जिंदगी, तेरे सजदे
जिंदगी, तेरे सजदे
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जिंदगी, तेरे सजदे

जिंदगी तेरे सजदे हमने किये,
बहुत शिद्दत से चाहा किये,
तू सदा क्यूं खफा ही रही,
जिंदगी तेरे सजदे….

मजबूरियाँ मिलती रही राह में,
छाँव मिल ना सकी रेत के गांव में,
हुई ये कैसी दुश्वारियाँ,
बढ़ गयी दिलों की दूरियाँ,
इक तेरे भरोसे सदा हम जिये,
बहुत शिद्दत से चाहा किये,
तू सदा क्यूं खफा ही रही…
जिंदगी तेरे सजदे हमनें किये….

ना कुछ कहा हमने ना सुन ही सके,
खामोशियाँ तेरी पढ़ ना सके,
धुंधला गयी सारी हकीकतें,
दम तोड़ने लगी सारी चाहतें,
वहम की डगर पे बहके से कदम,
फिर बढ़ने लगे दिलों के भरम,
आँखों में चाहत लिए देखा किये,
बहुत शिद्दत से चाहा किये,
तू सदा क्यूं खफा ही रही..
जिंदगी तेरे सजदे हमनें किये….

मंज़र खिज़ा के क्यूं छाने लगे,
तूफान में कैसे गुज़रने लगे,
देखती थीं जो आँखें सुहाने सपने,
आँधियों से हाय क्यूं घिरने लगे,
जिसको समझा हमने मीत अपना,
वही हाल पे हमारे मुस्कराया किये,
बहुत शिद्दत से चाहा किये,
तू सदा क्यूं खफा ही रही…
जिंदगी तेरे सजदे हमने किये…

-सुखमिला अग्रवाल

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Written by Sahitynama

साहित्यनामा मुंबई से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका है। जिसके साथ देश विदेश से नवोदित एवं स्थापित साहित्यकार जुड़े हैं।

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