किसान
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किसान

पीड़ा का भार भी सहते हो

मौसम की मार भी सहते हो

कैसे रह पाते हो तुम

इतना बेफिक्र।

तुमपे कर्ज़ है सरकार का

रौब जमीदार का

तुम्हें कोसते है सब

मुह मोड़ते हैं सब

फिर भी ख़ामोश

पी लेते हो गरल

शिव की तरह,

मगर फिर भी

कैसे रह पते हो तुम

इतना बेफिक्र॥

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