अदा जाफरी के बेहतरीन शायरी

हाथ काँटों से कर लिए ज़ख़्मी फूल बालों में इक सजाने को

होंटों पे कभी उन के मिरा नाम ही आए आए तो सही बर-सर-ए-इल्ज़ाम ही आए

हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है कभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना

अगर सच इतना ज़ालिम है तो हम से झूट ही बोलो हमें आता है पतझड़ के दिनों गुल-बार हो जाना

एक आईना रू-ब-रू है अभी उस की ख़ुश्बू से गुफ़्तुगू है अभी

बड़े ताबाँ बड़े रौशन सितारे टूट जाते हैं सहर की राह तकना ता सहर आसाँ नहीं होता

जिस की जानिब 'अदा' नज़र न उठी हाल उस का भी मेरे हाल सा था

कुछ इतनी रौशनी में थे चेहरों के आइने दिल उस को ढूँढता था जिसे जानता न था

रीत भी अपनी रुत भी अपनी दिल रस्म-ए-दुनिया क्या जाने

जो दिल में थी निगाह सी निगाह में किरन सी थी वो दास्ताँ उलझ गई वज़ाहतों के दरमियाँ