मेरे अल्फ़ाज़ (सचिन कुमार सोनकर)
डम-डम डमरू बाजे भोले नाथ शिव शंकर नाचे।
जटाओं में उनके गंगा विराजे।
माथे पर उनके चन्द्रमा साझे।
जो पिये है विष का प्याला भोले शंकर डमरू वाला।
भभूत से जो है नहाये माथे पर तिलक लगाये।
जो कालो में काल कहलाये भोले अपना नाम बताये।
गले में जिनके साँपों की माला।
हाथ में उनके डमरू बाजे भोला संग नंदी नाचे ।
नन्दी है जिनकी सवारी,
हाथों में उनके है त्रिशूल भारी।
कैलाश पे जिनका निवास है,
माँ पार्वती उनके साथ है।
काल भी जिनको देख कर थरराये,
वो महाकाल कहलाये।
दानव मानव सबके कर्ता भोले शंकर शम्भू सबके दुख है हर्ता ।
पसंद है जिनको बेल का पत्ता।
दुनियाँ के है वो कर्ता धर्ता।
वो है सारे जग के स्वामी वो अन्तर्यामी।
आदि भी वो है अन्त भी वो है इन सब मेँ अनंत भी वो है।