Harishankar Parsai जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया था. ये हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंग्यकार थे. उन्होंने सामाजिक वास्तविकताओं के लेखक के द्वारा सामने रखा. हरिशंकर परसाई ने सामाजिक और राजनीति के बीच हमारे देश के मध्यम वर्ग के लोग कि सच्चाई निकटता से पकड़ा है. समाज में चल रहे पाखंड और रूढ़िवादी जीवन मूल्यों को खिल्ली उड़ाते हुए उन्होंने हमेशा विवेक और विज्ञान सम्मत दृष्टि को सकारात्मक तरीके से प्रदर्शित किया है.
Harishankar Parsai का जीवन परिचय :-
22 अगस्त 1922 को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी गांव में हरिशंकर परसाई का जन्म हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके गांव से हुई. उनके प्रारंभिक शिक्षा होने के बाद भी आगे की पढ़ाई के लिए वे नागपुर चले गये. नागपुर से उन्होंने m.a. हिंदी की परीक्षा’ नागपुर विश्वविद्यालय’ से पास की. इसके बाद उन्होंने कुछ दिनों तक अध्यापन का कार्य किया अध्यापन कार्य करने के बाद उन्होंने स्वतंत्र आलेखन आरंभ कर दिया. जबलपुर से साहित्यिक पत्रिका ‘वसुधा’ को उन्होंने ही प्रकाशित किया. लेकिन घाटा होने की वजह से इसे बंद करना पड़ा. हरिशंकर परसाई की भाषा शैली में खास किस्म का अपनापन है उसे पाठक अनुभव करते हैं कि लिखो उनके सामने ही बैठे हैं.
Harishankar Parsai का कार्यक्षेत्र :-
हरिशंकर परसाई ने केवल 18 वर्ष की उम्र में जंगल विभाग में नौकरी की. मैं खंडवा में 6 महीनों तक अध्यापक के रूप में नियुक्त किए गए. 1941 से लेकर 1943 में उन्होंने जबलपुर में ‘स्पेस ट्रेनिंग कॉलेज’ में शिक्षण कार्य का अध्ययन किया. हरिशंकर जी वहां मॉडल हाई स्कूल में 1993 से अध्यापक हो गए हैं. लेकिन वर्ष 1952 में हरिशंकर परसाई को अध्यापक की सरकारी नौकरी छोड़नी पड़ी. इस नौकरी के बाद उन्होंने 1953 से 1957 तक प्राइवेट स्कूलों में नौकरी की. नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने 1957 में स्वतंत्र लेखन आरंभ की.
Harishankar Parsai का साहित्यिक परिचय:-
हरिशंकर परसाई जी की पहली रचना “स्वर्ग से नरक जहाँ तक” फेरारी में मई 1948 में प्रकाशित हुई थी. हरिशंकर परसाई जी की पहली रचना में धार्मिक पाखंड और अंधविश्वास के विरुद्ध पहली बार जमकर उन्होंने लिखा था. उनके लेखन का पहला प्रिय विषय धार्मिक खोखला पाखंड था. वैसे हरिशंकर परसाई कार्लमार्क्स से अधिक प्रभावित हुए थे. उनकी प्रमुख रचनाओं में सदाचार का ताबीज प्रसिद्ध रचनाओं में से एक थी जिसमें रिश्वत लेने के लिए मनोविज्ञान की उनकी विशेषता के साथ उकेरा है।
Harishankar Parsai की रचनाएं:-
हरिशंकर परसाई जी ने बहुत ही रचनाओं का उल्लेख किया है उन्होंने निबंध संग्रह,कहानी संग्रह, उपन्यास, और संस्मरण लिखे हैं.
निबंध संग्रह :-
- तब की बात और थी
- भूत के पांव पीछे
- पगडंडियों का जमाना
- शिकायत मुझे भी है
- सदाचार का ताबीज
- और अंत में
- माटी कहे कुम्हार से
- प्रेमचंद के फटे जूते (प्रेमचंद पर आधारित)
- ऐसा भी सोचा जाता है
- अपनी-अपनी बीमारी
- आवारा भीड़ के खतरे
- काग भगोड़ा
- बेईमानी की परत
- तुलसीदास चंदन घिसैं
- ठिठुरता हुआ गणतंत्र
- पगडंडियों का जमाना
- तब की बात और थी
- शिकायत मुझे भी है
- हम एक उम्र से वाकिफ हैं
- सदाचार का ताबीज
- भूत के पांव पीछे
- माटी कहे कुम्हार से
उपन्यास :-
- रानी नागफनी की कहानी
- तट की खोज
- ज्वाला और जल
कहानी संग्रह:-
- हंसते है रोते हैं
- जैसे उनके दिन फिरे
- भोलाराम का जीव
- दो नाक वाले लोग
संस्मरण:-
- तिरछी रेखाएं
व्यंग संग्रह :-
- वैष्णव की फिसलन
- ठिठुरता हुआ गणतंत्र
- विकलांग श्रद्धा का दौरा
- क्रांतिकारी की कथा
- पवित्रता का दौरा
- पुलिस मंत्री का पुतला
- वह जो आदमी है न
- नया साल
- घायल बसंत
- संस्कृति
- बारात की वापसी
- उखड़े खंभे
- पीटने पीटने में फर्क
- ग्रीटिंग कार्ड और राशन कार्ड
- शर्म की बात पर ताली पीटना
- भगत की गत
- मुंडन
- एक शुद्ध बेवकूफ
- इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर
- भारत को चाहिए जादूगर और साधु
- सुदामा का चावल
- कंधे श्रवण कुमार के
- एक मध्यमवर्गीय कुत्ता
- खेती
- 10 दिन का अनशन
- सन् 1950 ईस्वी
- बस की यात्रा
- टॉर्च बेचने वाले
साहित्यिक विशेषताएं:-
हरिशंकर परसाई जी ने पाखंड बेमानी आदि पर अपने व्यंगयों से बहुत ही गंभीरता चोट की है. हरिशंकर परसाई जी बोल चाल की सामान्य भाषा का इस्तेमाल करते हैं और परसाई जी चुटीला व्यंग करने में लाजवाब है.
हरिशंकर परसाई की कुछ कविताये:-
जगत के कुचले हुए पथ पर भला कैसे चलूं मैं? /
किसी के निर्देश पर चलना नहीं स्वीकार मुझको
नहीं है पद चिह्न का आधार भी दरकार मुझको
ले निराला मार्ग उस पर सींच जल कांटे उगाता
और उनको रौंदता हर कदम मैं आगे बढ़ाता
शूल से है प्यार मुझको, फूल पर कैसे चलूं मैं?
बांध बाती में हृदय की आग चुप जलता रहे जो
और तम से हारकर चुपचाप सिर धुनता रहे जो
जगत को उस दीप का सीमित निबल जीवन सुहाता
यह धधकता रूप मेरा विश्व में भय ही जगाता
प्रलय की ज्वाला लिए हूं, दीप बन कैसे जलूं मैं?
जग दिखाता है मुझे रे राह मंदिर और मठ की
एक प्रतिमा में जहां विश्वास की हर सांस अटकी
चाहता हूँ भावना की भेंट मैं कर दूं अभी तो
सोच लूँ पाषान में भी प्राण जागेंगे कभी तो
पर स्वयं भगवान हूँ, इस सत्य को कैसे छलूं मैं?
क्या किया आज तक क्या पाया?
मैं सोच रहा, सिर पर अपार
दिन, मास, वर्ष का धरे भार
पल, प्रतिपल का अंबार लगा
आखिर पाया तो क्या पाया?
जब तान छिड़ी, मैं बोल उठा
जब थाप पड़ी, पग डोल उठा
औरों के स्वर में स्वर भर कर
अब तक गाया तो क्या गाया?
सब लुटा विश्व को रंक हुआ
रीता तब मेरा अंक हुआ
दाता से फिर याचक बनकर
कण-कण पाया तो क्या पाया?
जिस ओर उठी अंगुली जग की
उस ओर मुड़ी गति भी पग की
जग के अंचल से बंधा हुआ
खिंचता आया तो क्या आया?
जो वर्तमान ने उगल दिया
उसको भविष्य ने निगल लिया
है ज्ञान, सत्य ही श्रेष्ठ किंतु
जूठन खाया तो क्या खाया?
Harishankar Parsai की भाषा शैली:-
हरिशंकर परसाई की भाषा में व्यंग की प्रधानता देखी जा सकती है हरिशंकर परसाई की भाषा सामान्य और संरचना के कारण महत्वपूर्ण क्षमता रखती है. उनके एक एक शब्द में व्यंग के तीखेपन आसानी से देखा जा सकता है. उन्होंने हिंदी के साथ-साथ उर्दू अंग्रेजी शब्दों का भी खुलकर प्रयोग किया है परसाई जी की विभिन्न रचनाओं में ही नहीं बल्कि किसी एक रचना में भी भाषा भाव और भंगिमा के प्रसंगानुकूल अलग-अलग रूप और उनके स्तर को देखा जा सकता है. उनकी भाषा शैली में प्रसंग बदलते ही सरलता से वांछित परिवर्तन आते जाते हैं. हरिशंकर परसाई जी की कला चकित करने वाली है.
Harishankar Parsai का सम्मान और पुरस्कार:-
हरिशंकर परसाई जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार विकलांग श्रद्धा का दौर के लिए दिया गया था इसके साथ ही शिक्षा सामान्य मध्यप्रदेश शासन द्वारा उन्हें दिया गए हैं. जबलपुर विश्वविद्यालय द्वारा डी लिट की मानद उपाधि उन्हें प्राप्त है. हरिशंकर परसाई जी को शरद जोशी सम्मान से भी सम्मानित किया गया.
Hari Krishna Devsare/ हरिकृष्ण देवसरे
Harishankar Parsai का निधन:-
हरिशंकर परसाई का निधन 10 अगस्त 1995 को जबलपुर मध्य प्रदेश में हुआ . उस समय उनकी उम्र 72 वर्ष थी. परसाई जी की व्यंग रचनात्मक क्षमता अनोखी थी. हरिशंकर परसाई जी की लिखित व्यंग रचनाएं बहुत ही प्रचलित रही. हरिशंकर परसाई ने अपने बैंक लेखन की महानता द हिंदू न्यूज़ पेपर के मुताबिक हासिल कर ली थी.