मानवता
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मानवता

शीर्षक (मानवता)

मेरे अल्फ़ाज़ (सचिन कुमार सोनकर)

ना मन्दिर में  ना  मस्जिद में ना गिरजाघर में ना ही गुरुद्वारे में,

मानवता दिखती है दिल के गलियारे में।

रोटी के लिये लाइन में खड़ा हर शख्स ना हिन्दू है ना मुसलमान है,

वो तो बस एक भूखा इन्सान है।

तुमको दिखते होगे हिन्दू और मुसलमान, 

मुझको तो मानव में भी दिखते है भगवान 

ईश्वर तक को बाट दिया अब हमारे दिलों में वो नफरत फैलायेगे।

एक दिन फिर वही आ के हमको एकता का पाठ पढ़ायेगे।

जस्बात पे अपने काबू रखना, तुम्हारे जस्बात को वो अपना हथियार बनायेगे। 

इस धरती माँ के सीने पर वो नफ़रत का बीज उगायेगे।

हिन्दू मुस्लिम  के नाम पे वो तुमको आपस में ही लड़ायेगे।

                                                        इस धरती को वो तुम्हारे खून से लहूलुहान बनायेगे।

तुम्हारी इसी गलती का वो दूर से लूफ्त उठायेगे।

तुम्हारी इसी बेबसी का एक बार फिर वो मजाक बनायेगे।

कब तक चीखोंगे कब तक चिल्लाओगे, कब तक यू ही अपनो का खून बहायोगे।

अब तो जागो नफरत त्यागो, मानवता को यू ना तुम शर्मसार करो।

नफरत में यू ना तुम अपना जीवन बर्बाद करो।

मानवता के दुश्मनो को अच्छा सबक सिखायेगे, अपने अन्दर के जानवर को मारके। 

हम एक सच्चा इन्सान बन के दिखायेगे।

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Written by Sahitynama

साहित्यनामा मुंबई से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका है। जिसके साथ देश विदेश से नवोदित एवं स्थापित साहित्यकार जुड़े हैं।

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