कलम
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कैसे कलम चले? ( कविता)- विकास पाण्डेय ‘निर्भय”

#दिनांक-15.03.2023

#विधा- काव्य

शीर्षक-

कैसे कलम चले?

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जीर्ण शीर्ण चिथड़ों में देखा ,

बचपन भूखा नंगा।

सोच रहा कब इधर बहेगी,

उनके विकास की गंगा।।

भूखे पेट पैरों में छाले,

सर पर वजन उठाये,

दिन बिता उनका सड़को पर,

रैन भी वहीं बितायें।।

नौनिहाल जब भूखे नंगे,सड़को पर हृदय जले ।

कैसे लिख दूँ कविता मैं उनपर,कैसे कलम चले ?

झूठन खाकर जीते औरी की,

सब पीर हृदय में छुपाये।

अभिशप्त बना जीवन उनका,

दुर्दशा कुछ कहीं न जाये।

मासूम नयन देखें सड़को पर,

हर एक से आश लगाए।

जिजीविषा को तरसे मौन खड़े,

कौन इनकी भूख मिटाये?

जब भविष्य खड़ा सड़को पर, कैसे दीप जले?

कैसे लिख दूँ गीत मधुर मैं, कैसे कलम चले?

स्वरचित मौलिक रचना-

विकास पाण्डेय ‘निर्भय’

(गोरखपुर, उत्तर प्रदेश)

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