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संपर्क और कनेक्शन

संपर्क और कनेक्शन :एक दिन आफिस में आया साइकोलाॅजिस्ट यानी मनोवैज्ञानिक पारिवारिक बातें कर रहा था, तभी एक साफ्टवेयर इंजीनियर युवक ने उस साइकोलाॅजिस्ट से पूछा, “सर, यह संपर्क और कनेक्शन में क्या होता है?”
साइकोलाॅजिस्ट ने उस युवक से पूछा, “आप के घर में कौन-कौन है?”  युवक ने कहा, “पिता का देहांत हो चुका है, मां हैं। तीन भाई और एक बहन है। सभी की शादियां हो चुकी हैं।”
साइकोलाॅजिस्ट ने अगला सवाल किया, “क्या आप अपनी मां से बातें करते हैं? आपने अपनी मां से आखिरी बार कब बात की थी?”
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“एक महीने पहले।” सकुचाते हुए युवक ने कहा।
“आप ने आखिरी बार परिवार के साथ बैठ कर कब बातचीत की थी या सब के साथ बैठ कर कब खाना खाया था?”
युवक ने कहा: “मैंने आखिरी बार दो साल पहले त्योहार पर बैठ कर सब के साथ खाना खाया था और बातचीत की थी।”
“तुम सब कितने दिन साथ रहे?”
माथे पर पसीना पोंछते हुए युवक कहा, “तीन दिन …”
“आपने अपनी मां के पास बैठ कर कितना समय बिताया?”
युवक अब परेशान और शर्मिंदा दिख रहा था। साइकोलाॅजिस्ट ने कहा, “क्या आपने नाश्ता, दोपहर का भोजन या रात का खाना मां के साथ किया? क्या आपने पूछा कि वह कैसी हैं? पिता की मौत के बाद उनके दिन कैसे बीत रहे हैं?”
युवक की आंखों से आंसू बहने लगे।
साइकोलाॅजिस्ट ने आगे कहा, “शर्मिंदा, परेशान या उदास होने की जरूरत नहीं है। संपर्क और  कनेक्शन यानी आपका अपनी मां के साथ संपर्क तो है, लेकिन आप का उनसे ‘कनेक्शन’ नहीं है। आप उनसे जुड़े नहीं हैं। कनेक्शन दो दिलों के बीच होता है। एक साथ बैठना, भोजन करना और एक-दूसरे की देखभाल करना, छूना, हाथ मिलाना, आंख मिलाना, कुछ समय एक साथ बिताना। आप के सभी भाई-बहनों का एक-दूसरे से संपर्क तो है, लेकिन कोई कनेक्शन यानी जुड़ाव नहीं है।”

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Written by Sahitynama

साहित्यनामा मुंबई से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका है। जिसके साथ देश विदेश से नवोदित एवं स्थापित साहित्यकार जुड़े हैं।

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