अनोखा मिलन
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लघुकथा: अनोखा मिलन

बेटी के एडमिशन के लिए स्कूल आई मधुलिका एक बड़े से हाॅल में पड़ी कुर्सियों में एक किनारे बैठ गई थी। तभी उसकी नजर अपनी कालेज में साथ पढ़ने वाली सहेली नीरजा पर पड़ी। नीरजा ने भी उसे देख लिया था। दोनों ही एक-दूसरे को देख कर बहुत खुश हुईं। नीरजा अपनी जगह से उठी और मधुलिका के बगल में बैठते हुए बोली, “तुम दिल्ली से यहां कब शिफ्ट हो गई?”

“अरे यार लंबी कहानी है।” मधुलिका ने कहा, “तुम्हें तो पता ही था कि कालेज के समय मैं और आरव एक-दूसरे को प्यार करते थे। आरव दिल्ली के एक बड़े बिजनेसमैन का बेटा था। लेकिन वह पंजाबी था, इसलिए मेरी मम्मी और पापा को यह रिश्ता पसंद नहीं था। उन्हें मेरे लिए मेरे पापा के दोस्त का बेटा मिलन पसंद था। उन्हें यह भी पता था कि मिलन मुझे पसंद करता है।

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“पर मेरी जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा और मजबूर हो कर उन्होंने मेरा विवाह आरव के साथ कर दिया। विवाह के बाद कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहा। पर उसके बाद आरव और मुझमें झगड़ा होने लगा। विवाह के पहले मीठी लगने वाली आदतें अब कड़वी लगने लगी थीं। वह मुझ पर हाथ भी उठाने लगा था। आखिर परेशान हो कर मैं मम्मी-पापा के पास लखनऊ आ गई।

“लखनऊ आने पर पता चला कि डिलीवरी के समय मिलन की पत्नी की मौत हो गई थी। वह बेटी को ले कर बहुत परेशान और दुखी रहता है। यह सुन कर मैं हतप्रभ रह गई। मैं उससे मिलने उसके घर गई। दरवाजा उसकी मम्मी ने खोला। मुझे उन्होंने प्यार से बैठाया। वह मेरे लिए पानी ले कर आईं तो उनके पीछे-पीछे दो साल की एक बच्ची भी थी। मैंने उसे गोद में उठा कर पुचकारते हुए उसका नाम पूछा। उसका नाम सुन कर मैं हैरान रह गई।

“उसका नाम मधुलिका था। मिलन की मम्मी ने कहा कि मेरे प्यार को यादगार बनाए रखने के लिए ही मिलन ने बेटी का नाम मधुलिका रखा था। मिलन के सच्चे प्यार को न पहचान पाने का मुझे बहुत पछतावा हुआ। अपनी गलती को सुधारने के लिए मैंने मिलन के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। फिर हम दोनों ने दूसरी बार विवाह कर लिया।

वीरेंद्र बहादुर सिंह

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Written by Sahitynama

साहित्यनामा मुंबई से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका है। जिसके साथ देश विदेश से नवोदित एवं स्थापित साहित्यकार जुड़े हैं।

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