देख घटाएँ मन कहता है, सावन पर कोई गीत लिखूँ!
ख़ुशियों से झूमे घर आँगन, त्यौहारों की रीत लिखूँ!
सोमवार प्रिय दिन भोले के, शिव शंकर को हम ध्यावें।
बेलपत्र और भांग धतूरा, गंगाजल से नहलावें।
हर हर महादेव का गुंजन, श्रावण मास पुनीत लिखूँ!
ख़ुशियों से झूमे घर आँगन, त्यौहारों की रीत लिखूँ!
मंगला गौरी व्रत फलदायी, मनचाहा मिल जाए वर।
नाग पंचमी के पूजन से, जोड़ी अपनी रहे अमर।।
हाथों में मेंहदी की ख़ुशबू, धड़कन में मनमीत लिखूँ!
ख़ुशियों से झूमे घर आँगन, त्यौहारों की रीत लिखूँ!
बरखा में ज्यों झूमे धरती, मैं भी झूमूँ और गाऊँ।
तीज मनाऊँ मैं हरियाली, हरी धरा सी लहराऊँ।
सखियों के संग पींग बढ़ाते, झूलों का संगीत लिखूँ!
ख़ुशियों से झूमे घर आँगन, त्यौहारों की रीत लिखूँ!
रोली अक्षत चंदन के संग, राखी का प्यारा बंधन।
पाल पोस कर विदा कर दिया, दो घर बँटा मेरा जीवन।
पीहर की गलियों में छूटा, अपना मधुर अतीत लिखूँ!
ख़ुशियों से झूमे घर आँगन, त्यौहारों की रीत लिखूँ!
मुरझाई भू पर बारिश से, खिल जाता फिर से यौवन।
पी के संग लगे मनभावन, वरना सूखा है सावन।।
सब कुछ तुम पर हार पिया मैं, फिर भी अपनी जीत लिखूँ!
मैं राधा तुम कृष्ण सरीखे, अमर हमारी प्रीत लिखूँ।
देख घटाएँ मन कहता है, सावन पर इक गीत लिखूँ!
ख़ुशियों से झूमे घर आँगन, त्यौहारों की रीत लिखूँ!
स्वीटी सिंघल ‘सखी’
बेंगलुरु, कर्नाटक