ऐ सनम जिस ने तुझे चाँद सी सूरत दी है उसी अल्लाह ने मुझ को भी मोहब्बत दी है
सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या कहती है तुझ को ख़ल्क़-ए-ख़ुदा ग़ाएबाना क्या
जो आला-ज़र्फ़ होते हैं हमेशा झुक के मिलते हैं सुराही सर-निगूँ हो कर भरा करती है पैमाना
दोस्तों से इस क़दर सदमे उठाए जान पर दिल से दुश्मन की अदावत का गिला जाता रहा
यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दिया रात भर ताला'-ए-बेदार ने सोने न दिया
लगे मुँह भी चिढ़ाने देते देते गालियाँ साहब ज़बाँ बिगड़ी तो बिगड़ी थी ख़बर लीजे दहन बिगड़ा
आए भी लोग बैठे भी उठ भी खड़े हुए मैं जा ही ढूँडता तिरी महफ़िल में रह गया
रख के मुँह सो गए हम आतिशीं रुख़्सारों पर दिल को था चैन तो नींद आ गई अँगारों पर
सफ़र है शर्त मुसाफ़िर-नवाज़ बहुतेरे हज़ार-हा शजर-ए-साया-दार राह में है
क़ैद-ए-मज़हब की गिरफ़्तारी से छुट जाता है हो न दीवाना तो है अक़्ल से इंसाँ ख़ाली