वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी नफरत भी तुम्हारी थी, हम अपनी वफ़ा का इंसाफ किससे माँगते.. वो शहर भी तुम्हारा था वो अदालत भी तुम्हारी थी -गुलजार
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता कोई एहसास तो दरिया की अना का होता -गुलजार
बेशूमार मोहब्बत होगी उस बारिश की बूँद को इस ज़मीन से, यूँ ही नहीं कोई मोहब्बत मे इतना गिर जाता है -गुलजार
तुम्हे जो याद करता हुँ, मै दुनिया भूल जाता हूँ । तेरी चाहत में अक्सर, सभँलना भूल जाता हूँ । -गुलजार
"खता उनकी भी नहीं यारो वो भी क्या करते, बहुत चाहने वाले थे किस किस से वफ़ा करते !" -गुलजार
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते -गुलजार
मैं हर रात सारी ख्वाहिशों को खुद से पहले सुला देता, हूँ मगर रोज़ सुबह ये मुझसे पहले जाग जाती है। -गुलजार
मुझसे तुम बस मोहब्बत कर लिया करो, नखरे करने में वैसे भी तुम्हारा कोई जवाब नहीं! -गुलजार
काँच के पीछे चाँद भी था और काँच के ऊपर काई भी तीनों थे हम वो भी थे और मैं भी था तन्हाई भी -गुलजार
तजुर्बा कहता है रिश्तों में फैसला रखिए, ज्यादा नजदीकियां अक्सर दर्द दे जाती है -गुलजार