अहमद फ़राज़ की कुछ बेहतरीन शायरियां

रंजिश ही सही  दिल ही दुखाने के लिए आ आ फिर से मुझे  छोड़ के जाने के लिए आ

अब के हम बिछड़े  तो शायद कभी  ख़्वाबों में मिलें जिस तरह सूखे  हुए फूल किताबों में मिलें

हुआ है तुझ से बिछड़ने के  बा'द ये मालूम कि तू नहीं था तिरे साथ  एक दुनिया थी

किस किस को बताएँगे  जुदाई का सबब हम तू मुझ से ख़फ़ा है  तो ज़माने के लिए आ

ज़िंदगी से यही गिला है मुझे तू बहुत देर से मिला है मुझे

आँख से दूर न हो  दिल से उतर जाएगा वक़्त का क्या है  गुज़रता है गुज़र जाएगा

उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ अब क्या कहें ये  क़िस्सा पुराना बहुत हुआ

इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ

दोस्त बन कर भी  नहीं साथ निभाने वाला वही अंदाज़ है  ज़ालिम का ज़माने वाला

क़तील शिफ़ाई की कुछ बेहतरीन शायरियां