अहमद फ़राज़ की शायरी: बेइंतिहा लोकप्रिय शायर/अपनी रूमानी और विरोधी -कविता के लिए प्रसिद्ध
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
हुआ है तुझ से बिछड़ने के बाद ये मालूम कि तू नहीं था तेरे साथ एक दुनिया थी
दिल को तेरे चाहत पे भरोसा भी बहुत है और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता
आज इक और बरस बीत गया उस के बग़ैर जिस के होते हुए होते थे ज़माने मेरे
ज़िंदगी से यही गिला है मुझे तू बहुत देर से मिला है मुझे
आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा
उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ
तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल हार जाने का हौसला है मुझे