बेवजह है ये अग्निपथ !!
बेवजह है ये अग्निपथ !!
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बेवजह है ये अग्निपथ !!

बेवजह है ये अग्निपथ ,

सीधे मसान को भेज दो ।

खतम हो झंझट नौकरी का ,

जो भी बचा, सबको बेच दो ।।

अभी जीवनपथ जिनका शुरू हुआ,

अग्निपथ क्यों बना रहे ??

सोचो जरा उन माताओं की,

जिनके हाथों  में दे  दिए तिरंगे

क्या मुकाबला ओ करेगा ,

जिसके सर हो बहन की डोली।

कैसे संभाले खुद को, साथी समेटे है आशु,

बेवजह है ये अग्निपथ,

सीधे मसान को भेज दो ।।

खतम हो झंझट नौकरी का ,

जो बचा, सबको को बेच दो।।

लहलहा रही है ये जवानी मर मिटने को है तैयार,

खतम करो झंझट नौकरी का जो बचा हो सबको बेच दो ।।

एक छोटी सी प्रयास

साहब कुमार यादव

(मोतिहारी बिहार)

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Written by Sahitynama

साहित्यनामा मुंबई से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका है। जिसके साथ देश विदेश से नवोदित एवं स्थापित साहित्यकार जुड़े हैं।

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