जावेद अख़्तर के  10 बेहतरीन शेर

मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है  किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता 

डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से  लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा 

इसी जगह इसी दिन तो हुआ था ये एलान  अँधेरे हार गए ज़िंदाबाद हिन्दोस्तान 

याद उसे भी एक अधूरा अफ़्साना तो होगा  कल रस्ते में उस ने हम को पहचाना तो होगा

इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं  होंटों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं 

बहाना ढूँडते रहते हैं कोई रोने का  हमें ये शौक़ है क्या आस्तीं भिगोने का 

ग़ैरों को कब फ़ुर्सत है दुख देने की  जब होता है कोई हमदम होता है 

मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है  मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ 

हमारे शौक़ की ये इंतिहा थी  क़दम रक्खा कि मंज़िल रास्ता थी 

कोई शिकवा न ग़म न कोई याद  बैठे बैठे बस आँख भर आई