होली
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सभी युगों में होली

सभी युगों में होली

सतयुग से ही चला आ रहा, होली का त्योहार।

भक्त प्रह्लाद की रक्षा हेतु हरि ने लिया अवतार।

धु धु करके जली होलिका,अधर्म गया फिर हार,

हिरण्यकश्यप को स्वर्ग पठाया, हुआ नरसिंग अवतार।

त्रेता युग में महाराज रघु ने की होली की शुरुआत,

होलिका जली चैराहे पर, हुआ अधर्म का नाश।

अवधपुरी ने राम राज्य में होली खूब मनाई,

प्रजा संग होली खेलत है, प्रभु स्वयं रघुराई।।

भक्त शिरोमणि हनुमान ने रंग दिया स्वयं को लाल,

राम रंग में रंगडाला तन और मन एक साथ।

मुस्काई जानकी मैया, दंग हुए रघुवीर।

ऐसी होली हुई अवध में, हर्षित हुए रघुनाथ।

होली खेले रघुवीरा अवध में, होली खेले रघुवीर,

ऐसा रंग लगाया सबने,मिट गए सारे पीर।

जमकर होली खेली सबने भीगा मन व शरीर,

राम रंग में रंगी अयोध्या, पुलकित हुआ हर वीर।।

(होली खेतल रघुवीरा…. 2)

द्वापर में राधा-कृष्ण ने होली खूब मनाई,

रंगों की बौछार हुई तब प्रेम की बजी सहनाई।

लठमार होली चली तब, फगुआ  हुआ हर द्वार,

झूम उठे सब मथुरा वासी जम के भंग चढ़ाई।।

रंग गुलाल लगाया जमकर रंगों से नहलाया,

राधा के संघ कान्हा ने होली खूब मनाया।

ग्वालों ने भी सखियों के संग मिलकर धूम मचाया ,

ब्रज वालों ने अपनी होली प्रेम से ऐसे  मनाया।।

सारे युगों से होती होली अब कलयुग में भी आई,

रंग गुलाल के संग कीचड़ गोबर ने मिलकर धूम मचाई।

मदिरा और भंग चड़ाकर मस्ती में है टोली ,

कभी कभी तो बात बात में चल जाती है गोली।।

ईर्ष्या और द्वेष भरा मन में, ना है कोई लगाव,

कपड़ा फाड़ मची है होली,न कोई शर्म व लाज।

महंगाई से त्रस्त है जनता कैसे करें उपाय,

महंगी हो गयी होली अब तो बोलो किया क्या जाय।।

फिर भी हम तो भूलके सबकुछ होली आज मनाएंगे,

सतयुग से जो चली आ रही , हम रीत सभी निभाएंगे।

बहुत बहुत मुबारक सबकों होली का त्योहार,

कैसे होली मनेगी आगे इसपे करे विचार।।

प्रकाशनार्थ

स्वरचित मौलिक-

विकास पाण्डेय ‘निर्भय’

(गोरखपुर, उ.प्र.)

 

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