यह बंदी जीवन भी क्या जीवन है ?
जो कहीं आने जाने में समर्थ नहीं!
ऐसे प्रश्नों का क्या उत्तर होना ?
जिनका कोई अर्थ नहीं । १ ।
मेरा ही प्रतिबंधित आना-जाना,
खुद पर ही आरोप लगाना,
चाहत गर जो तुझ से मिलने जाना,
प्रश्नों की ही बौछार लगाना । २ ।
मित्र प्रीत जब कैदी हो जाये
घर में ही जब बंदी हो जाये !
केवल वायरस के आने से,
चंगा इंसान भी मजबुर हो जाये । ३ ।
चाह रहा हूँ कुछ पूछूँ मै तुमसे,
बोलो मित्र (बंदी) ये अनर्थ नही !
तुम ही (चंगा इंसान) नहीं पहचान सके जब,
क्या यह परिचय व्यर्थ नहीं है ? । ४ ।
एक छोटी सी प्रयास
साहब कुमार
मोतिहारी (बिहार)