अफ़ज़ल अहमद सईद की बेहतरीन शायरी

कमान-ए-शाह से गुल किस हदफ को जाते हैं नशेब-ए-हक में जा कर मुझे हल आया

मैं दिल को उस की ताघाफुल-सारा से ले आया और अपने ढाना-ए-वहशत में ज़र-ए-दाम रखा

यही बहुत द मुझे नान ओ आब ओ शाम.ए ओ गुल सफर-नज़ाद था असबाब मुहतसर रक्खा

अजब था घूरूर-ए-शगुफ्त -ए-रूहसारी का प्रयोग करें बहार-ए-गुल को बहुत  बे-हुनर कहा उस ने

किताब-ए-उमर से सब  हर्फ़ उद गा.ए मेरे कि मुझ असिर को होना है  हम-कलाम उस का

मैं चाहता हूं मुझे मशालों के साथ जला कुशादा-तर है अगर खेमा-ए-हवा तुझ पे

यही बहुत द मुझे नान ओ आब ओ शाम.ए ओ गुल सफर-नज़ाद था असबाब मुहतसर रक्खा

कमान-ए-हहान-ए-अफलाक के मुकाबला भी मैं उस से और वो फिर कज-कुला मुझसे हुआ

अत उसी की है ये शाहद ओ शोर की तौफीक वही गलीम में ये नान-ए-बे-जवीन लाया