बेकल उत्साही की शायरी: प्रमुख लोकप्रिय शायर जिन्हें ‘उत्साही’ का उपनाम जवाहर लाल नेहरू ने दिया था/उर्दू शायरी को हिंदी के क़रीब लाने के लिए विख्यात

बीच सड़क इक लाश पड़ी थी और ये लिक्खा था भूक में ज़हरीली रोटी भी मीठी लगती है

वो थे जवाब के साहिल पे मुंतज़िर लेकिन समय की नाव में मेरा सवाल डूब गया

यूँ तो कई किताबें पढ़ीं ज़ेहन में मगर महफ़ूज़ एक सादा वरक़ देर तक रहा

लोग तो जा के समुंदर को जला आए हैं मैं जिसे फूँक कर आया वो मेरा घर निकला

हम भटकते रहे अंधेरे में रौशनी कब हुई नहीं मालूम

उस का जवाब एक ही लम्हे में ख़त्म था फिर भी मेरे सवाल का हक़ देर तक रहा

चाँदी के घरोंदों की जब बात चली होगी मिट्टी के खिलौनों से बहलाए गए होंगे

न जाने कौन सा नश्शा है उन पे छाया हुआ क़दम कहीं पे हैं पड़ते कहीं पे चलते हैं

हर एक लहज़ा मेरी धड़कनों में चुभती थी अजीब चीज़ मेरे दिल के आस-पास रही

मैं जब भी कोई अछूता कलाम लिखता हूँ तो पहले एक ग़ज़ल तेरे नाम लिखता हूँ