कुमार विश्वास के बेहतरीन शायरी, जिसे आप बहुत पसंद करेंगे

मै तेरा ख्वाब जी लून पर लाचारी है मेरा गुरूर मेरी ख्वाहिसों पे भरी है सुबह के सुर्ख उजालों से तेरी मांग से मेरे सामने तो ये श्याह रात सारी है

तुम्हारा ख़्वाब जैसे ग़म को  अपनाने से डरता है हमारी आखँ का आँसूं , ख़ुशी पाने से डरता है अज़ब है लज़्ज़ते ग़म भी,  जो मेरा दिल अभी कल तक़ तेरे जाने से डरता था वो अब आने से डरता है

तुम्हारे पास हूँ लेकिन  जो दूरी है, समझता हूँ तुम्हारे बिन मेरी हस्ती  अधूरी है, समझता हूँ तुम्हें मैं भूल जाऊँगा  ये मुमकिन है नहीं लेकिन तुम्हीं को भूलना सबसे  जरूरी है, समझता हूँ

तुझ को गुरुर ए हुस्न है  मुझ को सुरूर ए फ़न दोनों को खुदपसंदगी की लत बुरी भी है तुझ में छुपा के खुद को  मैं रख दूँ मग़र मुझे कुछ रख के भूल जाने  की आदत बुरी भी है

ना पाने की खुशी है कुछ, ना खोने का ही कुछ गम है… ये दौलत और शौहरत  सिर्फ कुछ जख्मों का मरहम है… अजब सी कशमकश है  रोज जीने ,रोज मरने में… मुक्कमल जिंदगी तो है, मगर पूरी से कुछ कम है…”

तुम्ही पे मरता है ये दिल  अदावत क्यों नहीं करता कई जन्मो से बंदी है  बगावत क्यों नहीं करता.. कभी तुमसे थी जो वो ही शिकायत हे ज़माने से मेरी तारीफ़ करता है  मोहब्बत क्यों नहीं करता..

मै तेरा ख्वाब जी लून पर लाचारी है मेरा गुरूर मेरी ख्वाहिसों पे भरी है सुबह के सुर्ख उजालों से तेरी मांग से मेरे सामने तो ये श्याह रात सारी है

तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है, समझता हूँ तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है, समझता हूँ तुम्हें मैं भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन तुम्हीं को भूलना सबसे जरूरी है, समझता हूँ

मेरा जो भी तर्जुबा है,  तुम्हे बतला रहा हूँ मैं कोई लब छु गया था तब,  की अब तक गा रहा हूँ मैं बिछुड़ के तुम से अब कैसे,  जिया जाये बिना तडपे जो मैं खुद ही नहीं समझा,  वही समझा रहा हु मैं