रत प्रतिक्षण कर्मपथ पर ,
उद्यम को करते प्रणाम।
भाव सहज मन कोमल,
रंचमात्र न अभिमान ।।
अद्भुत रूप मनोहर छवि,
गणवेश सजी अति प्यारी।
दिग दिग्गज सम अडिग हैं ,
भारतीय वीर प्रहरी।।
हिमनिधि से जलनिधि तक ,
अहर्निश वो करते ध्यान ।
नवोल्लास आभा मुखमण्डल ,
हिन्द के ये हैं प्रान।।
अदम्य साहस परिचय है ,
विजय पताका है गुणगान ।
शरीरस्थ घाव हैं तिलक ,
शौर्य बनी मात्र पहचान ।।
न्यौछावर निज जीवन धन ,
है शान तिरंगे की प्यारी ।
प्रण ही प्राणप्रिया जिनकी ,
न प्राणप्रिया प्रण से प्यारी ।।
एकनिष्ठ साक्षात मूर्ति ,
कर्तव्यनिष्ठ नित पूजा है ।
मात्रभूमि से प्रेम अमर ,
प्रेम न कोई दूजा है ।।
हृदय हिन्द जय भाव भरा ,
धरा जिनसे है संरक्षित ।
हिन्द भूमण्डल आभा बन ,
विश्व भूमण्डल हैं प्रसरित ।।
रणोत्सव वा उत्सव हो ,रत प्रतिक्षण कर्मपथ पर ,
उद्यम को करते प्रणाम।
भाव सहज मन कोमल,
रंचमात्र न अभिमान ।।
अद्भुत रूप मनोहर छवि,
गणवेश सजी अति प्यारी।
दिग दिग्गज सम अडिग हैं ,
भारतीय वीर प्रहरी।।
हिमनिधि से जलनिधि तक ,
अहर्निश वो करते ध्यान ।
नवोल्लास आभा मुखमण्डल ,
हिन्द के ये हैं प्रान।।
अदम्य साहस परिचय है ,
विजय पताका है गुणगान ।
शरीरस्थ घाव हैं तिलक ,
शौर्य बनी मात्र पहचान ।।
न्यौछावर निज जीवन धन ,
है शान तिरंगे की प्यारी ।
प्रण ही प्राणप्रिया जिनकी ,
न प्राणप्रिया प्रण से प्यारी ।।
एकनिष्ठ साक्षात मूर्ति ,
कर्तव्यनिष्ठ नित पूजा है ।
मात्रभूमि से प्रेम अमर ,
प्रेम न कोई दूजा है ।।
हृदय हिन्द जय भाव भरा ,
धरा जिनसे है संरक्षित ।
हिन्द भूमण्डल आभा बन ,
विश्व भूमण्डल हैं प्रसरित ।।
रणोत्सव वा उत्सव हो ,
विजय तिलक सोहती भाल ।
सुगम दुर्गम सरणी लेकिन ,
कण्ठ राजती है जयमाल ।।
सर्वस्व समर्पित जन्मभूमि को ,
भाव यही करते अर्पण ।
तन तिरंगा लिपटा हो ,
तन का हो जब तर्पण ।।
विजय तिलक सोहती भाल ।
सुगम दुर्गम सरणी लेकिन ,
कण्ठ राजती है जयमाल ।।
सर्वस्व समर्पित जन्मभूमि को ,
भाव यही करते अर्पण ।
तन तिरंगा लिपटा हो ,
तन का हो जब तर्पण ।।
आचार्य विकास कुमार मिश्र ‘अखिल’