पिछले सप्ताह सोशल मीडिया पर मंजिल फिल्म का गाना ‘रिमझिम गिरे सावन, सुलग-सुलग जाए मन…’ का एक वीडियो खूब वायरल हुआ था। मुंबई के एक मध्यम उम्र का युगल वंदना और शैलेश इनामदार ने इस गाने को रिक्रीएट किया था। मतलब यह कि ये दोनों मुंबई की बरसात में उन तमाम लोकेशंस पर उसी तरह साथ-साथ घूमे थे, जिस तरह फिल्म में अमिताभ बच्चन और मौसमी चटर्जी ने गाना गाया है। इसके बाद बैकग्राउंड में इस गाने को डाल कर इसका वोडियो अपलोड किया। यह वीडियो हजारों लोगों के दिल को छू गया। उन्होंने इस वीडियो में ऐसा ही प्यार और उन्मुक्तता दर्शाई थी, जैसा अमिताभ बच्चन और मौसमी चटर्जी ने असली गाने में दर्शाई थी।
1979 में आई फिल्म ‘मंजिल’ का यह गाना हिंदी सिनेमा के सर्वश्रेष्ठ वर्षागानों में सब से ऊपर है। 40 सालों से यह गाना भारत की सिनेमाप्रेमी जनता में उतना ही सदाबहार रहा है। हर साल वर्षा ऋतु आती है तो इस गाने को लोग अलग-अलग तरह से अलग-अलग जगह पर याद करते हैं। गाने के इस शाश्वत जादू के कारण ही उस युगल में यह विचार आया था कि फिल्म की इस बम्बैया बरसात में अमिताभ और मौसमी की जगह वे हों तो कैसा रहेगा?
यह गाना क्यों इतना लोकप्रिय है? इसका पहला कारण यह है कि (और यह सब से महत्वपूर्ण भी है) यह गाना स्टूडियो की नहीं, असली बरसात में शूट हुआ है। निर्देशक बासु चटर्जी फिल्म के अजय चंद्र (अमिताभ बच्चन) और अरुणा खोसला (मौसमी चटर्जी) को मुंबई की प्रसिद्ध लोकेशंस पर गाना गाते दिखाना चाहते थे। एक ही सेट पर यह संभव न होता, इसलिए अंतिम समय में यह निर्णय लिया गया था कि कलाकार और टेक्निशियन अलग-अलग लोकेशंस पर जाएंगे और गाना शूट करेंगे।
इसलिए पूरे गाने में एक तरह से प्रामाणिकता आई। जो लोग मुंबई की बरसात से परिचित हैं, उन्हें पता है कि इस शहर की मरीन ड्राइव, ओवल मैदान, विक्टोरिया टर्मिनस जैसी लैंडमार्क जगहों में बरसती बरसात का अनुभव जादुई होता है। जिस जगह आपने बरसात का आनंद लिया हो, उसी जगह अमिताभ और मौसमी भीग रहे हों, वह दृश्य खूब आत्मीयता पैदा करने वाला होगा।
अमिताभ बच्चन और मौसमी उस समय बहुत फेमस नहीं थे, इसलिए ऐसी सार्वजनिक जगहों पर शूटिंग आसानी से हो गई थी। मौसमी चटर्जी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि अमिताभ के बड़े भाई अजिताभ इसमें साथ थे और वही दोनों कलाकारों को अपनी कार में एक जगह से दूसरी जगह ले जा रहे थे। यूनिट वालों के कहने पर दोनों कार से उतर कर इधर-उधर घूमते थे और फिर कार में बैठ जाते थे।
गाना तो बैकग्राउंड में बज रहा था और उन्हें होंठ नहीं चलाना था (ऐसा क्लोजअप संभव भी नहीं था) इसलिए बासु चटर्जी ने कहा था कि तुम लोगों की जैसी इच्छा हो, उस तरह बरसात में घूमना, मेरी ओर से सहज और प्रामाणिक चलना-फिरना दिखाना है। इसलिए अगर आप ध्यान से देखें तो गाने में कोई स्टेप्स या हावभाव रिहर्सल नहीं किया है। एक साधारण बम्बैया युगल की तरह अमिताभ और मौसमी बरसात का (और एक दूसरे के साथ का) मजा लेते हैं। गाने की यही सहजता इसकी लोकप्रियता का मुख्य कारण है।
दूसरा कारण इसका संगीत। फिल्म में यह गाना 2 बार आता है। पहली बार किशोर कुमार की आवाज में और दूसरी बार लता मंगेशकर की आवाज में। गायन की दृष्टि में वैसे तो किशोर कुमार वाला गाना अधिक लोकप्रिय है, पर फिल्मांकन की दृष्टि से लता वाला गाना लोग अधिक देखते हैं। क्योंकि यह बरसात में शूट हुआ है। वैसे तो फिल्म इसी गाने से शुरू होती है।
पहले ही दृश्य में अमिताभ और मौसमी को एक सुनसान गली में चलते दिखाया गया है। मौसमी आगे और अमिताभ पीछे हैं। दोनो तेज-तेज चलते हैं। मौसमी को शक है कि कोई उसका पीछा कर रहा है, पर अमिताभ तेज चलते हुए आगे निकल जाते हैं, तब वह राहत महसूस करती है कि किसी को कहीं पहुंचने की उतावल थी। वास्तव में दोनों एक ही जगह जा रहे थे, जहां संगीत की एक महफिल में अमिताभ बच्चन किशोर की आवाज में ‘रिमझिम गिरे सावन, सुलग-सुलग जाए मन….’ गाते हैं और वहीं से मौसमी को उनसे प्यार हो जाता है।
राहुल देव उर्फ पंचम ने दोनों गानों के ऑर्केस्ट्रेशन में थोड़ा अंतर रखा था। किशोर का गाया गाना शास्त्रीय संगीत के मूड में है (गाने में अमिताभ का गेटअप कुर्ता-पायजामा और कोटी का है) इसकी लोकेशन एक व्यक्तिगत महफिल की है और अमिताभ अपने गायन के शौक से गाते हैं। परिणामस्वरूप आर.डी. ने कम ऑर्केस्ट्रेशन के बीच इसका टेम्पो थोड़ा मंद रखा था। इस वर्जन में गाने की कविता महत्वपूर्ण थी।
दूसरे गाने का मूड रोमांटिक है, क्योंकि मौसमी अमिताभ के प्यार में है। वह अपनी खुशी व्यक्त करना चाहती है, इसलिए खुले में बरसात में भीगती है। इसमें भी अमिताभ मौसमी के पीछे चलता है। पंचम ने इसमें ऑर्केस्ट्रेशन थोड़ा तेज रखा है, जो गाने के उत्तेजक मूड का पूरक बनता है। इस वर्जन में गाने का संगीत महत्वपूर्ण था। आप आंख बंद कर के दोनों गाने सुनें तो पता चलेगा कि एक गाना बंद वातावरण में गाया गया है और दूसरा खुले में।
तीसरा कारण गाने के शब्द हैं। मूल रूप से लखनऊ के गीतकार योगेन्द्र गौड उर्फ योगेश ने यह गाना लिखा था। योगेश और पंचम दा ने 10 फिल्मों में 47 गाने दिए हैं, इसलिए दोनों के बीच अच्छी केमिस्ट्री थी। इनमें उनका यह ‘रिमझिम’ सब से ब्लॉकबस्टर साबित हुआ था। इसके संगीत में जितनी सादगी थी, उतनी ही सादगी इसके शब्दों में थी। किशोर की आवाज में योगेश के इन शब्दों को सुनना (खास कर बूंदे और मूंदे):
जब घुंघरू सी बजती हैं बूंदे
अरमान हमारे पलके ना मूंदे
योगेश ने इसमें हीरो पर टपकती बरसात की पेंटिंग बनाई है। बरसात की बूंदों से झांझर की आवाज सुन कर हमारी इच्छाएं आंखों को बंद नहीं कर सकतीं।
टाइटैनिक: प्रेम और जहाज की ट्रेजडी
सारेगामा ने ‘मंजिल’ का आडियो रिलीज किया तो अमिताभ बच्चन ने इसमें किशोर कुमार के वर्जन का परिचय देते हुए एक अच्छी बात कही थी कि ‘दो लफ्ज हैं, तन्हा, अकेले, लेकिन एक साथ लिख दिए जाएं तो एक दुनिया, एक कायनात, एक तलाश, एक लम्हा, एक खुशी बना सकते हैं। आप आजमाकर देख सकते हैं।’
बासु चटर्जी की ज्यादातर फिल्मों (छोटी सी बात, चितचोर, रजनीगंधा, पिया का घर, बातों बातों में) में मुंबई शहर की पार्श्वभूमि होती है। इसलिए गाने में मुंबई की भूमिका महत्वपूर्ण है। यह गाना अगर दिल्ली या मद्रास में शूट हुआ होता तो इसका जादू उतर गया होता। ज्यादातर वर्षागीत श्रृंगारिक, अमुक तो वीभत्स हो जाते हैं। पर बासु दा ने ध्यान रखा था कि यह गाना छोटेबड़े सभी को स्पर्श कर जाए। ‘मंजिल’ फिल्म तो बाक्स आफिस पर पिट गई थी, पर यह गाना अमर हो गया था।
वीरेंद्र बहादुर सिंह