मेरी बेटी
मेरी बेटी
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कविता: मेरी बेटी

मेरी बेटी,

पलकें बिछाए

मैं जो तेरी प्रतीक्षा में

दीवानी हुई

जा रही थी,

एक नन्ही सी

योद्धा साथी की

अब खोज

ख़त्म हुई!

दुगुना बढ़ गया

स्वाभिमान मेरा

मैं और मेरी बेटी

जैसे हम एक ही दीया,

पर दो बाती से

खूब जलेंगे,

रौशनी बिखेरेंगे,

साथ साथ हो के

और ज़्यादा पावन।

जो कोई दानव

इसे बुझाने कि

हिम्मत करे

तो उसे

लड़ना होगा,

मरना होगा,

उसे ही मरना होगा।

दो दो आदि शक्ति से

अब वह

बच नहीं पायेगा।

मेरी बेटी ने

जनम लेते ही

मेरे कानों में

चुपके से

कहा था कि

अब ईश्वर ने

इस धरती पर

अबला नहीं

रणचंडी भेजना

शुरू कर दिया है।

तो,

बधाई हो

मेरी नन्ही

किन्तु शक्तिशाली

अस्त्र रूपी बेटी।

अब हम मां बेटी

मिलकर

लड़ेंगे हरेक

कुचक्र से….

कुदृष्टि से….

अब न मां

न बेटी

कोई भी

दुर्बल नहीं रहेगा।

आंखों से आंसू नहीं

चिंगारी निकलेगी,

हे ईश्वर

तेरा धन्यवाद,

कि तूने

बेटी की रूप में

मुझे ब्रह्मास्त्र दिया

आ बेटी आ

तुझे सीने से लगा कर

मैं अपने अंदर

सोई पड़ी

उस हिम्मत को

फिर से

जगा लूं!

बेटी जो आज तूने

मेरे आंगन में

इश-दूत बन कर

अपना कदम रखा,

तो हे नभ

हे जल

हे धरा

सब मिल कर

मंगल गीत गाओ

और बधाई दो,

मुठ्ठी बंद करके

आंखे भींच कर

मेरी गोद में आनेवाली

इस नन्ही सी यूद्घा को।

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Written by Sahitynama

साहित्यनामा मुंबई से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका है। जिसके साथ देश विदेश से नवोदित एवं स्थापित साहित्यकार जुड़े हैं।

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