मुनव्वर राना के चुनिंदा शायरी,
जिसे सभी पसंद करते है
अब जुदाई के सफ़र को
मिरे आसान करो
तुम मुझे ख़्वाब में आ कर
न परेशान करो
तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो
तुम्हारा चाहने वाला
शराब पीता है
चलती फिरती हुई
आँखों से अज़ाँ देखी है
मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है
माँ देखी है
अभी ज़िंदा है माँ मेरी
मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
इस तरह मेरे गुनाहों को
वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है
तो रो देती है
किसी को घर मिला
हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था
मिरे हिस्से में माँ आई
जब भी कश्ती मिरी
सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई
ख़्वाब में आ जाती है
सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर
मज़दूर कभी नींद की
गोली नहीं खाते
कल अपने-आप को देखा था
माँ की आँखों में
ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है
तेरे दामन में सितारे हैं
तो होंगे ऐ फ़लक
मुझ को अपनी माँ की मैली ओढ़नी अच्छी लगी