वसीम बरेलवी की बेहतरीन शायरी

वो जितनी दूर हो उतना ही मेरा होने लगता है मगर जब पास आता है तो मुझ से खोने लगता है

अपने अंदाज़ का अकेला था इस लिए मैं बड़ा अकेला था

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे

मुझ को चलने दो अकेला है  अभी मेरा सफ़र रास्ता रोका गया तो  क़ाफ़िला हो जाऊँगा

झूट वाले कहीं से कहीं बढ़ गए और मैं था कि सच बोलता रह गया

उस ने मेरी राह न देखी और वो रिश्ता तोड़ लिया जिस रिश्ते की ख़ातिर मुझ से दुनिया ने मुँह मोड़ लिया

उसे समझने का कोई तो रास्ता निकले मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले

क्या बताऊँ कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैं ने किया उम्र-भर किस किस के हिस्से का सफ़र मैं ने किया

दिल की बिगड़ी हुई आदत से ये उम्मीद न थी भूल जाएगा ये इक दिन तिरा याद आना भी