Switch to the dark mode that's kinder on your eyes at night time.
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कब तलक मैं तेरी उलझनें सुलझाता रहूं ऐ ज़िन्दग़ी कभी मुझे अपनी सुलझी हुई शक्ल तो दिखला जा । @ कुन्दन श्रीवास्तव More
मुझे आक्रोश है आज भी उन लोगों से जिन्होंने मेरा साथ तब छोड़ा जब मुझे सबसे ज्यादा जरूरत थी। मुझे आक्रोश है आज भी उन लोगो से जिन्होंने मेरी मोहब्बत को तब ठुकरया जब मुझे किसी के प्यार की जरूरत थी। मुझे आक्रोश है आज भी उन लोगो से जिन्होंने अपना बनाकर मुझे गले तो More
तू नही है पास मेरे कुछ कमी सी है। तेरे ना आने से आँखो में कुछ नमी सी है। इस दिल में कुछ ख़्वाहिशे दबी सी है। तेरा नाम सुनते ही जो धडक़ने तेज़ हो जाया करती थी। वो धडक़ने अब कुछ थमी सी है। इस महफ़िल में सब तो है पर एक तेरी कमी सी है। तेरे होने का एहसास जिस दिल को हो जाता था। अब उन एहसासो में अब कुछ कमी सी है। सब कुछ पाने के बाद भी इस दिल को तेरी कमी सी है। तुझे देख कर जिस चेहरे पर आ जाती थी रौनक। उस चेहरे के रौनक में अब कुछ कमी सी है। दिल धड़कता तो है पर उन धकड़कनो में कुछ कमी सी है। छोड़ कर तू गया जब से इस जिन्दगी में तेरी कमी सी है। More
माँगी थी जो दुआ वो क़बूल हो गई। जितनी दूर थी तूँ मुझसे उतनी क़रीब हो गई। अब साथ तेरा ना छूटे,तू मुझसे इस जीवन में कभी ना रूठे। सदा ही तेरा मेरा साथ रहे। तूँ सदा ही मेरे पास रहे। तेरे दिल में एक जगह सदा ही मेरी खास रहे। धड़कू तेरा सीने में तेरी धड़कन बनकर। मेरी हर साँसों में मुझे बस तेरा ही आभास रहे। मौत भी आये तो तुझसे ना जुदा कर पाये। जब भी जाये इस दुनियाँ से तेरा मेरा साथ रहे। More
धर्माडंबर के नशे में, धर्माचरण कर नहीं पाएंगे, बहुत हुआ धंधा धर्म का, मर्म सबको समझायेंगे, त्याग अहं स्वधर्म का, मूल मनुज धर्म अपनायेंगे, विप्लव का शंखनाद करने, फिर से गाँधी आयेंगे फिर से गाँधी आयेंगे। है हम सब अंश एक ब्रह् म का, नफरत का दंश नही फैलायेंगे, कह रहा कुरान यही, गीता यही More
वयन सगाई अलंकार / वैण सगाई अलंकार चारणी साहित्य मे दोहा छंद के कई विशिष्ट अलंकार हैं, उन्ही में सें एक वयन सगाई अलंकार (वैण सगाई अलंकार) है। दोहा छंद के हर चरण का प्रारंभिक व अंतिम शब्द एक ही वर्ण से प्रारंभ हो तो यह अलंकार सिद्ध होता है। ‘चमके’ मस्तक ‘चन्द्रमा’, ‘सजे’ कण्ठ More
मां मैं भी इस दुनिया में आना चाहती हूँ नन्हे नन्हे पैरो से मैं भी गिरकर ठोकर खाना चाहती हूँ गिरते गिरते उठकर सम्भलना चाहती हूँ तेरी उंगली पकड़कर चलना चाहती हूं तोतली जबान में कभी तो कभी लाड में माँ मैं भी तुझे माँ कहना चाहती हूँ। क्यों नहीं कर सकती मैं यह सब More
बेवजह है ये अग्निपथ , सीधे मसान को भेज दो । खतम हो झंझट नौकरी का , जो भी बचा, सबको बेच दो ।। अभी जीवनपथ जिनका शुरू हुआ, अग्निपथ क्यों बना रहे ?? सोचो जरा उन माताओं की, जिनके हाथों में दे दिए तिरंगे क्या मुकाबला ओ करेगा , जिसके सर हो बहन की More
आखिर किराये का घर छोड़ कर , जाने लगे सब शहर छोड़ कर , अलग रास्ते है, अलग मंजिले है। आधा अधूरा सफर छोड़ कर , जाने लगे सब शहर छोड़ कर। जब दूर होंगे और पास होंगे , कुछ अपनी कहेंगे कुछ उनकी सुनेगे कदमो के निशां राहो पर छोड़ कर, जाने लगे सब More
शीर्षक (मानवता) मेरे अल्फ़ाज़ (सचिन कुमार सोनकर) ना मन्दिर में ना मस्जिद में ना गिरजाघर में ना ही गुरुद्वारे में, मानवता दिखती है दिल के गलियारे में। रोटी के लिये लाइन में खड़ा हर शख्स ना हिन्दू है ना मुसलमान है, वो तो बस एक भूखा इन्सान है। तुमको दिखते होगे हिन्दू और मुसलमान, मुझको तो मानव में भी दिखते है भगवान । ईश्वर तक को बाट दिया अब हमारे दिलों में वो नफरत फैलायेगे। एक दिन फिर वही आ के हमको एकता का पाठ पढ़ायेगे। जस्बात पे अपने काबू रखना, तुम्हारे जस्बात को वो अपना हथियार बनायेगे। इस धरती माँ के सीने पर वो नफ़रत का बीज उगायेगे। हिन्दू मुस्लिम के नाम पे वो तुमको आपस में ही लड़ायेगे। इस धरती को वो तुम्हारे खून से लहूलुहान बनायेगे। तुम्हारी इसी गलती का वो दूर से लूफ्त उठायेगे। तुम्हारी इसी बेबसी का एक बार फिर वो मजाक बनायेगे। कब तक चीखोंगे More
शीर्षक (भारतीय सेना) मेरे अल्फ़ाज़ (सचिन कुमार सोनकर) मिटाने से भी हस्ती हमारी मिटती नहीं, समुंदर में भी कस्ती हमारी नही रूकती। ना विश्वास हो तो इतिहास उठा कर देख लो। जब-जब हमने हथियार उठाया है एक नया इतिहास बनाया है। अपने वतन की रक्षा हम दिलो जान से करते है, इसमें जान भी चली जाये तो ग़म नही करते है। हम देश के लिये ही जीते है और देश के लिये ही मरते है। देश भक्ति है कि हमारे दिल से जाती नहीं, हमको देश भक्ति के सिवा कुछ आती नहीं। जिस मिटटी में जन्म लिया है उसका कर्ज चुकायेगे। हम भारत के वीर है पीठ नही दिखायेगे। तपती गर्मी में भी खड़े है देश की रक्षा करने पर अड़े More
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