनोरंजन के साथ साथ शिक्षा देने का प्रयास भी कर रहे हैं। इनके दो नए संग्रह ‘नई राह है हमें बनानी’ और ‘ढोल बजाता चूहा आया’ प्रकाशित हुए हैं।अपने आस-पास की दुनिया से परिचित कराती ये कविताएँ बच्चों को भावनात्मक संरक्षण देने का काम करती है। श्यामा शर्मा राजस्थानी/हिंदी में बाल साहित्य सृजन कर रही हैं। आपका प्रौढ़ मन सदैव बच्चों की दुनिया में रमता रहता है और वे बच्चों के अपने मन, अपनी दुनिया की बातें कविताओं में ढालती रहती हैं। ‘चिड़िया रानी आओ ना’ ऐसी ही जानदार बाल कविताओं का उनका सुंदर संग्रह हैं।
बालकाव्य के मर्मज्ञ डॉ.आर. पी. सारस्वत के संपादन में 201 रचनाकारों की 555 बाल कविताओं का वृहद संकलन ‘बूंदों की चौपाल’ नाम से प्रकाशित हुआ है जिसमें समकालीन और पुराने रचनाकारों की कविताएँ संग्रहित की गई है।इसी तरह का वृहद संग्रह ‘प्रतिनिधि बाल कविता संचयन’ वर्ष 2021 में डॉ.दिविक रमेश के संपादन में साहित्य अकादमी द्वारा भी प्रकाशित किया गया था। इन संग्रहों द्वारा बाल काव्य सृजन परम्परा पर व्यापक प्रकाश डालने का सफल प्रयास हुआ है। ये बाल कविता संग्रह शोधार्थियों, बालसाहित्य के इतिहास लेखकों व रचनाकारों के लिए भी जरूरी हैं। इधर डॉ.आर. पी. सारस्वत के बालगीत संग्रह ‘यह बरगद का पेड़’ एवं किशोर बालगीत संग्रह ‘मन के पुष्प खिलाये रखिये’ में बालमन को मोहित करने वाले विविध विषयों पर इंद्रधनुषी कविताएँ संकलित की गई हैं। इन संकलनों की कविताएँ बच्चों ही नहीं बड़ों को भी विविध भावों से ओतप्रोत करवाती उनमें सकारात्मकता के साथ जीवन का लक्ष्य तय करने में भी सहायता करेगी। ‘मुझे चाहिए माँ का प्यार’ भाऊ राव महंत एवं ‘रंगबिरंगी तितली रानी’ योगीराज योगी के पहले ही कविता संग्रह है जो उन्हें समकालीन बाल साहित्य रचनाकारों की श्रेणी में समादृत करते हैं।दोनों संग्रह की कविताओं में भाव, विभाव, जिज्ञासा, सन्देश, सरलता, सहजता, स्प्ष्टता, सम्प्रेषणीयता के साथ बालमनोविज्ञान का पूरी तरह समावेश हुआ है। बालकों के वैचारिक सोच को सही दिशा देती उनके चारित्रिक विकास में सहायक नई सोच और नई शैली की बाल कविताएँ रचने में सिद्धहस्त राजपाल सिंह गुलिया का संग्रह ‘निर्मल देश हमारा’ की कविताएँ बच्चों के लिए उपयोगी सिद्ध होंगी। वरिष्ठ रचनाकरा शीला पांडे के ‘ताल कटोरा’ संग्रह की कविताएँ बच्चों के मनोरंजन के साथ साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करती हैं।
राजकुमार जैन राजन न केवल बालसाहित्य सृजन ही कर रहे हैं अपितु बच्चों तक बाल साहित्य पहुंचाने में लगे है। इनके संग्रह ‘बच्चों की रेल’ में सरल, सहज और बोधगम्य भाषा में लिखी 51 बाल कविताएँ प्रकाशित है जिनमें बच्चों की दुनिया को सुंदर व सरल शब्दों में प्रस्तुत किया गया है। ये कविताएँ बच्चे गाएंगे, गुनगुनायेंगे। प्रतिष्टित वरिष्ठ बाल साहित्य रचनाकार डॉ. शशि गोयल का नया बाल कविता संग्रह ‘अपनी धरती’ बदलती दुनिया के स्मार्ट बच्चों की अपनी कविताएँ हैं जिनमें विज्ञान, जिज्ञासाएं, पर्यावरण, मौसम के साथ वह सब कुछ है जिनसे उनकी दुनिया बनती-संवरती है। आभा दवे एक संवेदनशील रचनाकार है, इनका संग्रह ‘हम बच्चे’ की कविताएँ बच्चों को विविध भावों से ओतप्रोत कराती है। वरिष्ठ रचनाकार उषा सक्सेना की मोहक बाल कविताओं का संग्रह है – ‘आगड़ बम, बागड़ बम’। बच्चों की सहजता, सरलता, भोलापन सदैव मानव मन को लुभाता है। मनुष्य बड़ा होकर भी बचपन मे लौटने को लालायित रहता है, जो कि संभव नहीं है। बच्चों के मन में ही ज्ञानवर्धन के साथ अच्छे संस्कार भी रोपे जा सकते हैं इसके लिए किसी नैतिक उपदेश की आवश्यकता नहीं है, इसी को केंद्र में रखकर वरेण्य साहित्यकार डॉ. कुंदन माली का ‘कविता की गुल्लक’ शीर्षक बाल कविता संग्रह आया है जो बच्चों को बहुत पसंद आएगा। बालमन की गहराइयाँ अनन्त और अथाह हैं, उनमें गोते लगाना, उन्हें नापना और समझना सागर के तल में से मोती खोजने जैसा है ;अनिता गंगाधर का पहला ही बाल कविता संग्रह ‘नन्हीं बातें’ इसका प्रमाण हैं। सुरेशचंद्र सर्वहारा अनवरत बालसाहित्य सृजन कर रहे हैं।आपके ‘रहे सदा मुस्काता बचपन’ में बच्चों में मानवीय मूल्यों की स्थापना का सबल पक्ष प्रस्तुत करते हुए उनमें सकारात्मक एवं प्रगतिशील सोच विकसित करने का अनुपम प्रयास किया गया है। आशा खत्री ‘लता’ का बाल कविता संग्रह ‘एक पिटारी जादू की’ बालमन को भाने वाला सार्थक संग्रह है। बाल जीवन में छोटे-छोटे विषयों की उपादेयता व प्रेरकता को ध्यान में रखकर सरल, सरस भाषा में विनय बंसल द्वारा रचित बाल कविता संग्रह ‘सब कुछ है’ बाल पाठकों के लिए अच्छा संग्रह है।
साहित्य जगत के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. घमण्डी लाल अग्रवाल ने बच्चों के लिए सभी विधाओं में पुस्तकें सृजित की हैं। उनमें बाल मनोविज्ञान की ग़ज़ब की समझ हैं। वे बाल गीतों/ कविताओं की जब रचना करते हैं तो उनकी सोच के केंद्र में बालजीवन की प्रवृत्तियां, जिज्ञासाएं अवश्य होती हैं जिन्हें वे सहजता से काव्य में प्रस्तुत करते हैं। आपके तीन बाल कविता संग्रह मेरे सामने हैं- ‘सबसे अच्छे पापा’, ‘हँसी : मुफ्त का टॉनिक’ एवं ‘खाओ फल, पाओ बल’। जीवन के हर पक्ष को अग्रवाल जी ने कविता का रूप दिया है। जहां एक ओर पारिवारिक संस्कारों की कविताएँ है वहीं दूसरी तरफ़ जीवन, जगत में रहते हुए मस्त रहने, हंसते रहने और उल्लासमय जीवन की सृष्टि करने वाली बाल कविताओं से बच्चे अभिभूत होते है।बच्चों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूक करना भी रचनाकार का दायित्व है और इसका निर्वाह करते हुए डॉ. घमण्डी लाल अग्रवाल ने 58 प्रकार के फलों/मेवों पर रोचक कविताएँ लिखी हैं जो निसंदेह प्रेरक व ज्ञानवर्धक है। युवा कवयित्री प्रीतिमा पुलक की मनमोहक बाल कविताओं का संग्रह ‘नानी की नेहल’ की कविताएँ बच्चों को पसन्द आएगी। तेजी से उभरते युवा रचनाकार नन्दन पण्डित का सुंदर, मोहक, प्रेरक कविताओं का संग्रह ‘बोल कबूतर’ आया है जो सम्भावनाओं से परिपूर्ण हैं। ख्यातनाम रचनाकार कमलेश चंद्राकर का नर्सरी तक के बच्चों के लिए अनूठा शिशु गीत संग्रह है -‘सारा जहाँ हमारा है’। यह प्रसन्नता की बात है कि आज बच्चों में सृजनशीलता बढ़ रही हैं। बालसाहित्य जगत में बाल रचनानकार के रूप में तेजी से उभरता नाम है – दिशा ग्रोवर का। ‘शब्दों की शरारत’ खूबसूरत 51 कविताओं से सजा आपका संग्रह है जिसकी कविताएँ बच्चों को पर्यावरण संरक्षण व जीवन सुरक्षा के लिए जागरूक करती है, जो सहज, सरल, सरस व बालमन को छूने वाली हैं। अनुभव राज एक प्रतिभाशाली बच्चा है, जो शारीरिक रूप से भी दिव्यांग है, पर उसके व्यक्तित्व विकास में इससे कोई रुकावट नहीं आती। अनुभव राज का सकारात्मक, जीवंतता, प्रश्नाकुलता से भरी मनोरम बाल कविताओं का संग्रह ‘चिड़ियों का स्कूल’ नाम से प्रकाशित हुआ है। शिवम चौहन का बाल कविता संग्रह ‘नन्हें -मुन्ने गीत’ आया है। इन तीनों ‘बाल साहित्यकार’ की कविताएँ पढ़कर भविष्य के लिए उम्मीद जगती हैं।बच्चों की सृजनशीलता को पर्याप्त प्रोत्साहन व सम्मान मिलना ही चाहिए। डॉ. सतीश चंद्र भगत का ‘मस्त झूलते लीची लाल’, विमला रस्तोगी का ‘अपनी धरती अपना देश’ बाल कविता संग्रह भी उल्लेखनीय हैं।
भारतीय जनमानस में लोरियों, प्रभातियों का विशेष महत्व हैं। माताएं बच्चों को सुलाने के लिए इनका उपयोग करती हैं तो प्रभातियाँ सभी आयु के मनुष्यों में नई ऊर्जा का संचार करती रही हैं। प्रसन्नता की बात है कि उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान से सम्मानित डॉ. राकेश चक्र ने ‘मेरी प्रिय बाल लोरियाँ’ एवं ‘मेरी प्रिय बाल प्रभातियाँ’ पुस्तकों की रचना कर न केवल बालसाहित्य संसार को समृद्ध किया है अपितु बच्चों, माताओं के साथ बड़ों को भी अनुपम रचनाएँ सौंपी हैं। डॉ. मेजर शक्तिराज मुख्यतः छंद के कवि हैं उन्होंने बाल कविताओं का विपुल मात्रा में लेखन किया है। वे भी हमारी भूली- बिसरी विरासत से वर्तमान के बालकों को परिचित करवाने अपना लोरी प्रभाती संग्रह ‘मुझको दूध बिलोने दे’ लेकर आए हैं। ‘पहेलियाँ’ सदा से ही विभिन्न स्वरूपों में जनमानस में प्रवाहमान रहते हुए उत्साह और रोमांच की सृष्टि करती रही हैं। बाल पहेलियाँ बच्चों के ज्ञान के विस्तार के साथ मनोरंजन का भी साधन एवं माध्यम हैं। सुप्रसिद्ध साहित्यकार, वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अजय जनमेजय की बाल मनोविज्ञान एव बाल समस्याओं पर गहरी समझ हैं। आपने बाल साहित्य की हर विधा में लिखा है। आपका बाल पहेली गीतों का वृहद संकलन ‘गाओ, बूझो, जानों’ में हर पहेली गीत को दो पेज दिए गए हैं जिसमे गीत के अंत में जिस विषय पर पहेली रची गई है उस पर एक प्रश्न पूछा गया है फिर- रंग भरिये, रास्ता बताइये, संख्या बताइये, चित्र पूरा कीजिये जैसी चित्र पहेली दी गई है। यह प्रयोग अद्भुत है और बच्चों के लिए प्रेरक भी। इसी संकलन के पहेली गीतों को अलग-अलग चार पुस्तकों के रूप में भी प्रकाशित किया गया है। बालसाहित्य के यशश्वी रचनाकार दीनदयाल शर्मा का ‘एक सौ एक बाल पहेलियाँ’ एक अनुपम संकलन है, जिसमें बाल जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर रोचक पहेलियाँ प्रस्तुत की गई हैं। मनस्वी रचनाकार डॉ. राकेश चक्र का ‘मनभावन बाल-बुझ पहेलियाँ’ संग्रह आया है, इसमें हर पृष्ठ पर विषय केंद्रित पांच- छः बाल पहेलियाँ दी गईं हैं। डॉ.अंजीव अंजुम का ‘स्वतंत्रता की पहेलियाँ’ संग्रह भी महत्वपूर्ण कृति है जो स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में सहज ही जानकारी देती है। लोरियाँ, प्रभातियाँ, पहेलियाँ केंद्रित पुस्तकें बालसाहित्य की धरोहर होती हैं जिसमें समकालीन लेखन का इतिहास भी समाया रहता है। कबीरपंथी संत दिनेन्द्र दास द्वारा रचित ‘मेरी मजेदार 222 बाल पहेलियाँ’ संग्रह में वैज्ञानिक उपकरणों, शहरों, प्रान्तों, महापुरुषों, देवी-देवताओं, फल-सब्जियों आदि के नामों को अपनी पहेलियों का वर्ण्य विषय बनाया है। सभी रचनाकारों के इस शाश्वत प्रयास का विपुल स्वागत होना चाहिए।
बच्चों के मानस पटल पर नाटकों/ एकांकियों का अत्यंत प्रभाव पड़ता है। बोझिल, क्लिष्ट व कठिनाई स्तर के विषय को नाटक/एकांकी के माध्यम से सहजता, सरलता और सुगमता से बच्चों तक सम्प्रेषित किया जा सकता है। वर्तमान हिंदी बालसाहित्य में सबसे अधिक कमी यदि किसी विधा में है तो वह है बाल नाटकों व एकांकी की।बाल कहानियों, कविताओं, उपन्यासों और सूचनात्मक साहित्य की तुलना में अच्छे बाल नाटक और एकांकी बहुत कम लिखे जा रहे हैं। इसीलिए अक्सर मंचन के लिए अच्छे बाल नाटकों एवं एकांकी की स्क्रिप्ट्स की बहुत कमी रहती है। जबकि एकांकी/नाटक बच्चों में सृजनात्मकता व कल्पनाशीलता के विविध आयामों में वृद्धि करते हैं। कुसुम अग्रवाल के बाल एकांकी संग्रह ‘हम सब एक हैं’ में 15 बाल एकांकी संग्रहित किये गए हैं। इनमें एकता, नैतिकता, सत्य, प्रेम, भाईचारे के सन्देश के साथ सामाजिक समस्याओं, पुरानी सोच, अंधविश्वास आदि मुद्दों को भी उठाया गया है वहीं प्लास्टिक से होने वाले नुकसान, सड़क सुरक्षा जागरूकता, रंग भेद की समस्या, लिंग भेद, स्वछता की जरूरत, स्वास्थ्य व उचित भोजन की समझ जैसे विषयों को भी इन बाल एकांकियों का विषय बनाया गया है। सुनील गज्जानी का ‘एक वन दो राजा तथा तीन अन्य नाटक’ में चार लघु बाल नाटक संग्रहित हैं। इन नाटकों के माध्यम से रचनाकर ने वाचिक भाषा के माध्यम से बच्चों की प्रतिभा के विकास में अभिभावकों की भूमिका, जीवन की विसंगतियों, प्रजातंत्र की सरंचना और महत्व के साथ सैल्फी लेने के शौक के चलते होने वाले खतनाक हादसों के बारे में इन नाटकों के माध्यम से रूबरू करवाया है। नाटकों में मनोरंजक हास्य भी हैं इस कारण बालमन पर ये अपना प्रभाव छोड़ने में सफल हुए हैं।
रूस के महान साहित्यकार निकोलाई नोसोव के कहानियों के पात्र ‘नजानू’ को विभिन्न नाटकों में ढ़ालकर प्रस्तुत किया गया। हिंदी में इसका नाट्य रूपांतरण चर्चित नाटककार कविता सुरेश ने किया है जो ‘नजानू के रंग’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। नजानू नामक बालक इस नाटक का मुख्य पात्र है जो अपनी शरारतों और उल्टी-पल्टी हरकतों से हास्य व गुदगुदी करता है। बच्चों को इसमें बहुत आनन्द आएगा। प्रताप सहगल के छः बाल नाटकों का संग्रह
‘नई रीत तथा अन्य बाल नाटक’ बच्चों के लिए मनोरंजक तरीके से लिखे गए सुंदर, सार्थक नाटक है। ‘खुशियों की दुनिया’ ख्यातनाम साहित्यकार हेमंत कुमार द्वारा लिखा गया बालमन में सम्प्रेषण की दृष्टि से अच्छा नाटक संग्रह है जिसमें तोते राजा के माध्यम से उन समस्याओं पर करारा व्यंग्य किया गया है जो आज हमारे बच्चों की शिक्षा व्यवस्था के सामने प्रश्नचिन्ह बनकर खड़े हैं। संवाद छोटे- छोटे और सरल- सहज हैं। वरिष्ठ साहित्यकार विमला रस्तोगी ने भी उल्लेखनीय बाल पद्य नाटक ‘शहीद की माँ लिखा’ है जो अपने देश के प्रति सम्मान की भावना जगाने में सहायक है।
हिंदी में वरिष्ठ पाठकों की तरह किशोरों व बालकों के लिए बाल उपन्यासों का जन्म भी बीसवीं सदी के आरंभ में हुआ। बच्चों के लिए उपन्यास लेखन का सामान्य अर्थ है – उनकी कहानी उनकी ही भाषा मे लिखी गई हो, जिसे पढ़कर बालक को ऐसा लगे कि उसमें सम्पूर्ण घटनाक्रम उसी से जुड़ा हुआ है। वर्तमान समय में बाल-उपन्यास के विषय वैविध्य में बहुत व्यापकता आई है और बच्चों के बीच उपन्यास की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। बाल उपन्यास बहुत ही कम लिखे गए पर वर्तमान दशक में कुछ लेखकों के बहुत सुंदर, रोचक उपन्यास भी आये, जिन्होंने बच्चों के मन को रचना के साथ जोड़ने में सफलता पाई है। कई नए उपन्यासकार भी सामने आए हैं।समय, परीवेश के अनुसार उपन्यासों के कथानक भी बदलते रहे हैं। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा ‘बाल साहित्य भारती सम्मान’ से समादृत पटियाला निवासी वरिष्ठ रचनाकार श्रीमती सुकीर्ति भटनागर एक ख्यातनाम बालसाहित्य रचनाकार हैं जिन्होंने अब तक बच्चों के लिए सात उपन्यासों सहित सत्रह बाल कहानी संग्रह, चार बाल कविता संग्रह की रचना की है। बाल व किशोर वय पाठकों के लिए वर्ष 2022 में ‘धरोहर’ शीर्षक से प्रकाशित आपका बाल उपन्यास एक बेहतरीन कृति है।रचनाकार सुकीर्ति भटनागर ने विज्ञान के सिद्धांतों, पुरातत्व की महत्ता, पर्यावरण संरक्षण, वृक्षारोपण का महत्व, अंधविश्वास उन्मूलन, मानव सेवा और सकारात्मक सोच से बाल पाठकों को जोड़ने का प्रयास बड़ी कुशलता से किया है, यही उपन्यास लेखन की सार्थकता भी है। एक अनुभवी उपन्यासकार का जीवन, जगत और राष्ट्र के प्रति विशेष दृष्टिकोण होता है जो किसी न किसी रूप में उपन्यास के पात्रों व घटनाओं के माध्यम से अभिव्यक्त होता है। इस उपन्यास में आँचलिक बोली व शब्दों का प्रयोग भी किया गया है जो आँचलिक भाषा के संरक्षण के लिए भी स्तुत्य प्रयास कहा जायेगा। संजीव जायसवाल ‘संजय’ वर्तमान में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले बालसाहित्य रचनाकार हैं। ‘सूर्य मंदिर और रहस्यमयी गुफाएँ’ आपका नया बाल उपन्यास हैं जो अन्याय के प्रतिकार और अपनी धरोहरों की रक्षा के लिए हर जोख़िम से जूझने वाले दो दोस्तों के साथ घटी अप्रत्याशित घटनाओं की रहस्य, रोमांच, मनोरंजन से भरपूर कहानी हैं जो तार्किकता से पूर्ण है। ‘मंदिर का रहस्य’ सुप्रसिद्ध रचनाकार सुमन बाजपेयी का नया उपन्यास है। यह दो भाईयों की कहानी है जो छुट्टियां बिताने अपने अंकल के यहाँ जाते हैं और एक दिन जंगल के मंदिर में सामना होता है रोमांचकारी, रहस्यमयी घटनाओं से। बाल पाठकों को बांधे रखने वाले सहज, सरल भाषा में लिखा रोचक उपन्यास है यह।
बालसाहित्य जगत में समीर गांगुली का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। लीक से हटकर वैज्ञानिक सोच, नवीन कथ्य एवं विशिष्ट शिल्प के साथ लिखे आपके कई बाल कहानी संग्रह और उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। आपने ‘ मायावन धन धना धन’ उपन्यास के माध्यम से शेयर बाज़ार की बारीकी की बेहद अच्छी जानकारी बच्चों के लिए मजेदार तरीके से दी है। ‘मिशन ग्रीन वॉर’ समीर गांगुली का इस वर्ष प्रकाशित होने वाला दूसरा उपन्यास है। बिलकुल साधारण बातें जो हम, आप या कोई दूसरा लेखक भी सोच नहीं सकता था उसे सोच कर समीर गांगुली ने बच्चों के लिए रोचक वैज्ञानिक उपन्यास की रचना कर दी जिसमें रहस्य एवं रोमांच का ऐसा ताना-बाना बुना गया है कि उसमें पठनीयता बनी रहती है। अपहरण की वारदातें, ड्रग माफिया का प्रवेश, विदेशी शक्तियों की दखलंदाजी के ऊपर देशभक्ति की भावना भारी पड़ती है।आधुनिक प्रयोगशालाएं एवं उनकी सुरक्षा तथा निगरानी की अद्भुत प्रणालियाँ पाठकों को एक बिलकुल अलग दुनिया की सैर कराती है। कुल मिलाकर यह बिल्कुल अलग सोच का एक महत्वपूर्ण उपन्यास है और प्रस्तुतीकरण में नवीनता के कारण बच्चे इसे एक ही बैठक में पढ़ लेंगे।
हिंदी व सिंधी भाषाओं के वयोवृद्ध विद्वान रचनाकार हूंदराज बलवाणी के साहित्य अकादमी द्वारा पुरष्कृत सिंधी बाल उपन्यास का स्वयं द्वारा हिंदी में किया अनुवादित संस्करण है- ‘जंगल एक अनोखा-सा’। पशु-पक्षियों को पात्र बनाकर दिलचस्प और प्रेरणादायक छोटी-छोटी घटनाओं को इस उपन्यास में संजोया गया है। जंगल के सभी प्राणी कैसे अपने जंगल को आदर्श एवं आधुनिक बनाने के लिए प्रयत्नशील हैं। बच्चों को अच्छे काम करने की प्रेरणा देता यह एक मनोरंजक उपन्यास है। मोहम्मद अरशद खान का ‘चार लघु उपन्यास’ ,में बालमन के रोचक लघु उपन्यास है। इस वर्ष आये बाल उपन्यासों में गिरीश पंकज का ‘बहादुर गोलू’, ख्यातनाम वरिष्ठ रचनाकार मधु पंत का मनोरंजक भवनाओं से ओतप्रोत उपन्यास ‘ढुइयाँ’ एक बालक के रोचक कथानक को केंद्र में रखकर लिखा गया है। कल्पना भट्ट का ‘पेड़ चोरों का रहस्य’ भी उल्लेखनीय उपन्यास हैं।
बालसाहित्य लेखन भी आज विविध आयामी रूप लेता जा रहा है। यह समय, परिवेश की आवश्यकता भी हैं। भारत में ऐसी कई महान विभूतियां हुई है जिनका जीवन प्रेरक रहा है। ऐसी महनीय विभूतियों से वर्तमान पीढ़ी को परिचित करवाने का प्रयास राजकुमार यादव ‘सरस्’ ने किया है बच्चों के लिए ‘हमारे प्रेरणा स्त्रोत’ पुस्तक सरल भाषा में लिख कर। डॉ. राकेश चक्र की पुस्तक ‘भारत के गौरव: स्वामी विवेकानन्द’ का जिक्र करना उचित हैं। डॉ. अंजीव अंजुम की आत्म कथात्मक शैली में लिखी गई पुस्तकें ‘मैं कल पानी हूँ’ एवं ‘मैं हूँ जलियांवाला बाग’ बेहतरीन पुस्तकें है। आज बालकों के व्यक्तित्व विकास को लेकर रेनू सैनी ने बच्चों के लिए कई प्रेरक पुस्तकों की रचना की है। इस वर्ष इनकी दो पुस्तकें ‘रुको मत, आगे बढ़ो’ और ‘अपने चाणक्य स्वयं बनें’ प्रकाशित हुई हैं। पौराणिक पात्रों, ग्रन्थों को लेकर रचा गया साहित्य आज भी बच्चों में बहुत लोकप्रिय हैं जो उन्हें हमारी उज्ज्वल भारतीय संस्कृति, इतिहास और परम्पराओं के प्रति जागरूक बनाएगा। दीपक गोस्वामी ‘चिराग’ ने खड़ी बोली में ‘बाल रामायण लिख कर बच्चों के लिए एक सुंदर कार्य किया हैं। वहीं रामलखन प्रजापति ‘प्रतापगढ़ी’ ने रानी लक्ष्मीबाई की सेना में सैनिक रही ‘वीरता की प्रतीक झलकारी बाई’ की गौरव गाथा से बच्चों को परिचित कराने का स्तुत्य प्रयास किया है।
समीक्ष्य वर्ष 2022 में हिंदी बालसाहित्य समीक्षा, विमर्श पर भी कई पुस्तकें प्रकाशित हुई है। जिनमें डॉ.सुरेंद्र विक्रम द्वारा सृजित ‘बाल साहित्य : परम्परा प्रगति और प्रयोग’ खासा चर्चित रहा। संकल्पशक्ति व श्रमशील व्यक्तित्व के धनी डॉ. सुरेंद्र विक्रम ने बालसाहित्य में शोध, समीक्षा व विमर्श पर व्यापक कार्य किया है। इस ग्रन्थ को 20 अध्यायों में बाँटकर बालसाहित्य से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर व्यापक चर्चा करते हुए बालसाहित्य के उद्भव, विकास, चुनौतियाँ, प्रभाव, परिवर्तन, सम्मान आदि विभिन्न पहलुओं पर प्रभावी ढंग से प्रकाश डाला है। आपका दूसरा महत्वपूर्ण ग्रन्थ ‘हिंदी बालसाहित्य: शोध का इतिहास’ है। डॉ. सुरेंद्र विक्रम ने बाल साहित्य में अब तक किए गए 200 से अधिक शोध प्रबंधों की जानकारी व उनका सारांश, शोधार्थियों का विवरण व विश्वविद्यालयों की जानकारी आदि देकर इसे एक जरुरी व अनूठे ग्रन्थ का रूप दिया हैं। रमा शंकर नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उनके द्वारा संपादित ‘बाल कहानियों का इतिहास’ ग्रन्थ उनकी निष्ठा व श्रम को दर्शाता है जिसमें लगभग सभी भारतीय भाषाओं को समाहित किया गया है। डॉ. सोनाली निनामा ने गहन अध्ययन व शोध के साथ ‘इक्कीसवीं सदी का बाल साहित्य’ शोध ग्रन्थ तैयार किया है। डॉ. अनसुइया अग्रवाल ने ‘छत्तीसगढ़ी बालसाहित्य : परम्परा एवं विकास’ शोधग्रन्थ सृजित कर एक अनुपम कार्य किया है।
‘बालसाहित्य के प्रसार की दिशा में सर्वाधिक सक्रिय, उत्साही लेखक राजकुमार जैन राजन ने समकालीन बालसाहित्य की समीक्षा की दिशा में बड़ी पहल की। वे वर्ष 2021 में प्रकाशित बालसाहित्य पर पैनी नजर रखते हुए नियमित रूप से न केवल समीक्षात्मक आलेख लिखते रहे वरन उनके नियमित प्रकाशन के प्रति भी सजग और प्रतिबद्ध रहे। उसी निष्ठा और समर्पण का सुपरिणाम है यह प्रस्तुत कृति ‘वर्ष 2021 का हिंदी बाल साहित्य : एक आकलन’ जिसका जोरदार स्वागत होना चाहिए। राजकुमार जैन राजन मूलत: बाल साहित्य के सर्जक और प्रसारक रहे हैं। बाल साहित्य को बच्चों तक पहुँचाने के लिए उन्होंने व्यक्तिगत रूप से जितना धन खर्च किया, किसी ने भी न किया होगा। बाल साहित्य उन्नयन व संवर्धन के लिए उनकी योजनाएं श्लाघनीय हैं। वर्ष 2021 के बालसाहित्य का सुंदर आकलन परोसती राजकुमार जैन राजन की यह पुस्तक माता-पिता, अभिभावकों, शिक्षकों, संपादकों, शोध कर्ताओं के साथ-साथ लेखकों के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। यह प्रस्तुति भविष्य में बाल साहित्य के इतिहास लेखन में भी सहायक सिद्ध होगी।’ (व. साहित्यकार डॉ. नागेश पांडेय ‘संजय’ द्वारा लिखित, इस पुस्तक की भूमिका से उद्धरित)। बालसाहित्य जगत के वरेण्य हस्ताक्षर डॉ. दिनेश पाठक ‘शशि’ ने ‘बाल साहित्य : एक विमर्श’ पुस्तक का सृजन करके निश्चय ही स्तुत्य कार्य किया है। इस पुस्तक में उनकी चिंता व चिंतन से उपजे छः आलेख हैं जो बालसाहित्य के क्षेत्र में ऐतिहासिक भूमिका का निर्वहन करेगा। उपरोक्त और अन्य शोध, समीक्षा व विमर्श ग्रन्थ बाल साहित्य के शोधार्थियों, अध्येताओं, पाठकों के लिए उपयोगी हैं।
बालसाहित्य के महत्व व आवश्यकता को समझते हुए इस वर्ष कई पत्रिकाओं ने अपने ‘बालसाहित्य विशेषांक प्रकाशित किये। इनमें ‘साक्षात्कार’ (संपादक: डॉ.विकास दवे), ‘साहित्य गुंजन’ (संपादक: राजकुमार जैन राजन), ‘माही सन्देश’ (संपादक: रोहित कृष्ण नन्दन), ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ (संपादक: डॉ. सुशील त्रिवेदी),’सृजन कुंज’ (संपादक: डॉ कृष्ण कुमार आशु’, ‘सोच विचार’ ( संपादक: नरेन्द्रनाथ मिश्र) एवं ‘नव चेतना’ (शालिनी शर्मा) आदि सफल व चर्चित रहे हैं।
कह सकते हैं कि वर्ष 2022 हिंदी बाल साहित्य सृजन व प्रकाशन के क्षेत्र में ऐतिहासिक उपलब्धियों वाला रहा है। यह आकलन प्रस्तुत करते हुए कुछ पुस्तकों का विवरण छूट जाना स्वाभाविक है, ऐसा सूचना, जानकारी के अभाव में ही हुआ है। छूट गए रचनाकारों से मैं विनम्रता पूर्वक क्षमा चाहता हूं। विपुल मात्रा में उत्कृष्ट बालसाहित्य सृजन होने के बावजूद, कुछ अपवादों को छोड़ दें तो आज भी अधिकतर सृजन आदर्श, उपदेश, सदाचार, नैतिकता आदि को केंद्र में रखकर ही हो रहा है। आज बालसाहित्य के नाम पर इतना सारा कूड़ा-कर्कट भर दिया गया है कि उसकी सड़न-दुर्गंध से बाल साहित्य जगत प्रदूषित होने लगा है। नई तकनीकी ने पुस्तक प्रकाशन सुगम तो बना दिया है पर गुणवत्ता समाप्त हो गई है। कई रचनाकारों ने कम्प्यूटर से पेज प्रिंट कर उन्हें पुस्तक का रूप दे दिया है। इनमें भाषायी अशुद्धियाँ भी अक्षम्य है। यह आत्ममुग्धता भी बालसाहित्य के संवर्धन में घातक सिद्ध होगी। विश्व में बाल साहित्य नए -नए विषयों के साथ आ रहा है। विज्ञान, तकनीकी और संचार के इस युग में जब बच्चे सर्वाधिक सूचनाओं को आत्म सात करना चाहते हैं, उनके भीतर वैज्ञानिक चेतना जगाने के लिए विज्ञान के तथ्यों पर आधारित लेखन करना होगा। वैज्ञानिक चेतना से युक्त रचनाएँ बच्चों को पूरी मानसिक खुराक उपलब्ध करवाने, बच्चों में एक तर्कशील काल्पनिकता का विकास करने के साथ ही भविष्य के नए सामाजिक सन्दर्भों के साथ अनोखे समाधान भी सुझाती हैं। समय आ गया है कि बालसाहित्य में नए विषय खोजे जाएं, उन पर विभिन्न विधाओं में लेखन किया जाए। बालसाहित्य जगत में नवांकुर भी आए हैं, वे बहुत अच्छा लेखन कर भी रहे हैं। उन्हें उचित प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। बाल साहित्य लेखन की सबसे बड़ी चुनौती है पठन -पाठन में कमी और बालसाहित्य की पुस्तकें उसके वास्तविक हकदार ‘बालक’ तक नहीं पहुंच पाना। रचनाओं की दृष्टि से निःसन्देह इक्कीसवीं शताब्दी स्वर्णिम युग है। आज हिंदी बाल साहित्य अपनी महत्ता सिद्ध करने में सफल हो रहा है। इक्कीसवीं सदी भारत के बच्चों के उन्नयन और विकास के लिए है। इस सदी में बालसाहित्य का परिमार्जित स्वरूप सामने आ रहा है। श्रेष्ठ लेखन अच्छे रूप में प्रस्तुत हो रहा है जिसका सम्मान हिंदी जगत में हुआ है। राष्ट्रीय विकास धारा के साथ आज हमारा बालसाहित्य कदम से कदम मिला कर चल रहा है।इंटरनेट, कम्प्यूटर, मोबाइल जैसी उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण बच्चों में अच्छे संस्कारों की बजाय कुसंस्कारों का बीजारोपण अधिक हो रहा है।आज के साइबर युग में यदि हमने भावी पीढ़ी को स्वस्थ बालसाहित्य उपलब्ध कराने व पढ़ने को प्रेरित करने की जिम्मेदारी नहीं ली तो आने वाली पीढ़ी संस्कारों से विहीन हो जाएगी। साहित्यकारों, शिक्षकों, अभिभावकों को आगे आकर अपने घर, परिवार, गली, मुहल्ले, गाँव, शहर से ही इस पवित्र कार्य की शुरुआत करनी चाहिए। अपने घर के बजट में कुछ राशि बाल साहित्य की पुस्तकों की खरीद के लिए भी रखनी होगी। अभी भी वक्त हैं, हम सब चेतें और बाल साहित्य को उसके असली हकदार बालकों तक पहुँचाने के कार्य को एक आंदोलन के रूप में करें।बौद्धिक बहसें व विमर्श वरिष्ठ लोगों के लिए चिंतन तो प्रकट कर सकता है पर बच्चों का भला नहीं कर सकता है।यह भी नहीं भूलना चाहिए कि संस्कृति निर्माण में बाल साहित्य की अहम भूमिका रही है और रहेगी भी।