ग़ज़ल:
खा के ठोकर गीरे भले गिरना
किसी की नजर में तू मत गिरना .
तुझे मिलेगा जो लिखा तेरे नसीबों में
किसी मजलूम का हक़ मत छीनना .
तेरा दामन भले हो तार तार कांटों में
फिर भी तू एक गुलाब सा खिलाना .
हर कोई जी रहा तनहा तनहा
कितना मुश्किल है अपनों से घिरना .
एशो इशरत भी मिली शौहरत भी
फिर भी मुश्किल सुकून का मिलना .
महेश शर्मा धार
धार, मध्य प्रदेश