Phanishwar Nath 'Renu'
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Phanishwar Nath ‘Renu’- फणीश्वर नाथ रेणु का जीवन परिचय

Phanishwar Nath ‘Renu’ का जन्म :-

फणीश्वर नाथ रेणु का जन्म 4 मार्च 1921 ईस्वी को बिहार के पूर्णिया जिले के ग्राम औराही हिंगना में हुआ. हिंदी जगत के प्रसिद्ध फणीश्वर नाथ ने इस जगन में अपना बहुत बड़ा योगदान दिया. फणीश्वर नाथ रेणू सन 1942 ईस्वी में भारत छोड़ो आंदोलन में चक्रीय हिस्सा लिया था इसी कारण से उनको 3 साल तक जेल में रहना पड़ा. रेनू जी जयप्रकाश नारायण के  सबसे प्रबल समर्थक थे इसी वजह से नारायण द्वारा चलाई गई.  समग्र क्रांति में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.

Phanishwar Nath ‘Renu’ का शिक्षा:-

इनकी प्रारंभिक शिक्षा बिहार और उच्च शिक्षा फारबिसगंज बिराटनगर नेपाल तथा काशी विश्वविद्यालय में हुई.  फणीश्वर नाथ ने इन्टरमीडिएट काशी हिंदू विश्वविद्यालय से 1942 में की जिसके बाद में वे स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया.

Phanishwar Nath ‘Renu’ की भाषा शैली:-

आम बोल-चाल की खड़ी बोली फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ जी की भाषा है। फणीश्वर नाथ भाषा में तद्भव शब्दों के साथ बिहार के पूर्णिया, सहरसा, अररिया जिलों के ग्रामीण अंचल में बोले जाने वाले आंचलिक शब्दों की बहुकता है। भाषा प्रसाद गुण युक्त सरल, सहज तथा मार्मिक से भरपूर है.  उनके वाक्य में विन्यास सरल, संक्षिप्त और रोचक है। वाक्य विन्यास आंचलिक प्रभाव से अछूता नहीं है. फणीश्वर नाथ संवाद पात्रानुकूल, रोचक तथा कथा को गति देने वाले हैं। भाषा की बनावट में आंचलिकता के प्रदर्शन के लिए उन्होंने अपने भाषा में आंचलिक लोकोक्तियां एवं मुहावरे सूक्तियों का खुलकर इस्तेमाल किया है। उन्होंने अपनी भाषा के संप्रेषणीयता का विशेष ध्यान में रखते हुए शैलियों यथा-वर्णनात्मक, आत्मकथात्मक, प्रतीकात्मक, भावनात्मक, चित्रात्मक आदि का उपयोग किया है। आंचलिक बिंबों को उन्होंने अपनी भाषा में प्रमुखता दी है.

Phanishwar Nath 'Renu'
Phanishwar Nath ‘Renu’

Phanishwar Nath ‘Renu’  का साहित्यिक परिचय एवं रचनाएं:- उपन्यास:- फणीश्वर नाथ रेणु ने कई सारे उपन्यास लिखे.

  • मैला आंचल
  • परती परीकथा
  • दीर्घतपा
  • कितने चौराहे
  • कलंक मुक्ति

मैला आंचल:- पूर्णिया जिले की मेरीगंज गांव में किसान जमींदार संघर्ष 77 संबंधित राजनीति आंदोलन का चित्रण 1954 ईस्वी में. इस मेला अंचल के प्रमुख पात्र तहसील लाल विश्वनाथ प्रसाद डॉ राम किरण पाल सिंह महादेवा दास महंत रामदास कालीचरण बलदेव अमृत दास चिल्लर कर्मकार खेलावन सिंह यादव 529 वासुदेव कमला लक्ष्मी पुलिया पार्वती मंगला राम प्रिया मार्टिन शोभा नरसिंह दास राम किशन बाबू हरगौरी प्यारू इत्यादि. यह उपन्यास दो खंडों में विभक्त प्रथम खंड में 44 परिच्छेद एवं द्वितीय खंड में 19 परिच्छेद है.

परती परिकथा:- उड़िया जिले के पारनपुर गांव में जमीन दारी प्रथा के अंत 1957 ईस्वी नए बंदोबस्त भूमि दान ग्रामीण नेताओं के अभ्युदय नेताओं की स्वार्थ पराण्यता भ्रष्टाचार एवं राजनीतिक पार्टियों की धांधली आदि का  चित्रण करते हुए भारत की उन्नति एवं दुर्गति का दर्शन करवानेकी कोशिश

दीर्घतपा:- भ्रष्ट व्यवस्था के मध्यम एक ईमानदार व्यक्ति के संघर्ष की कथा 1963 ईसवी.

जुलूस:- उड़िया जिले के पूर्वी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों की समस्या का अंकन 1965ईसवी

कलंक मुक्ति- 1976

रामरतन राय-1971 अपूर्ण उपन्यास

पलटू बाबू रोड-1979  इस्त्री पूर्णिया जिले के बंगाली परिवार के चारित्रिक पतन की कहानी.

कहानी संग्रह:– ठुमरी (1959), अच्छे आदमी (1986), एक श्रावणी दोपहर की धूप (1984), , अग्नि खोर (1973), आदिम रात्रि की महक (1967)

प्रथम कहानी – उनकी बटबाबा – 1943 में विश्वमित्र पत्र कलकत्ता में प्रकाशित हुई.

तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम – महिला की दर्दभरी जीवन कहानी। अव्यक्त और अस्वीकृत प्रेम की कथा।

Phanishwar Nath ‘Renu’ की प्रसिद्ध कविताये :- 

1-यह फागुनी हवा 

यह फागुनी हवा

मेरे दर्द की दवा

ले आई… ई… ई…

मेरे दर्द की दवा!

आँगनऽऽ बोले कागा

पिछवाड़े कूकती कोयलिया

मुझे दिल से दुआ देती आई

कारी कोयलिया-या

मेरे दर्द की दवा

ले के आई-ई-दर्द की दवा!

वन-वन

गुन-गुन

बोले भौंरा

मेरे अंग-अंग झनन

बोले मृदंग मन—

मीठी मुरलियाँ!

यह फागुनी हवा

मेरे दर्द की दवा लेके आई

कारी कोयलिया!

अग-जग अँगड़ाई लेकर जागा

भागा भय-भरम का भूत

दूत नूतन युग का आया

गाता गीत नित्य नया

यह फागुनी हवा…!\

2-मुझे तुम मिले

मुझे तुम मिले!

मृतक-प्राण में शक्ति-संचार कर;

निरंतर रहे पूज्य, चैतन्य भर!

पराधीनता—पाप-पंकिल धुले!

मुझे तुम मिले!

रहा सूर्य स्वातंत्र्य का हो उदय!

हुआ कर्मपथ पूर्ण आलोकमय!

युगों के घुले आज बंधन खुले!

मुझे तुम मिले!

3-नूतन वर्षाभिनंदन

नूतन का अभिनंदन हो

प्रेम-पुलकमय जन-जन हो!

नव-स्फूर्ति भर दे नव-चेतन

टूट पड़ें जड़ता के बंधन;

शुद्ध, स्वतंत्र वायुमंडल में

निर्मल तन, निर्भय मन हो!

प्रेम-पुलकमय जन-जन हो,

नूतन का अभिनंदन हो!

प्रति अंतर हो पुलकित-हुलसित

प्रेम-दिए जल उठें सुवासित

जीवन का क्षण-क्षण हो ज्योतित,

शिवता का आराधन हो!

प्रेम-पुलकमय प्रति जन हो,

नूतन का अभिनंदन हो!

सुंदरियो!

सुंदरियो-यो-यो
हो-हो
अपनी-अपनी छातियों पर
दुद्धी फूल के झुके डाल लो !
नाच रोको नहीं।
बाहर से आए हुए
इस परदेशी का जी साफ नहीं।
इसकी आँखों में कोई
आँखें न डालना।
यह ‘पचाई’ नहीं
बोतल का दारू पीता है।
सुंदरियो जी खोलकर
हँसकर मत मोतियों
की वर्षा करना
काम-पीड़ित इस भले आदमी को
विष-भरी हँसी से जलाओ।
यों, आदमी यह अच्छा है
नाच देखना
सीखना चाहता है।

प्रमुख पात्र –

धुन्नीराम, लालमोहर, हिरामन, पलटदास, हिराबाई, महुआकुमारी, लसनवाँ,’ इस कहानी पर बासुभट्टाचार्य ने राजकपुर एवं वहीदा को लेकर फिल्म बनायी।

लाल पान की बेगम – ग्रामीण नारी की आकांक्षा का सहज अंकन। प्रमुख पात्र – बाबू साहेब, रंगी, बिरजू, मखनी, चंपिया , लरेना जंगी, राधे, खतास , सुनरी, ।

अन्य प्रमुख कहानियाँ –

तीन बिंदिया, रसप्रिया, अग्निखोर , ठुमरी, , ठेस आदि।

संस्मरण –

1984 वन तुलसी की गंध –

रिपोतार्ज –

ऋणजल-धनजल (1975)

एकलव्य के नोट्स।

आत्मकथा –

आत्म परिचय (1988) – सं. भारत यायावर

साक्षात्कार –

रेणु से भेंट (1987) – सं. भारत यायावर।

फणीश्वर नाथ की पुस्तक :-

फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ का कथा शिल्प विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के ग्रांट से प्रकाशित (1990) लेखक: ‘रेणु’ शाह.

Phanishwar Nath ‘Renu’ का सम्मान:-

फणीश्वर नाथ का प्रथम उपन्यास ‘मैला आँचल’ के लिए उन्हें पदम श्री से सम्मानित किया गया था।

Phanishwar Nath ‘Renu’ की मृत्यु:-

हिंदी के प्रसिद्ध आंचलिक कहानीकार व उपन्यासकार फणीश्वर रेनू अप्रैल सन 1977 में उन्होंने इस  दुनिया से अलविदा कह दिया.व

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Written by Sahitynama

साहित्यनामा मुंबई से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका है। जिसके साथ देश विदेश से नवोदित एवं स्थापित साहित्यकार जुड़े हैं।

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