हरिकृष्ण देवसरेका जन्म 9 मार्च 1938 ईस्वी के मध्य प्रदेश की नागोद में हुआ था. हिंदी साहित्य के अग्रणी लेखकों में हरिकृष्ण देवसरे का नाम लिया जाता था और बच्चों के लिए रचित उनके साहित्य के प्रमुख रूप से पसंद किया गया. बच्चों के प्रति उनके योगदान को देखते हुए उन्हें 2011 में साहित्य कार्ड में बाल साहित्य लाइफटाइम पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है 300 से अधिक पुस्तकें लिख चुके देवसरे को बाल साहित्यकार सम्मान उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के बाल साहित्य सम्मान कीर्ति सम्मान 2001 और हिंदी अकादमी का साहित्यकार सम्मान 2004 के साथ उन्हें कई पुरस्कार से सम्मानित किया गया है कहा यह भी जाता है कि दूसरे देश के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने बाल साहित्य के डायरेक्टर की उपाधि को हासिल किया.
हरिकृष्ण देवसरे का कार्यक्षेत्र:-
हरिकृष्ण देवसरे अपने जीवन समय में 300 से अधिक पुस्तके लिखें अपने लेखन में प्रयोग धर्मिता के लिए मशहूर देवसरे ने आधुनिक संदर्भ में राज्य और रानियों तथा परियों की कहानियों की प्रासंगिकता के सवाल पर बहस आरंभ की थी. उन्होंने भारतीय भाषाओं में रचित बाल साहित्य में रचनात्मक पर अपना बल दिया और बच्चों के लिए मौजूद विज्ञान कथा व एकांकी के खालीपन को भरने का प्रयत्न किया. डॉक्टर हरे कृष्ण देवसरे लगभग 22 साल तक आकाशवाणी के संपर्क में रहें. उन्होंने धारावी को टेलीफिल्म और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर आधारित कार्यक्रमों के लिए कहानियां भी लिखी उनके द्वारा कहानी लिखी गई टेलीविजन पर प्रसारित होती थी डॉ हरीश देवसरे ने कई किताबों का अनुवाद भी किया. 1960 में डॉक्टर कृष्ण देवसरे ने कार्यक्रम अधिशासी के रूप में आकाशवाणी से अपना भविष्य आरंभ किया और 1984 तक अलग विषयों पर महत्वपूर्ण कार्यक्रमों का निर्माण किया.
हरिकृष्ण देवसरे का बाल साहित्यकार:-
हरिकृष्ण देवसरे हिंदी बालसाहित्य पर पहला शोधप्रबंध, प्रथम पांक्तेय संपादक, प्रथम पांक्तेय आलोचक और प्रथम पांक्तेय रचनाकार थे. उन्हें बाल साहित्यकार केलवाने में जरा भी परेशानी नहीं थी जब और जहां भी मौका मिले बाल साहित्य में नई परंपरा की खोज के लिए व सतत अग्रसेन रहे. 50 से अधिक वर्षों से बाद मौलिक लेखन कई दर्जन पुस्तकें संपादन समालोचना अनुवाद कर्म उनके लेखन की कौशल्या को प्रदर्शित करती हैं.
हरिकृष्ण देवसरे की कविताये:-
समय बहुत ही मूल्यवान है कविता
चला गया जो समय लौट कर, कभी नहीं फिर आता,
सदा समय को खोने वाला, कर मल मल कर पछताता।
जिसने इसे न माना इसको, जिसने भी ठुकराया
लाख यत्न करने पर भी. हाथ न उसके आया।।
हों जाता है एक घड़ी के लिए जन्म भर रोना
समय बहुत ही मूल्यवान है, व्यर्थ कभी मत खोना।।
धन खो जाता श्रम करने से, फिर मनुष्य है पाता
स्वास्थ बिगड़ जाने पर, उपचारों से है बन जाता।
विद्या खो जाती फिर भी, पढ़ने से आ जाती
लेकिन खो जाने से मिलती, नहीं समय की जाती।
जीवन भर भटकों, छानो,दूनिया का कोना कोना
समय बहुत ही मूल्यवान है, व्यर्थ कभी मत खोना।।
रहती थी बापू की कटि में, हरदम घड़ी लटकती
उन्हें एक क्षण की बरबादी, थी अत्यधिक खटकती।
बच्चो तुम भी उसी भांति, पल पल से लाभ उठाओ,
व्यर्थ न जाएं कभी एक क्षण, ऐसा नियम बनाओं।
गांठ बांध लो,नहीं पड़ेगा कभी तुम्हे दुःख ढोना
समय बहुत ही मूल्यवान है, व्यर्थ कभी मत खोना।
कविवर तोंदूराम बुझक्कड़ कभी-कभी आ जाते हैं।
खड़ी निरंतर रहती चोटी,
आँखें धँसी मिचमिची छोटी,
नाक चायदानी की टोटी,
अंग-अंग की छटा निराली, भारी तोंद हिलाते हैं।
कविवर तोंदूराम बुझक्कड़ कभी-कभी आ जाते हैं।
कंधे पर लाठी बेचारी,
लटका उसमें पोथा भारी,
लिए हाथ में सुँघनी प्यारी,
सूँघ-सूँघकर ‘आ छीं-आ छीं’ का आनंद उठाते हैं।
कविवर तोंदूराम बुझक्कड़ कभी-कभी आ जाते हैं।
ये हैं नियमी धर्म-धुरंधर,
गायक गुपचुप भाँड उजागर,
परम स्वतंत्र न नौकर चाकर,
झूम-झूम कर मटक-मटककर हलुआ पूरी खाते हैं।
कविवर तोंदूराम बुझक्कड़ कभी-कभी आ जाते हैं।
कविता का बँध जाता ताँता,
चप्पल का विवाह ठन जाता,
जूता दूल्हा बनकर आता,
बिल्ली रानी पिस्सू राजा की भी जोड़ मिलाते हैं।
कविवर तोंदूराम बुझक्कड़ कभी-कभी आ जाते हैं।
हरिकृष्ण देवसरे के उपन्यास:-
हरिकृष्ण देवसरे के बहुत सारे उपन्यास हैं जिनमें से खेल के बच्चे 1968 इलाहाबाद,रायपुर, आओ चंदा के देश चले 1969 मंगलग्रह में राजू 1969 उड़ती तश्तियां 1971 स्वान यात्रा 1981 लावनी1981 सोहराब रुस्तम 1983 आल्हा ऊदल 1983 गिरना स्काईलैब का, 1983 डाकू का बेटा 1984 दूसरे ग्रहों के गुप्तचर 2003 ।
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हरिकृष्ण देवसरे का सम्मान और पुरस्कार:-
हरिकृष्ण देवसरे को बाल साहित्यकार सम्मान से सम्मानित किया इसके साथ उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के बाल साहित्य सम्मान से भी उन्हें नवाजा गया कीर्ति सम्मान 2001 हिंदी अकादमी का साहित्यकार सम्मान 2004। वर्ष 2007 में न्यूयॉर्क में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन में उन्होंने हिस्सा लिया.
हरिकृष्ण देवसरे का निधन:-
हरिकृष्ण देवसरे का निधन गुरुवार 14 नवंबर 2013 को लंबी बीमारी की वजह से हुआ वर्ष के थे. उनके पुत्र ने बताया कि उनके पिता हरि कृष्ण देवसरे लंबे समय से बहुत ही बीमार थे उनका गाजियाबाद के इंदिरापुरम में एक अस्पताल में मृत्यु हो गया. उनकी पत्नी के साथ दो पुत्र और एक पुत्री हैं.