बशीर बद्र की बेहतरीन शायरियां

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी  यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो  न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जा

न जी भर के देखा न कुछ बात की बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है 

बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना जहाँ दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता 

दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिन्दा न हों

हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा

मुहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला

शौहरत की बुलन्दी भी पल भर का तमाशा है जिस डाल पर बैठे हो, वो टूट भी सकती है