जावेद अख्तर की बेहतरीन शायरी

मुझे दुश्मन से भी  ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है किसी का भी हो सर क़दमों में  सर अच्छा नहीं लगता 

कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी 

तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे अब मिलते हैं जब भी फ़ुर्सत होती है

कोई शिकवा न ग़म न कोई याद बैठे बैठे बस आँख भर आई 

डर हम को भी लगता है  रस्ते के सन्नाटे से लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा 

हम तो बचपन में भी अकेले थे सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे 

याद उसे भी एक अधूरा अफ़्साना तो होगा कल रस्ते में उस ने हम को पहचाना तो होगा 

बहाना ढूँडते रहते हैं  कोई रोने का हमें ये शौक़ है क्या  आस्तीं भिगोने का 

ग़ैरों को कब फ़ुर्सत है दुख देने की जब होता है कोई हमदम होता है