मोहम्मद जियाउद्दीन अहमद शकीब की शानदार शायरी :  Mohammed Ziauddin Ahmad Shakeb ki Shander Shayari

दीवाना-ए-जुस्तुजू हो गया चाँद बादल से गिर के खो गया चाँद

अक़्ल कुछ ज़ीस्त की कफ़ील नहीं ज़िंदगी इतनी बे-सबील नहीं

आप के साथ मुस्कुराने में ज़िंदगी एक फूल होती है

मुख़्तसर बात-चीत अच्छी है लेकिन इतना भी इख़्तिसार न कर

फ़िक्र-मंदी फ़ुज़ूल होती है कोशिश-ए-दिल क़ुबूल होती है

यक़ीं गर करो तुम बहुत ख़ूब है ये बे-जा तबस्सुम बहुत ख़ूब है

हम से वाइज़ ने बात की होती गुमरही अपनी बे-दलील नहीं

जब तक कि मोहब्बत का चलन आम रहेगा हर लब पे मिरा ज़िक्र मिरा नाम रहेगा

पास-ए-पिंदार-ए-तबीअत दिल अगर रख ले तो क्या है वजूद-ए-दर्द मोहकम ज़ब्त-ए-ग़म कर ले तो क्या

जुनूँ शोला-सामाँ ख़िरद शबनम-अफ़्शाँ ख़ुदा जाने ये जान जीते कि हारे