मिलने की तरह मुझ से वो पल भर नहीं मिलता दिल उस से मिला जिस से मुक़द्दर नहीं मिलता
अदावतें थीं, तग़ाफ़ुल था, रंजिशें थीं बहुत बिछड़ने वाले में सब कुछ था, बेवफ़ाई न थी
इस कड़ी धूप में साया कर के तू कहाँ है मुझे तन्हा कर के
शहर में किस से सुख़न रखिए किधर को चलिए इतनी तन्हाई तो घर में भी है घर को चलिए
वो हम-सफ़र था मगर उस से हम-नवाई न थी कि धूप छाँव का आलम रहा जुदाई न थी
आज की रात उजाले मिरे हम-साया हैं आज की रात जो सो लूँ तो नया हो जाऊँ
ये राह-ए-तमन्ना है यहाँ देख के चलना इस राह में सर मिलते हैं पत्थर नहीं मिलता
ये हवा सारे चराग़ों को उड़ा ले जाएगी रात ढलने तक यहाँ सब कुछ धुआँ हो जाएगा
कहने को ग़म-ए-हिज्र बड़ा दुश्मन-ए-जाँ है पर दोस्त भी इस दोस्त से बेहतर नहीं मिलता
तुझ से बिछड़ूँ तो कोई फूल न महके मुझ में देख क्या कर्ब है क्या ज़ात की सच्चाई है