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कविता: एक चमन के फूल हम

यह सच्चाई है,
जीवन की अंगराई है।
टूटते सिमटते हुए,
घर -घर की कहानी है,
यह आज़ की सिमटी दुनिया में,
बढ़ रही कहानी है।
परिवार अब परिवार कहां,
मां बाप से बढ़ रही दूरियां यहां।
जन्म देकर निष्प्राण हो गये,
घर आंगन में अब,
उनके अपने सब खो गये।
भूल गए थे एक चमन के फूल सब,
आज़ एकल परिवार में,
रमे हुए दिख रहें हैं परिवार सब।
इतिहास गवाह है,
सुन्दर और स्नेहिल स्पर्श से,
सना हुआ परिवार था,
खुशियां और सुकून,
उम्दा और सम्मान का,
अद्भुत उपकार था।
हमारी खुशियां खत्म हो गई है आज़,
नहीं दिखता कोई अपना यहां,
सबकुछ बन चुकी है,
रहस्य और राज यहां।
एक चमन के फूल थे हम सब यहां,
आज़ ज़िन्दगी बिखर गया है यहां।
आओ हम-सब मिलकर यहां एक,
सुन्दर और स्नेहिल प्यार से सना,
सुन्दर और आकर्षक समां बनाएं।
संयुक्त परिवार संग मिलकर रहने की,
नवोन्मेष योजना को,
धरती पर पुनः लें आए।

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Written by Sahitynama

साहित्यनामा मुंबई से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका है। जिसके साथ देश विदेश से नवोदित एवं स्थापित साहित्यकार जुड़े हैं।

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