उसने ना कहा था
उसने ना कहा था
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उसने ना कहा था

कुचल दिया गया…..
उसके सपनों को
रुला दिया उसके अपनों को
वह तो इस दुनिया से चली गई
अनगिनत सवालों को
वो पीछे छोड़ गई।।

उसे नहीं पता था
उसका “ना” कहना
उसके दंभ पर करेगा
ऐसा प्रहार
बदला लेने के लिए वो
भरी सड़क पर चाकू से
करेगा ताबड़तोड़ उसपर वार
उसको बचाने के लिए
न कोई होगा प्रयास
बस मूकदर्शक बना
रहेंगा ये संसार ।।

हम- तुम

फिजाओं में तैरेंगे
अनगिनत अनसुलझे सवाल
हर तरफ छिड़ जाएगी
नारी जाति के सम्मान पर बहस
निकाली जाएगी “कैंडल मार्च”
पर जब…
वो इस दुनिया में थी
क्यों नहीं दिया उसका साथ।।

वो भी “ना” बोलते हैं …
पर उन पर नहीं
किया जाता कोई वार
नहीं डाला जाता तेजाब
ना किया जाता भरी सड़क
पर उनकी आबरू को तार-तार।।

नहीं जानती है लड़कियां
स्वांग की चाशनी में डुबोकर
अपनी बात कहना
वो तो जानती है
बेबाकी से सच बोलना
फ़िजूल की बहस में पड़ना
उसकी आदतों में शुमार नहीं
तर्क के साथ अपनी बात
कहने की होती है उनकी खूबी।।

उसे पसंद नहीं होती
जी हुज़ूरी
जब तक न हो
रिश्तों में प्रेम की मंजूरी।।

नारी जाति को
स्वयं की रक्षा करने
का संकल्प लेना होगा
भेदना होगा सदियों से
चले चक्रव्यूह को…
कोमलता की चादर को छोड़
कसने होंगे जिरहबख्तर
करना होगा तैयार उस रण के लिए
जिसमें हर बार रौंदी गई,,,
सिर्फ वो…

सीमा चुघ
नोएडा, उत्तर प्रदेश

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Written by Sahitynama

साहित्यनामा मुंबई से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका है। जिसके साथ देश विदेश से नवोदित एवं स्थापित साहित्यकार जुड़े हैं।

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