बहस
बहस
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बहस में जितना

बहस में जितना मुश्किल नहीँ हम जीत सकते हैं
मगर मुमकिन है रिश्ते प्यार के फिर टूट सकते हैं |
हिमालय सा अगर कोई चुना है लक्ष्य जो तुमने
तो छोटे-छोटे कितने दरिया परबत छूट सकते हैं |
चले जब प्यार की बातें तो बस दिल की सदा सुनना
दिमागों के दखल से आशिके जां रूठ सकते हैं |
तेरी जुल्फों पे बारिश की ये बूंदे मोतियों जैसी
झटकना जुल्फ मत वरना ये मोती फूट सकते हैं |
अगर नादान हो गाफिल हो अपनों से परायों से
तो क्या अचरज है तुमको अपने भी फिर लूट सकते हैं

ग़ज़ल

महेश शर्मा
धार मध्य प्रदेश 

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Written by Sahitynama

साहित्यनामा मुंबई से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका है। जिसके साथ देश विदेश से नवोदित एवं स्थापित साहित्यकार जुड़े हैं।

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