महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा
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Mahadevi Verma : महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

Mahadevi Verma : महादेवी वर्मा को आधुनिक युग की मीरा कहा जाता था. निराला वैशिष्ट्य’ की स्वामिनी महादेवी वर्मा छायावाद की चौथी स्तंभ भी कही जाती है. छायावाद युग हिंदी भाषा की प्रसिद्ध कवित्री है

Mahadevi Verma का जन्म:-

आधुनिक युग की मीरा महादेवी वर्मा जी (Mahadevi Verma) का जन्म 26 मार्च 1907 भारत के अयोध्या में हुआ था. महादेवी वर्मा जी के पिता का नाम श्री गोविंद प्रसाद वर्मा और माता का नाम श्रीमती हेमरानी वर्मा था. महादेवी वर्मा जी के माता-पिता शिक्षा से बहुत ही अधिक प्रेम करते थे. महादेवी वर्मा के नाना बज्र भाषा के कवि थे. महादेवी वर्मा के नाना ब्रज भाषा में ही काव्य रचना करते थे, इन्हें देखकर महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) बचपन से ही कविता को लिखने में रुचि उत्पन्न करने लगी. महादेवी वर्मा जी ने चित्रकला और संगीत की शिक्षा ली. महादेवी वर्मा की माता एक विदुषी महिला थी उन्हें संस्कृत के विषय में बहुत ही अच्छा ज्ञान था इसी कारण से महादेवी वर्मा को बचपन से ही कविताओं में रुचि आने लगी पारिवारिक माहौल के कारण वह केवल 7 वर्ष में ही कविताएं लिखना आरंभ कर दी.

Mahadevi Verma की शिक्षा:-

महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) का छठवीं कक्षा के बाद ही नो वर्ष की उम्र में ही डॉक्टर स्वरूप नारायण वर्मा के साथ विवाह हो गया. विवाह के कारण उनकी पढ़ाई बीच में ही रुक गए. महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) के ससुराल में उनकी शिक्षा को लेकर किसी के मन में जागरूकता नहीं थी. महादेवी के ससुर के निधन के बाद उन्होंने शिक्षा फिर से प्रारंभ कर दी.
प्रयाग से वर्ष 1920 में महादेवी वर्मा ने प्रथम श्रेणी में मिडिल पास किया. आज के समय उत्तर प्रदेश का एक हिस्सा संयुक्त प्रांत में महादेवी का प्रथम सर्वप्रथम स्थान था. वर्ष 1924 में उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की और इससे ही उन्हें छात्रवृत्ति प्राप्त हुई. वर्ष 1926 में इंटरमीडिएट और वर्ष 1928 में बीए की परीक्षा में प्रथम स्थान पाकर वर्ष 1933 में उन्होंने m.a. की डिग्री भी हासिल की. महादेवी वर्मा अपने शिक्षा को लेकर बहुत ही गंभीर रहती थी इसी कारण उनका विद्यार्थी जीवन बहुत ही सफल रहा.

Mahadevi Verma को  प्राप्त पुरस्कार:-

वर्ष 1934 में महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) ने निर्जा पर ₹500 का पुरस्कार और सेकसरिया पुरस्कार भी जीता वर्ष 2044 में आधुनिक कवि और निहार पर 12:00 ₹100 का मंगला प्रसाद पारितोषिक पुरस्कार भी प्राप्त किया भाषा साहित्य संगीत और चित्रकला के अलावा उनकी रूचि दर्शनशास्त्र के प्रति भी रहे.
वर्ष 1956 में महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) को सरकार द्वारा पद्मभूषण से नवाजा गया था वर्ष 1988 में पद्म विभूषण सेबी उनको सम्मानित किया गया है हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा उन्हें भारतेंदु पुरस्कार भी दिया गया है. यामा के लिए वर्ष 1982 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी उन्हें सुशोभित किया गया है.

Mahadevi Verma से जुड़े कुछ रोचक तथ्य :-

  • महादेवी वर्मा जी का बचपन में विवाह हुआ था जिसे बाल विवाह कहा जाता है,परन्तु उन्होंने अपना जीवन अविवाहित की तरह व्यत्ति किया.
  • रुचि, साहित्य के साथ साथ महादेवी वर्मा ने संगीत भी रूचि रखती थी.
  • महादेवी वर्मा जी पशु प्रेमी थी. ये बात किसी से नही छुप पाया है. गाय को वो अधिक प्रेम करती थी.
  • महादेवी वर्मा की माता शुद्ध शाकाहारी और पिता मांसाहारी थे.
  • पूरे प्रान्त में महादेवी वर्मा ने आठवी कक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्त्तीर्ण किया.
  • इलाहाबाद महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्य और कुलपति भी महादेवी वर्मा जी रह चुकी है.
  • भारतीय साहित्य अकादमी की सदस्यता ग्रहण करने वाली पहली महिला महादेवी वर्मा जी थी  और इसकी सदस्यता  1971 में ग्रहण की।

महाप्राण निराला !

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Mahadevi Verma काव्य साधना:-

छायावादी युग की प्रसिद्ध कवित्री महादेवी वर्मा है। छायावाद युग की कवित्री महादेवी जी के काव्य में यह दोनों विशेषता है अंतर मात्र इतना है कि जांच छायावाद के अन्य कवियों ने प्रगति के उल्लास का अनुभव किया उसके विरुद्धार्थी महादेव जी ने वेदना का अनुभव किया है. अपने काव्य में कल्पना के आधार पर महादेवी वर्मा प्रगति का मानवीकरण कर उसे एक विशेष भाव समृद्धि और गीत काव्य से विभूषित किया महादेव जी की रचनाओं में छायावाद की अलग भाव और कला विशेषताएं मिलती है.

Mahadevi Verma का काव्य भाव:-

महादेवी जी (Mahadevi Verma) के काव्य की मूल भावना वेदना भाव है परंतु जीवन में भेदभाव की वजह से होती है. 1-जीवन में किसी अभाव के कारण 2-दूसरों के कष्टों से प्रभावित होने के कारण महादेवी (Mahadevi Verma) के काव्य भव पहले प्रकार की वेदना को हम व्यक्तिगत वेदना अथवा शो या स्वयं की वेदना भी बता सकते हैं दूसरे प्रकार की वेदना को हम सामाजिक विज्ञान अथवा पर या अन्य की वेदना बोल सकते हैं काव्य में व्यक्तिगत वेदना की अपेक्षा सामाजिक व्यक्ति ना को खास महत्व दिया गया है काव्य में महादेवी जी (Mahadevi Verma) की वेदना का मूल कारण सिर्फ योग है जिसने अलौकिक होते हुए भी आध्यात्मिक रूप धारण कर लिया मूलतः महादेव जी रहस्यवादी कवित्री है. उन्होंने रहस्यवाद की विशेषता कर आया बात की भांति उसके संदर्भ में कुछ सिद्धांत स्थिर किए हैं महादेवी वर्मा जी (Mahadevi Verma) के इस सिद्धांत के अनुकूल उन्होंने अपने रहस्यवादी का विकास सिंगार किया है लेकिन महादेव जी का रहस्यवाद मीरा कबीर आदि की भांति साधनात्मक नहीं है बल्कि भावात्मक है जिसके द्वारा उन्होंने मधुर्भाव को विशेष स्थान दिया है मधुर्भाव से ओतप्रोत उनकी रहस्यवादी रचनाएं हिंदी काव्य की अमूल्य निधि है महादेवी वर्मा जी (Mahadevi Verma) की रचना हिंदी साहित्य के लिए उनकी तरफ से दी गई एक अनमोल तोहफा है.

(Mahadevi Verma)
(Mahadevi Verma)

Mahadevi Verma की प्रसिद्ध कविताये:-

कोयल –

डाल हिलाकर आम बुलाता
तब कोयल आती है।
नहीं चाहिए इसको तबला,
नहीं चाहिए हारमोनियम,
छिप-छिपकर पत्तों में यह तो
गीत नया गाती है!

चिक्-चिक् मत करना रे निक्की,
भौंक न रोजी रानी,
गाता एक, सुना करते हैं
सब तो उसकी बानी।

आम लगेंगे इसीलिए यह
गाती मंगल गाना,
आम मिलेंगे सबको, इसको
नहीं एक भी खाना।

सबके सुख के लिए बेचारी
उड़-उड़कर आती है,
आम बुलाता है, तब कोयल
काम छोड़ आती है।

कौन तुम मेरे हृदय में –

कौन तुम मेरे हृदय में?

कौन मेरी कसक में नित
मधुरता भरता अलक्षित?
कौन प्यासे लोचनों में
घुमड़ घिर झरता अपरिचित?

स्वर्ण-स्वप्नों का चितेरा
नींद के सूने निलय में!
कौन तुम मेरे हृदय में?

अनुसरण निश्वास मेरे
कर रहे किसका निरन्तर?
चूमने पदचिन्ह किसके
लौटते यह श्वास फिर फिर

कौन बन्दी कर मुझे अब
बँध गया अपनी विजय में?
कौन तुम मेरे हृदय में?

एक करूण अभाव में चिर-
तृप्ति का संसार संचित
एक लघु क्षण दे रहा
निर्वाण के वरदान शत शत,

पा लिया मैंने किसे इस
वेदना के मधुर क्रय में?
कौन तुम मेरे हृदय में?

गूँजता उर में न जाने
दूर के संगीत सा क्या?
आज खो निज को मुझे
खोया मिला, विपरीत सा क्या

क्या नहा आई विरह-निशि
मिलन-मधु-दिन के उदय में?
कौन तुम मेरे हृदय में?

तिमिर-पारावार में
आलोक-प्रतिमा है अकम्पित
आज ज्वाला से बरसता
क्यों मधुर घनसार सुरभित?

सुन रहीं हूँ एक ही
झंकार जीवन में, प्रलय में?
कौन तुम मेरे हृदय में?

मूक सुख दुख कर रहे
मेरा नया श्रृंगार सा क्या?
झूम गर्वित स्वर्ग देता-
नत धरा को प्यार सा क्या?

आज पुलकित सृष्टि क्या
करने चली अभिसार लय में
कौन तुम मेरे हृदय में?

तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या –

तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या!

तारक में छवि, प्राणों में स्मृति
पलकों में नीरव पद की गति
लघु उर में पुलकों की संस्कृति
भर लाई हूँ तेरी चंचल
और करूँ जग में संचय क्या?

तेरा मुख सहास अरूणोदय
परछाई रजनी विषादमय
वह जागृति वह नींद स्वप्नमय,
खेल-खेल, थक-थक सोने दे
मैं समझूँगी सृष्टि प्रलय क्या?

तेरा अधर विचुंबित प्याला
तेरी ही विस्मत मिश्रित हाला
तेरा ही मानस मधुशाला
फिर पूछूँ क्या मेरे साकी
देते हो मधुमय विषमय क्या?

चित्रित तू मैं हूँ रेखा क्रम,
मधुर राग तू मैं स्वर संगम
तू असीम मैं सीमा का भ्रम
काया-छाया में रहस्यमय
प्रेयसी प्रियतम का अभिनय क्या?

अश्रु यह पानी नहीं है –

अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है!

यह न समझो देव पूजा के सजीले उपकरण ये,
यह न मानो अमरता से माँगने आए शरण ये,
स्वाति को खोजा नहीं है औ’ न सीपी को पुकारा,
मेघ से माँगा न जल, इनको न भाया सिंधु खारा!
शुभ्र मानस से छलक आए तरल ये ज्वाल मोती,
प्राण की निधियाँ अमोलक बेचने का धन नहीं है।

अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है!

नमन सागर को नमन विषपान की उज्ज्वल कथा को
देव-दानव पर नहीं समझे कभी मानव प्रथा को,
कब कहा इसने कि इसका गरल कोई अन्य पी ले,
अन्य का विष माँग कहता हे स्वजन तू और जी ले।
यह स्वयं जलता रहा देने अथक आलोक सब को
मनुज की छवि देखने को मृत्यु क्या दर्पण नहीं है।

अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है!

शंख कब फूँका शलभ ने फूल झर जाते अबोले,
मौन जलता दीप, धरती ने कभी क्या दान तोले?
खो रहे उच्छ्‌वास भी कब मर्म गाथा खोलते हैं,
साँस के दो तार ये झंकार के बिन बोलते हैं,
पढ़ सभी पाए जिसे वह वर्ण-अक्षरहीन भाषा
प्राणदानी के लिए वाणी यहाँ बंधन नहीं है।

अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है!

किरण सुख की उतरती घिरतीं नहीं दुख की घटाएँ,
तिमिर लहराता न बिखरी इंद्रधनुषों की छटाएँ
समय ठहरा है शिला-सा क्षण कहाँ उसमें समाते,
निष्पलक लोचन जहाँ सपने कभी आते न जाते,
वह तुम्हारा स्वर्ग अब मेरे लिए परदेश ही है।
क्या वहाँ मेरा पहुँचना आज निर्वासन नहीं है?

अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है!

आँसुओं के मौन में बोलो तभी मानूँ तुम्हें मैं,
खिल उठे मुस्कान में परिचय, तभी जानूँ तुम्हें मैं,
साँस में आहट मिले तब आज पहचानूँ तुम्हें मैं,
वेदना यह झेल लो तब आज सम्मानूँ तुम्हें मैं!
आज मंदिर के मुखर घड़ियाल घंटों में न बोलो
अब चुनौती है पुजारी में नमन वंदन नहीं है।

अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है!

जो तुम आ जाते एक बार –

जो तुम आ जाते एक बार

कितनी करूणा कितने संदेश
पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार तार
अनुराग भरा उन्माद राग

आँसू लेते वे पथ पखार
जो तुम आ जाते एक बार

हँस उठते पल में आर्द्र नयन
धुल जाता होठों से विषाद
छा जाता जीवन में बसंत
लुट जाता चिर संचित विराग

आँखें देतीं सर्वस्व वार
जो तुम आ जाते एक बार

मैं और तू –

तुम हो विधु के बिम्ब और मैं
मुग्धा रश्मि अजान;
जिसे खींच लाते अस्थिर कर
कौतूहल के बाण !

कलियों के मधुप्यालों से जो
करती मदिरा पान;
झाँक, जला देती नीड़ों में
दीपक सी मुस्कान।

लोल तरंगों के तालों पर
करती बेसुध लास;
फैलातीं तम के रहस्य पर
आलिंगन का पाश।

ओस धुले पथ में छिप तेरा
जब आता आह्वान,
भूल अधूरा खेल तुम्हीं में
होता अन्तर्धान !

तुम अनन्त जलराशि उर्म्मि मैं
चंचल सी अवदात,
अनिल-निपीड़ित जा गिरती जो
कूलों पर अज्ञात।

हिम-शीतल अधरों से छूकर
तप्त कणों की प्यास,
बिखराती मंजुल मोती से
बुद्बुद में उल्लास।

देख तुम्हें निस्तब्ध निशा में
करते अनुसन्धान,
श्रांत तुम्हीं में सो जाते जा
जिसके बालक प्राण।

तम परिचित ऋतुराज मूक मैं
मधु-श्री कोमलगात,
अभिमंत्रित कर जिसे सुलाती
आ तुषार की रात।

पीत पल्लवों में सुन तेरी
पद्ध्वनि उठती जाग;
फूट फूट पड़ता किसलय मिस
चिरसंचित अनुराग।

मुखरित कर देता मानस-पिक
तेरा चितवन-प्रात;
छू मादक निःश्वास पुलक—
उठते रोओं से पात।

फूलों में मधु से लिखती जो
मधुघड़ियों के नाम,
भर देती प्रभात का अंचल
सौरभ से बिन दाम।

‘मधु जाता अलि’ जब कह जाती
आ संतप्त बयार,
मिल तुझमें उड़ जाता जिसका
जागृति का संसार।

स्वर लहरी मैं मधुर स्वप्न की
तुम निद्रा के तार,
जिसमें होता इस जीवन का
उपक्रम उपसंहार।

पलकों से पलकों पर उड़कर
तितली सी अम्लान,
निद्रित जग पर बुन देती जो
लय का एक वितान।

मानस-दोलों में सोती शिशु
इच्छाएँ अनजान,
उन्हें उड़ा देती नभ में दे
द्रुत पंखों का दान।

सुखदुख की मरकत-प्याली से
मधु-अतीत कर पान,
मादकता की आभा से छा
लेती तम के प्राण।

जिसकी साँसे छू हो जाता
छाया जग वपुमान,
शून्य निशा में भटके फिरते
सुधि के मधुर विहान।

इन्द्रधनुष के रंगो से भर
धुँधले चित्र अपार,
देती रहती चिर रहस्यमय
भावों को आकार।

जब अपना संगीत सुलाते
थक वीणा के तार,
धुल जाता उसका प्रभात के
कुहरे सा संसार।

फूलों पर नीरव रजनी के
शून्य पलों के भार,
पानी करते रहते जिसके
मोती के उपहार।

जब समीर-यानों पर उड़ते
मेघों के लघु बाल,
उनके पथ पर जो बुन देता
मृदु आभा के जाल।

जो रहता तम के मानस से
ज्यों पीड़ा का दाग,
आलोकित करता दीपक सा़
अन्तर्हित अनुराग।

जब प्रभात में मिट जाता
छाया का कारागार,
मिल दिन में असीम हो जाता
जिसका लघु आकार।

मैं तुमसे हूँ एक, एक हैं
जैसे रश्मि प्रकाश;
मैं तुमसे हूँ भिन्न, भिन्न ज्यों
घन से तड़ित्-विलास।

मुझे बाँधने आते हो लघु
सीमा में चुपचाप,
कर पाओगे भिन्न कभी क्या
ज्वाला से उत्ताप?

मिटने का अधिकार –

वे मुस्काते फूल, नहीं
जिनको आता है मुरझाना,
वे तारों के दीप, नहीं
जिनको भाता है बुझ जाना!

वे सूने से नयन,नहीं
जिनमें बनते आँसू मोती,
वह प्राणों की सेज,नही
जिसमें बेसुध पीड़ा, सोती!

वे नीलम के मेघ, नहीं
जिनको है घुल जाने की चाह
वह अनन्त रितुराज,नहीं
जिसने देखी जाने की राह!

ऎसा तेरा लोक, वेदना
नहीं,नहीं जिसमें अवसाद,
जलना जाना नहीं, नहीं
जिसने जाना मिटने का स्वाद!

क्या अमरों का लोक मिलेगा
तेरी करुणा का उपहार
रहने दो हे देव! अरे
यह मेरे मिटने क अधिकार!

नीर भरी दुख की बदली –

मैं नीर भरी दु:ख की बदली!

स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,
क्रन्दन में आहत विश्व हंसा,
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झरिणी मचली!

मेरा पग-पग संगीत भरा,
श्वासों में स्वप्न पराग झरा,
नभ के नव रंग बुनते दुकूल,
छाया में मलय बयार पली,

मैं क्षितिज भॄकुटि पर घिर धूमिल,
चिंता का भार बनी अविरल,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव जीवन अंकुर बन निकली!

पथ को न मलिन करता आना,
पद चिन्ह न दे जाता जाना,
सुधि मेरे आगम की जग में,
सुख की सिहरन बन अंत खिली!

विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही
उमड़ी कल थी मिट आज चली!

किसी का दीप निष्ठुर हूँ –

शलभ मैं शपमय वर हूँ!
किसी का दीप निष्ठुर हूँ!

ताज है जलती शिखा;
चिनगारियाँ शृंगारमाला;
ज्वाल अक्षय कोष सी
अंगार मेरी रंगशाला ;
नाश में जीवित किसी की साध सुन्दर हूँ!

नयन में रह किन्तु जलती
पुतलियाँ आगार होंगी;
प्राण में कैसे बसाऊँ
कठिन अग्नि समाधि होगी;
फिर कहाँ पालूँ तुझे मैं मृत्यु-मन्दिर हूँ!

हो रहे झर कर दृगों से
अग्नि-कण भी क्षार शीतल;
पिघलते उर से निकल
निश्वास बनते धूम श्यामल;
एक ज्वाला के बिना मैं राख का घर हूँ!

Mahadevi Verma संस्मरण:-

महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) ने पद का साथी 1956 में और मेरा परिवार 1972 में व स्मृति चित्रण 1973 में और संस्मरण 1983 में उल्लेखनीय संस्मरण लिखे.

Mahadevi Verma रेखाचित्र:-

महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) के प्रमुख रेखा चित्रों में 1941 में 1941 में अतीत के चलचित्र और 1943 में स्मृति की रेखाएं व श्रृंखला की कड़ियां और मेरा परिवार  उल्लेखनीय है।

Mahadevi Verma भाषा शैली:-

महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) की लेखन शैली सहज प्रभाव विशिष्टा कल्पनाशील प्रतीक वाद शब्दों की विशेषता है उनका कार्य छायादार भाषा भी दिखाता है जो पाठकों को उनके लेखन से गहरे स्तर में जोड़ने में सहायता करता है महादेवी वर्मा का संपूर्ण काव्य गीतिकाव्य हैं उनके रीति काव्य की दो मुख्य शैलियां:- 1-चित्र शैली 2-प्रगति शैली चित्र शैली के द्वारा महादेवी जी की वे रचनाएं हैं जिनमें उन्होंने तो संध्या और रात्रि के वातावरण का चित्रण किया है या फिर उपयुक्त प्रतीकों द्वारा अपने विरह वेदना की अभिव्यक्ति प्रदर्शित की है. महादेवी वर्मा जी (Mahadevi Verma) की चित्र शैली अधिक व्यापक नहीं है इसकी अपेक्षा महादेवी वर्मा जी ने प्रगति शैली का अत्यंत व्यापक स्तर का इस्तेमाल किया है महादेवी वर्मा जी की प्रगति शैली बहुत ही सफल रही हूं उनका काव्य भाव फरक और अनुभूति प्रधान है इसलिए उनमें सरसता रोचकता जीवंतता है। शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली महादेवी जी की भाषा है उसमें संस्कृत के सरल व क्लिप तत्सम शब्दों का मेल तो है पर इन शब्दों का प्रयोग बहुत स्वाभाविक दिन से होने के वजह से उसमें प्रसाद वर्मा दूरियां गुणों का समावेश भी है महादेवी जी (Mahadevi Verma) कम शब्दों में बहुत कुछ कह जाने वाली कला में माहिर थी उनका शब्द चयन अत्यंत सुंदर भावना के अनुकूल और कब उचित है कई कई उन्होंने अपनी रचनाओं में सांस्कृतिक भाषा का भी उपयोग किया है.

Mahadevi Verma की रचनाएं:-

महादेवी जी ने गद्य और पद्य दोनों में ही अपनी रचनाएं लिखी है जी ने निम्नलिखित रूपों से देखा गया:-
काव्य ग्रंथ :– निहार (1930 ) रश्मि (1932 )मिर्जा (1934 )संध्या गीत (1936 ) यामा (1940 ) दीपशिखा (1942 ) आधुनिक कवि तथा संधिनी।
गद्य ग्रंथ:– अतीत के चलचित्र समिति की रेखाएं (1993 )श्रृंखला की कड़ियां महादेवी की विवेचनात्मक कद (1942) पथ के साथी ।

Mahadevi Verma की मृत्यु:

महादेवी वर्मा ( Mahadevi Verma ) का स्वर्गवास 11 सितंबर 1987 को प्रयाग उत्तर प्रदेश के प्रयागराज नहीं हुआ महादेवी वर्मा हिंदी भाषा की एक प्रसिद्ध कवित्री स्वतंत्रता सेनानी और महिलाओं के अधिकार के लिए लड़ने वाली एक महान महिला थी.

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Written by Sahitynama

साहित्यनामा मुंबई से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका है। जिसके साथ देश विदेश से नवोदित एवं स्थापित साहित्यकार जुड़े हैं।

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