भटक रहे वे सड़क पर
मिले नहीं हैं काम।
दो रोटी दौलत बनी
दुनिया गयी तमाम।
कुत्तों को मिलता महल
मानव को फुटपाथ।
दौलत का सब खेल है
बना वही अब नाथ।
अजब रीत इस जगत की
दौलत से ही नाम।
बच्चे भूखे बिलखते
बहती कहीं शराब।
पैसों में बिकता मनुज
मौसम हुआ खराब।
दो रोटी दौलत बनी
दुनिया गयी तमाम।
देवी कह पूजें जिसे
बिके भरे बाजार।
बच्ची को भी मारते
मानवता की हार।
दानव बढ़ते नित्य ही
लगता नहीं विराम।
-डॉ. सरला सिंह ‘स्निग्धा’