हम उस हिंदी भाषी देश में रहते हैं जहां बेड–टी पी जाती है , गुड मोर्निंग, हैव ए नाइस डे से दिन की शुरुआत और गुड नाइट से रात होतीहै ।
हम हिंदी–हिंदी चिल्लाते हैं और रास्ते में कोई हो तो “इक्स्क्यूज़ मी”कहकर बात करते हैं । ख़ैर अब बोल–चाल ही तो है , जो मुँह लगगया , हम भारतीय उसी के हो लिए । आख़िर हम अतिथि देवो भव , सर्व धर्म समभाव की भावना जो लेकर चलते हैं , इसमें बुराई भीक्या है – अगर कुछ अच्छा मिले तो ग्रहण कर लेना चाहिए ।
अब आज के समय में भारत में भी अंग्रेज़ी विद्यालयों के लिए हिंदी के टीचर का मिलना ज़रा मुश्किल है ,उस पर भी ये मुश्किल सारेसमय अंग्रेज़ी में बात करे और हिंदी की कक्षा में हिंदी में बात करे ।
बाक़ी टीचर्ज़ भी ऐसे देखते हैं मानो तुच्छ जगह से पढ़ कर आया हो कोई ।
सिया को जब सीबीएससी स्कूल में हिंदी के टीचर पद पर नौकरी लगी तो जैसे उसे लगा उसे पंख लग गए हों , उसकी ज़िंदगी अब सेटलहो जाएगी ।
उसने अपने सारे रिश्तेदारों को कॉल कर ये ख़ुशख़बरी सुनाई , बधाइयों का तो जैसे तातां लग गया ।
आज सिया का पहला दिन था स्कूल में , थोड़ी घबराई हुई थी , छोटे शहर से बड़े शहर जो आयी थी ,डर था नए शहर का ,अलग तौर–तरीक़ों का ।
वैसे तो टॉपर थी पर न जाने क्यूँ लग रहा था जैसे हिंदी में भी फेल हो ।
धीरे–धीरे कदमों से खुद को सम्भालती , कभी अपना पर्स देखती , कभी कपड़े तो कभी चप्पल । मन–ही–मन सोच रही थी पता नहीं सबठीक है के नहीं । सोचते–सोचते कब प्रिन्सिपल के केबिन तक पहुँच गयी पता ही नहीं चला ।
इससे पहले के वो “ मे आई कम इन “ बोलती चपरासी ने दरवाज़ा खोल अंदर आने के लिए कहा।
जैसे ही वो अंदर गयी प्रिन्सिपल खड़ी होकर हाथ आगे बढ़ाते हुए बोली “ वेल्कम मैम”आपका हमारे विद्यालय में स्वागत है ।
सिया की साँस में जैसे साँस आ गयी हो । सामने मुस्कुराती हुई उस महिला ने मानो उसे मेडल दे दिया हो ।
सिया भी मुस्कुराई और धन्यवाद किया प्रिन्सिपल का ।
अभी तो पहला चरण था जिसे सिया ने पास किया था, अगले चरण की तैयारी का द्वन्द युद्ध तो अभी बाक़ी था ।
ख़ैर प्रिन्सिपल ने उसे बाक़ी स्टाफ़ से मिलवाया और उसे उसकी कक्षा तक ले जाने का आदेश चपरासी को दिया ।
सिया थोड़े भारी थोड़े हल्के कदमों से क्लास की तरफ़ बढ़ ही रही थी के पीछे से किसी ने तंज कसा “ लगता है छोटे शहर की है “सियाइससे पहले के देख पाती उसकी क्लास सामने थी ।
उसने भी इग्नोर करना बेहतर समझा ,कहीं–न–कहीं वो भी इन बातों के लिए पहले से तैयार थी ।
जैसे–तैसे पहला दिन गुज़र गया, शाम को सिया स्कूल हॉस्टल के कमरे पे आयी तो माँ के खाने की याद आयी । उसने तुरन्त माँ को फ़ोनलगाया और बात की ।
“पहला दिन , नया शहर, नए लोग थोड़ा तो वक़्त लगेगा “माँ बोली ,” चिंता न कर “ खाकर समय पर सो जा “ सुबह फिर जाना है।” “तुझे ही बड़े शहर में नौकरी करनी थी।”
सिया ने भी हाँ माँ कहकर फ़ोन रख दिया ।
माँ सही ही तो बोली , नौकरी तो वो अपने शहर में भी कर सकती थी , उसे ही अंग्रेज़ी स्कूल में जाना था ।
शहर की चमक–दमक और अंग्रेज़ी का ही प्रभाव था जो उसे यहाँ तक खींच लाया था अपनों से दूर ।
वह लौट जाना चाहती थी अपने घर , कुछ बुरा नहीं हुआ वैसे तो अच्छा ही गुज़रा था पहला दिन , मगर कुछ ख़ालीपन सा था, एक ख़ुशीजो होनी चाहिए थी नहीं थी , जितनी उस दिन थी जब उसे नौकरी मिली थी ।
हॉस्टल में भी तो पहली बार आयी थी वो, और भी साथी टीचर्ज़ थी मगर जान–पहचान में वक़्त तो लगता ही है । सपने बड़े होते हैं तोमुश्किलें भी बड़ी होती हैं ।
सिया ने भी मन बना लिया के वो हर मुश्किल का सामना करेगी तो क्या हुआ अगर वो छोटी जगह से आयी है ,सोचते–सोचते न जाने कबउसकी आँख लगी उसे पता भी नही चला ।