तुम्हारी ज़ात हवाला है सुर्ख़-रूई का तुम्हारे ज़िक्र को सब शर्त-ए-फ़न बनाते हैं
तह कर चुके बिसात-ए-ग़म-ओ-फ़िक्र-ए-रोज़गार तब ख़ानक़ाह-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत में आए हैं
तू आया लौट आया है गुज़रे दिनों का नूर चेहरों पे अपने वर्ना तो बरसों का ज़ंग था
ये गर्द है मिरी आँखों में किन ज़मानों की नए लिबास भी अब तो पुराने लगते हैं
मेरी दुनिया इसी दुनिया में कहीं रहती है वर्ना ये दुनिया कहाँ हुस्न-ए-तलब थी मेरा
तिरे ख़याल के जब शामियाने लगते हैं सुख़न के पाँव मिरे लड़खड़ाने लगते हैं
जो एक दस्त-ए-बुरीदा सवाद-ए-शौक़ में है अलम उठाए हुए उस के शाने लगते हैं
ख़बर भी है तुझे इस दफ़्तर-ए-मोहब्बत को जलाने जलने में क्या क्या ज़माने लगते हैं
ये गर्द है मिरी आँखों में किन ज़मानों की नए लिबास भी अब तो पुराने लगते हैं
जो सनसनाता है कूफ़ा ओ नैनवा का ख़याल गुलू-ए-जाँ की तरफ़ तीर आने लगते हैं