वंदेमातरम
वंदेमातरम
in

कारगिल विजय वंदेमातरम

गूंजे नारा जब वंदेमातरम।
जां पर खेले जाएगें हम।

धधक उठी घाटी जब कारगिल में।
आ गया नव बल तब सैन्य दल में।
एक के आगे दस पड़ गए कम।
जां पर —-

यदि है किसी में जुर्रत अगर।
तो उठा कर देखे नजर इधर।
सर उनका कर देगें कलम।
जां पर —-

दशरथ विनय

बार बार युद्ध की धृष्टता, ये नई बात नहीं।
भारत से जीत पाना, तुम्हारी औकात नहीं।
ज़ेहन से अपने निकालो ये वहम।
जां पर —-

अगर फिर भारत तुमसे परेशान होगा।

काश्मीर तो होगा, पाकिस्तान न होगा।
आज खाते हैं यह कसम।
जां पर —-

नहीं भूलेगा देश शहीदों की कुर्बानी।
नतमस्तक हैं हम समस्त हिन्दुस्तानी।
याद कर उन्हे आँखे हैं नम।
जां पर —-

देवेश साखरे

What do you think?

Written by Sahitynama

साहित्यनामा मुंबई से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका है। जिसके साथ देश विदेश से नवोदित एवं स्थापित साहित्यकार जुड़े हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

दशरथ विनय

दशरथ विनय

पहली

हम- तुम