जोश मलीहाबादी की शायरी: सबसे गर्म मिज़ाज प्रगतिशील शायर जिन्हें शायर-ए-इंकि़लाब (क्रांति-कवि) कहा जाता है

दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया

हद है अपनी तरफ़ नहीं मैं भी और उन की तरफ़ ख़ुदाई है

मेरे रोने का जिस में क़िस्सा है उम्र का बेहतरीन हिस्सा है

एक दिन कह लीजिए जो कुछ है दिल में आप के एक दिन सुन लीजिए जो कुछ हमारे दिल में है

मुझ को तो होश नहीं तुम को ख़बर हो शायद लोग कहते हैं कि तुम ने मुझे बर्बाद किया

इंसान के लहू को पियो इज़्न-ए-आम है अंगूर की शराब का पीना हराम है

वहाँ से है मिरी हिम्मत की इब्तिदा वल्लाह जो इंतिहा है तिरे सब्र आज़माने की

इस का रोना नहीं क्यूँ तुम ने किया दिल बर्बाद इस का ग़म है कि बहुत देर में बर्बाद किया

हम गए थे उस से करने शिकवा-ए-दर्द-ए-फ़िराक़ मुस्कुरा कर उस ने देखा सब गिला जाता रहा

इतना मानूस हूँ फ़ितरत से कली जब चटकी झुक के मैं ने ये कहा मुझ से कुछ इरशाद किया?