नासिर काज़मी  की दस चुनिंदा शायरी

आरज़ू है कि तू यहाँ आए और फिर उम्र भर न जाए कहीं

क़ुबूल है जिन्हें ग़म भी तेरी ख़ुशी के लिए वो जी रहे हैं हकीकत में ज़िन्दगी के लिए

आज देखा है तुझ को देर के बअ'द आज का दिन गुज़र न जाए कहीं

वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का जो पिछली रात से याद आ रहा है

तेरी मजबूरियां दुरुस्त मगर तू ने वादा किया था याद तो कर

कौन अच्छा है इस ज़माने में क्यूं किसी को बुरा कहे कोई

हाल-ए-दिल हम भी सुनाते लेकिन जब वो रुख़्सत हुआ तब याद आया

कल जो था वो आज नहीं जो, आज है कल मिट जाएगा, रूखी-सूखी जो मिल जाए शुक्र करो, तो बेहतर है

कभी ज़ुल्फ़ों की घटा ने घेरा कभी आँखों की चमक याद आई

कहते हैं ग़ज़ल क़ाफ़िया-पैमाई है ‘नासिर’ ये क़ाफ़िया-पैमाई ज़रा कर के तो देखो