फिर जाग उठा अहसास तेरी एक छुअन से
जैसे बदली छट गई नभ में छाई चिलमन से
उभरी मदहोशी तेरे नाजुक होंठों को छूने से
खुशबू तेरी फिर महक ने लगी मेरे बदन से
आंखों में यूं उभरता तेरी हर यादों का दरिया
खुलने लगे दबे राज मेरे चेहरे की शिकन से
अब क्यों मिलना हमारा तुम्हारा इत्तफाकन
सबब कुछ हो मिलो कभी तुम हमें सुकून से
-हनीफ़ सिंधी